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Monday 5 July 2021

ELEMETARY DOCTOR WATSON !!

ELEMENTARY DOCTOR WATSON  !!

When it rains,  some water goes down the drain and into the river , some water seeps through mud and grass to go underground.  The water that seeps underground raises the water table. 

 If underground water is pumped out constantly without replenishment,  a void is created underground
.. This  is likely to create a serious crisis in not so distant a future. The trees whose roots are not very deep stop getting water from underground and they dry up . With water level further going down, big trees also dry up ,  lakes also dry up. 
And finally  the  land start sinking . And a fertile land eventually turns into a desert.
That is why it is important to leave a lot of land in the cities unpaved so that water table gets  constantly replenished in a natural way.

Unless we learn to live with nature,  nature will strike back in more ways than one.

Friday 2 July 2021

फोटोग्राफी मेरे बचपन में और आजकल

फोटोग्राफी मेरे बचपन में और आजकल

कल शाम को किसी से (जो आजकल मुंबई मैं है) बात हो रही थी मोबाइल पर । जिक्र आया फूलों का तो मैंने कहा हमारे गमलो में बहुत सुंदर फूल हो रहे है । उन्होने कहा कि  फोटो भेजो। 

 मैं बाहर गया फूलों की एक दर्जन फोटो खींची , बटन दबाकर उनके मोबाइल पर फोटो भेज दी।
 यह सब काम 5 मिनट में हो गया जैसा कि सभी को पता है ।

आजकल के बच्चों को और teenagers को इस बात का कोई अंदाजा नहीं होगा कि  हमारे बचपन में फोटोग्राफी कैसे होती थी ।

उस जमाने में मोबाइल फोन तो होता ही नहीं था। फोटोग्राफी के लिए  कैमरा खरीदना पड़ता था । मैंने पहला कैमरा तब खरीदा जब मैं हाई स्कूल में पढ़ता था।  कैमरा था kodak brownei reflex और 45 रुपए का -- मतलब आजकल के करीब ₹7000 का ।
 कैमरा साधारण था जिसे बॉक्स कैमरा कहते थे । अच्छा camera तब ₹200 के करीब आता था।

अब आपको बताता हूं कि फोटो खींचनी के लिए कितने पापड़ बेलने पडते थे।

फोटो के कैमरे से तभी आप फोटो ले सकते थे जब उसके अंदर एक फोटोग्राफी की रील हो - आठ फिल्म या 12 फिल्म की रील आती थी  जो उस जमाने के करीब  पौने तीन रुपए की थी (यानि आजकल के ₹450 के)। 
camera को खोलकर उसके अंदर रील को फिट करना होता था - अंधेरे में बहुत सावधानी से।  

पहले आप बाजार जाते थे और वहां से रील खरीद कर लाते थे फिर एक मोटा काला कपड़ा ओढ़कर रील को  कैमरे में लोड करते थे।  अब कैमरा तैयार था फोटो खींचने के लिए।

एक reel में सिर्फ 8 फोटो खींच सकते थे इसलिए  सोच-समझकर फोटो खींचने होती थी । पहली फोटो खींचने के और आखिरी फोटो खींचने के बीच में काफी अंतर होता था, कई दिनों का । इसलिए आज आपने जो फोटो खींची है कैसी आई  है यह आपको 2 हफ्ते बाद पता चलता था जब फोटो फोटोग्राफर के स्टूडियो से तैयार होकर आ जाती थी ।

  सब फोटो खींचने के बाद रील को पूरा  घुमा घुमा कर लपेटा जाता था और काली चादर ओढ़कर इसको  कैमरा  के बाहर निकाल कर डब्बे मे  बंद करके रख लिया जाता था।  उसके बाद आपको फोटोग्राफी की दुकान जाना  होता था उस रील को develop और print करने के लिए ।
 इसके अलग से पैसे पडते थे। अगर आपको एक से ज्यादा प्रिंट करानी है तो हर प्रिंट का अलग-अलग दाम देना होता था ।

कुछ दिन के बाद आपको  फोटो मिल जाती थी और  फिर फोटो एल्बम में चिपकाई जाती थी  corners की मदद से ।

कितना फर्क आ गया है। अब फोटो खींचने का अलग से एक पैसा नहीं देना होता है ।

एक कहावत हुआ करती थी "एक अनार सौ बीमार" अब तो एक नई कहावत होनी चाहिए  -- "एक स्मार्टफोन दर्जनों काम"।