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Saturday 18 May 2024

वह भी एक ज़माना था

एक  जमाना वह भी था जब लोग घी खरीदते समय हधेली के उल्टी तरफ घी रगड़ कर उसकी मिलावट का पता लगा लेते थे।

एक जमाना वह भी था जब लोग कपड़े के थान के एक कोने को रगड़ का उसकी quality का पता लगा लेते थे।

एक जमाना था जब लोग पंचक्की जाते थे आटा पिसाने के लिए । और पनचक्की के ऊपर चुक्क चुक्क चुक्क चुक्क की आवाज होती रहती थी।

एक जमाना वह भी था जब किसी भी चीज के पैकेट में उसके दाम नहीं लिखे होते थे। उस जमाने में एलोपैथिक दवाइयों के अलावा किसी भी चीज में मैन्युफैक्चरिंग डेट और एक्सपायरी डेट भी नहीं लिखी होती थी।

एक जमाना हुआ करता था जब सुबह सुबह उठकर कोयले की अंगीठी जलानी होती थी पतली पतली लकड़ियों और कागज की मदद से।  फिर एक लोहे की पाइप को फूक फूक कर उसको सुलगाया जाता था। तब कहीं जाकर सुबह की पहली कप चाय के लिए पानी तैयार होता था। उसी जमाने में काफी घरों में कुल्हाड़ियां होती थी लकड़ी की चीर फाड़ करके आग जलाने और खाना बनाने के लिये।

एक जमाना था जब अक्सर सड़क पर गधे की पीठ पर ढेर सारे कपड़े लादकर धोबी आता दिखाई देता था हर एक के घर पर। फिर धुले हुए कपड़े लिए जाते कॉपी मे चेक करके और इसी तरह गंदे कपड़े भी नोट करके दिए जाते। अक्सर कमीज और पेंट में बटन गायब होते और कभी-कभी तो कपड़ा ही गायब हो जाता था। उसी जमाने में लोगों का यह भी कहना था कि इम्तहान के लिए  पढ़ते वक्त अगर गधे के ढेचू ढेचू की आवाज सुनाई दे जाए तो वह सवाल इंतहान मे जरूर आता था।

उस जमाने में अगर आप रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर जाते थे तो दर्जनों होल्डॉल और काले रंग के टीम के बड़े बक्से साथ लेकर सफर करते हुए लोग दिखाई देते थे और उन्हें बाहर से अंदर ट्रेन तक ले जाने के लिए कुली को सिर्फ 25 पैसे मिलते थे। आजकल की नई पीढ़ी को तो पता भी नहीं होगा कि होल्डॉल क्या चीज होती है।

उसी जमाने में ज्यादातर लोग साइकिल में ही दफ्तर जाया करते थे और उनके सिर पर  sola hat होती थी। 1970 के बाद पैदा हुए लोगों को तो पता भी नहीं होगा कि sola hat क्या होती है.

वह भी एक अजीबोगरीब जमाना था क्योंकि तब लोग अपने प्रिय जनों को और परिचित लोगों को चिट्टियां लिखा करते हाथ से और फिर उन्हें सड़क में जाकर या पोस्ट ऑफिस जाकर लाल रंग के लेटर बॉक्स में डालते थे।  हफ्ते में कई बार घर के बाहर पोस्टमैन की आवाज सुनाई देती थी और जिसने सुनी वह दौड़ पड़ता था चिट्ठी को उठाने के लिए।

अजीबोगरीब जमाना था वह । पर कई मायने में बहुत अच्छा भी था ।

Wednesday 15 May 2024

कुछ कहना बेकार है

कुछ कहना बेकार है

एक अच्छा जालीदार कागज लीजिए जिस पर से पानी नीचे निकल सकता है ।अब उसमें चाय की पत्ती रखिए और उसे बंद करके  उसमें एक डोरी बांध दीजिए और उस डोरी के आखिर में एक  कार्डबोर्ड का  टुकड़ा बांध दीजिए। अब उस पैकेट को एक प्याली के अंदर डालिये और धागे  कार्डबोर्ड सहित बाहर लटकाइए । अब उस प्याली में खौलता पानी भरिये । थोड़ी देर में चाय का कलर आने लगेगा। डोरी से पैकेट को हिलाने का खेल थोड़ी देर तक कीजिए  फिर पैकेट को निकाल कर अलग कर दीजिये। चाय बन गई आपकी। 

अब चाय का पाउडर है कागज का पैकेट है रस्सी की डोरी है और कार्डबोर्ड का टुकड़ा है तो पैसा तो ज्यादा लगेगा ही। डब्बे में 20-25 ऐसी चाय की पुडियाएं भर दीजिए और एक खूबसूरत डिब्बे में रखकर बेचिये बहुत ऊंचे दामों पर।

तो अब आप चाय पी रहे हो कागज का रस पी रहे हो डोरी का रस पी रहे हो तो सब चीज के पैसे तो देने ही होंगे।   महंगी चीज़ है सब लोग नहीं खरीद सकते हैं आप खरीद सकते हैं तो आपको अनुभव ऐसा होगा की आप किस्मत वाले हैं कितनी बढ़िया चाय  पी रहे है।

थोड़ा सा विज्ञापन भी कर दो उससे भी फायदा होगा लोगों को पता चल जाएगा की रईसों के पीने वाला चाय कौन सी है। 

दुनिया में अकलमंदो की कमी नहीं है। ऐसे अकलमंद भरे हुए हैं जो फटी हुई पेंट को चौगुने दाम पर में खरीदने हैं। जींस की नई पतलून लीजिए फिर उसको रेगमाल से रगड़ रगड़कर कई जगह फाड़ डालिए खूब अच्छी तरह प्रेस कर दीजिए और उसे पर दो-तीन तरह के लेवल लगा दीजिए। फिर उसे खूब ज्यादा दाम में बेचिये। 

उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यों। उसकी चमड़ी मेरी  से ज्यादा गोरी क्यों। 
उसका बच्चा मेरे बच्चे से ज्यादा स्वस्थ क्यों। 
मेरा बच्चा उसके बच्चे की तरह क्लास में फर्स्ट क्या नहीं आता है। अखबार पढ़िए मैगजीन पढ़िए विज्ञापन आपको बता देंगे कि आपका बच्चा भी फर्स्ट आ सकता है अगर आप रोज सुबह उसको उनका बनाया हुआ पाउडर पानी में मिलाकर पिलाएं वह स्वस्थ भी हो सकता है पड़ोसी के लड़के से ज्यादा। और आपकी अम्मा की चमड़ी पड़ोसन की अम्मा की चमड़ी से ज्यादा गोरी हो सकती है अगर आप यह क्रीम लगायें। 

क्या कमाल खोपड़ी की सोच का और क्या विज्ञापन बनाते हैं भाई लोग। 

और सबसे कमल के तो वह लोग हैं जो इस तरह की जीत खरीदते हैं यह सोचकर कि वह बहुत अकलमंदी का काम कर रहे हैं ।

किसी का सही कहा है की बर्बाद गुलिस्ता करने को सिर्फ एक ही उल्लू काफी है,  हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा।