Total Pageviews

Thursday 31 December 2020

THE YEAR OF THE PANDEMIC

The year of the pandemic

Today is the last day of the year 2020. Unlike other years this was a year spent in anxiety and fear of a deadly virus, spent wearing a mask.

The year started in a normal way. We had no inkling of the pandemic  that was raging in china.  But by  february  news spread that there was something wrong with the flu raging in Wuhan China . In march came the lockdown that was sudden . Thousands of migrants lost their jobs and became  homeless. Many died in their journey home. 

Then we banged Thali,did clapping, lit lamps and thought that this was a passing event. But the virus has persisted and has killed lakhs of people all over the world. And now a new strain of the virus has arrived...

 So the year 2021 begins on an apprehensive note. Let us hope that the vaccines developed to stop this virus proves effective.

कुत्ता पालन या बिल्ली ?

कुत्ता  पालें या बिल्ली  पालें ?

 आमतौर पर लोग घर में कुत्ता या बिल्ली पालते हैं। कुत्ते को जब घर में पालते हैं तो वह बिल्कुल घरेलू हो जाता है आप से हिल मिल जाता है आपकी रक्षा करता है और दूसरों को आपके यहां आने पर संदेह के निगाह से देखता है जब तक कि आप उनका  स्वागत नहीं करते हैं।

 बिल्ली बिल्कुल फर्क है। उसका आप से लगाव सिर्फ खाने पीने तक होता है या प्यार दुलार तक। वफादारी नाम की कोई चीज बिल्ली में नहीं होती है। आपको खतरे में देखकर बिल्ली भाग जाएगी जब कि कुत्ता जान दे देगा ।

जब मेरा जन्म हुआ था तब हमारे घर में जैक नाम का एक कुत्ता था।  पता नहीं क्यों कुत्ते ज्यादातर अंग्रेज होते हैं मतलब अंग्रेजी नाम वाले। इंडिया में कुत्तों का हिंदी नाम  मध्यम वर्गीय लोग नहीं रखते हैं। 

मुझे  जैक की कुछ भी याद नहीं आए पर मेरी माताजी बताती थी कि वह बहुत इंटेलिजेंट कुत्ता था और कई बार उसने सबको खूब छकाया । एक बार कुछ लोग घर में बैडमिंटन खेल रहे थे और एक बाहर वाला लड़का जबरदस्ती घुस गया और वह भी खेलने लगा। जैक को यह पसंद नहीं आया तो उसने उस  लड़के का स्वेटर जो उसने उतार के किनारे रखा था ले जाकर एक गड्ढे में छुपा दिया। जब खेल खत्म हुआ तो वह लड़का अपना स्वेटर  ढूंढने  लगा पर उसे मिला नहीं। हमारी माता जी को जब पता चला तो उन्होंने जैक को कड़े शब्दों में कहा कि स्वेटर कहां है तो वह उन लोगों को वहां ले गया जहां गड्ढे में उसने स्वेटर छिपा रखा था।

 हमारा दूसरा कुत्ता पीटर था । जब मैं नाइंथ क्लास में आया तब पीटर आया था । चमकीले काले रंग का कुत्ता था  शायद लैब्राडोर था । कई साल हम लोगों के साथ रहा और एक एक्सीडेंट में उसकी  मौत हो गई ।

कई दशकों के बाद मेरे रिटायरमेंट के करीब हमारे घर में जैकी नाम का एक सफेद छोटा सा प्यारा  पोमेरेनियन कुत्ता आया जिसको मैं मॉर्निंग वॉक में घुमाने ले जाता था । उसका नाम जैकी था।

 मैंने बिल्लियां भी पाली पर बिल्लियों के साथ मेरा ज्यादा लगाव नहीं रहा।  सिर्फ लालू प्रसाद नाम का एक बिल्ला बहुत प्यारा था । और उसका मुझसे बहुत तगड़ा लगाव था।  जब मिलने वाले मुझसे मिलने के लिए आ कर बैठक में बैठते हैं तो लालू प्रसाद भी आकर हमेशा बैठक में बैठ जाता था और उनके जाने तक बैठा रहता था । सुबह-सुबह जब मैं बगीचे में सब्जियों के खेत में काम करता था तो भी वह मेरे साथ ही रहता था ।

 कुत्ते या बिल्ली पालने का यह फायदा है कि उससे आपके मन में तनाव कम हो जाता है । इसलिए हो सके तो बिल्ली या कुत्ता पाल लेना चाहिए।

 पर बिल्ली और कुत्ता पालने के बाद जानवरों के अस्पताल में विशेषज्ञ से हमेशा राय लें कि हमें क्या-क्या सतर्कता बरतनी चाहिए

***



बचपन के दिन भी क्या दिन थे

बचपन के दिन

बचपन के दिन भी क्या दिन थे ! पूरे संसार को एक अलग नजरिए से देखते थे ।  हमारे बचपन के संसार में बच्चे ही असली मनुष्य होते थे बड़े लोग तो कुछ ज्यादा पुराने  लगते थे और अजीबोगरीब टाइप की बातें करते थे। और बुड्ढे लोग तो हम लोगों की दुनिया में अजायबघर के नमूने होते थे।

 हमारे नाना जी के पड़ोस में एक बुड्ढे मनुष्य रहते थे साठ साल से ज्यादा के होंगे।  रिटायर हो गए थे। हमारे नाना जी उनके जान पहचान के थे तो जब गर्मियों की छुट्टियों में नाना जी के घर जाते थे तो अक्सर उनके साथ पड़ोस में चले जाते थे ताश खेलने के लिए। तब मैं कोई 10 साल का होउंगा। वहां जाने के दो आकर्षण होते थे -- एक तो उनके घर में ताश खेलते वक्त पकड़िया बनती थी तो पकौड़े खाने को खूब मिलती थी दूसरे उनके दांतो को हिलता देखकर मुझे बड़ा अच्छा लगता था। जब वह बात करते थे तो उनके सभी दांत हिलते थे। बाद में पता चला कि वह नकली दांत लगाते थे । पहले हमें पता भी नहीं था की दांत नकली भी होते हैं । 

उन दिनों स्कूल में छुट्टी बहुत होती थी । त्यौहार की छुट्टी। पानी बरस गया उसकी छुट्टी। मास्टर साहब नहीं आए तो छुट्टी। फीस जमा करने की बाकी दिन की छुट्टी । उसके अलावा तो छुट्टियां हर त्यौहार की होती थी और साल में तीन बार लंबी छुट्टी होती थी  --  दशहरे की क्रिसमस की और एक लंबी छुट्टी गर्मियों की।

सातवीं क्लास में जब मैं था तो हमारे मास्टर होते थे शशिमौल  पंडित जी । हिंदी पढ़ाते थे और क्योंकि हिंदी ग्रामर मुझे बहुत अच्छा आता था और काफी लड़के हिंदी में गलती कर जाते थे इसलिए वह मुझे बहुत अच्छा मानते थे । उनके क्लास मैं एक प्रथा थी कि जब वह सवाल पूछे थे  तो लड़के हाथ उठाते जवाब देने के लिए  फिर उनके सवाल के जवाब जो जो लड़के गलत देंते वह गलत जवाब देने के बाद खड़े ही रहते। थोड़ी देर जब कोई लड़का सही जवाब दे  देता तो उस लड़के को घूसा  मारना होता उन खड़े हुए लड़कों के। 

  उसी से एक बार समस्या शुरू हुई। हुआ ऐसा कि मैंने सवाल का सही जवाब दिया और मुझे एक गुंडे लड़के की पीठ एक घूसा मारना पड़ा। उसने धीरे से कहा "बेटा देख लूंगा किसी दिन"।

 फिर होली का दिन आया। उस दिन उसने पकड़ के मेरे मुंह में कोलतार वाला रंग लपेट दिया। हमारे हेड मास्टर साहब बहुत स्ट्रिक्ट थे और उन्होंने यह नियम बना रखा था कि स्कूल में कोई होली नहीं खेलेगा और जो खेलेंगे उनको कड़ी सजा मिलेगी।

 तो मुझे पकड़ लिया गया। 6 लड़के पकड़े गए होली खेलते हुए और उनको ले जाकर हेड मास्टर साहब के कमरे के बाहर  एक लाइन मैं खड़ा कर दिया गया । फिर हेडमास्टर साहब बाहर आए। उन्होंने अपनी मोटी छड़ी उठाई और लाइन में खड़े पहले लड़के को पीटना शुरू कर दिया। जब उस लड़के को अधमरा कर दिया तो जाने दिया। फिर दूसरे की बारी आई। आखिर में मेरा नंबर आया।

 उन्होंने छड़ी उठाई तो अचानक मुझे देखकर कहने लगे "तुम यहां क्या कर रहे हो"। मैं जोर जोर से रोने लगा मैंने कहा "एक लड़के ने मुझे पकड़ कर कोलतार पोत दिया।  मैं क्या कर सकता था?"
उन्होंने मुझे बिना पिटाई किए छोड़ दिया।

हम लोगों के जमाने में बच्चों की पिटाई बहुत होती थी। स्कूल में मास्टर पीटते थे । घर में माता पिता के हाथ से पिटते थे। आजकल तो बच्चों को छूना भी मना है।

 आज काफी उम्र बीत जाने के बाद बचपन की याद आ गई । बड़ा लंबा सफर रहा है और इस सफर में सबसे ज्यादा यादें बचपन की हैं क्योंकि जो निश्चितता की जिंदगी हमने बचपन में बिताई वह फिर कभी नहीं आ पाई।

किसी ने सच ही कहा है-- 
" बचपन~ के~ दिन ~भी ~क्या ~दिन ~थे।
 हंसते ~गाते ~तितली~ बन ~के"।

***

Wednesday 30 December 2020

हमारे रसोई घर की कहानी

रसोई घर की कहानी

जब मानव जाति की कहानी शुरू हुई तब सब जगह बीहड़ ही था ।  न तो कोई गांव थे ना कोई शहर था ना सड़क थी न मकान थे न खेती थी । 

यह सोचकर आश्चर्य होता है कि मनुष्य की प्रजाति इस तरह के माहौल में शेर चीते भालू जंगली जानवर कीड़े मकोड़े इत्यादि से बचकर कैसे जीवित रही ।

 पर मनुष्य का दिमाग अन्य जानवरों के दिमाग से फर्क था तो शुरु से ही उसने अपने आप को नए ढांचे में लाना शुरू किया । पहले उसने पेड़ पर  मचान बनाए जंगली जानवरों से बचने के लिए । फिर उसने पत्थर से और लकड़ी से हथियार बनाए ताकि वह अपनी रक्षा कर सकें। जहां तक खाने-पीने का सवाल था वह पेड़ पौधों पर ही निर्भर था या छोटे-मोटे जानवरों को कच्चा खाने में।

 फिर अचानक उसे अग्नि के बारे में पता चला जब उसने देखा की जब दो पत्थर आपस में टकराते हैं तो चिंगारियां पैदा होती हैं । धीरे-धीरे उसने चिंगारी को आग में बदलना सीख लिया। फिर उस आग में उसने जंगली जानवरों को भूनकर खाना शुरू किया। फिर समय आया जब मनुष्य को खेती करने का ज्ञान हो गया और वह अनाज खाने  लगा। उसके बाद से खेतों से जुड़ा हुआ वह मनुष्य  गांव में रहने लगा और वहां झोपड़ियां बनाकर जानवरों से अपनी रक्षा करदा उससे सीख लिया ।

आदि मानव का बनाया हुआ चूल्हा अभी तक इस्तेमाल हो रहा है खासकर गांव में वैसे । अब रसोई गैस का बोलबाला है और धीरे-धीरे लकड़ी का चूल्हा गायब हो रहा है। हमारे घर में भी मेरे बचपन में लकड़ी का चूल्हा होता था। यह चिकनी मिट्टी और ईटों से बनाया जाता था और इसमें कुल्हाड़ी से काटी हुई लंबी लंबी लकड़ी जलाई जाती थी ।द

 बीसवीं सदी में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए । 19 वीं सदी में जो बिजली का आविष्कार हुआ था उसका विस्तृत रूप से इस्तेमाल होने लगा और बिजली के स्टोव बनने लगे जिस पर लोग खाना बना सकते थे। फिर कुकिंग गैस के बारे में भी पता चला और धीरे-धीरे लोगों की रसोई में कुकिंग गैस आ गई।

 हमारे यहां जब पहली गैस आई थी तब मेरे ख्याल से एक सिलेंडर ₹17 का था सिर्फ, जो कि अब 700 से ₹900 के बीच में आता है। 

रसोई घर में  एक जमाने में सिल और बट्टा हुआ करता था। सभी मसाले और चटनियां सिलबट्टे में पीसकर ही बनाई जाती थी खाना बनाने में इस्तेमाल करने के लिए।  धीरे-धीरे भारी-भरकम सिल की जगह बिजली की मिक्सी आ गई मसाला वगैरह पीसने के लिए। रसोई में बैठकर खाना बनाते थे अब रसोई घर में खड़े होकर खाना बनाते हैं पहले रसोई घर में ही चौका पटरा लगाकर बैठकर खाना खाते थे अब लोगों ने खाना खाने का अलग कमरा बना दिया है इसे अंग्रेजी में डाइनिंग रूम कहते हैं पहले रसोई घर में लकड़ी के चूल्हे की वजह से अक्सर बहुत धुॅआ भर जाता था जिसको निकालने के लिए छत के ऊपर चिमनी होती थी जिस पर से धीरे-धीरे धुआ निकलता था । आजकल तो धुआ निकालने के लिए बिजली के एग्जॉस्ट फैन हो गए हैं जो बहुत जल्दी ही रसोई घर की हवा बाहर फेंक देते हैं ।

आज से 100 साल बाद मनुष्य के घर में कैसी रसोई  होगी यह कहना बहुत मुश्किल है

***

Tuesday 29 December 2020

मोटर गाड़ी

मोटर गाड़ी

एक जमाना था जब कार स्कूटर मोटरसाइकिल बस यह सब नहीं होते थे। उस जमाने में एक नई  सवारी यानि साइकिल आई थी । अजीबोगरीब ढंग की ।  आगे बहुत बड़ा  पहिया होता था और पीछे  एक  छोटा पहिया । 

तब बग्गी तांगा एक्का इत्यादि ही होते थे । घोड़ों का राज था । घोड़े की भी सवारी होती थी और बैलगाड़ी में भी लोग आते जाते थे । सड़क  कच्ची ही होती थी। जब घुड़सवार सड़क पर जाता था तो घोड़े के टाप की धूल पीछे उड़कर जमा होती रहती थी।

 1890 के आस-पास कार का आगमन हुआ। रिक्शा टाइप की कार हुआ करती थी, खुली हुई। रईस लोगों को  टमटम की आदत है  और उसी की नकल  पर कार की  शुरुआत हुई  थी। आवाज बहुत करती थी । उसे स्टार्ट करना बड़ा मुश्किल होता था।

पुराने जमाने में अंग्रेजों का राज था भारत में तो ज्यादातर कार शुरू शुरू में ब्रिटेन की बनाई हुई होती थी जैसे मोरिस हिलमैन ऑस्टिन इत्यादि। शुरू शुरू में 20 और 30 के दशक में कुछ मोटर गाड़ियों में बाहर पीछे एक डब्बा जैसा होता था नौकर के बैठने के लिए। और भी देशों की कारें  बन रही थी  और काफी चल रही थी विदेशों में  देखिए कुछ फोटो  सौजन्य से  विकीपीडिया के।
 1940 के दशक में लैंड रोवर नाम की एक गाड़ी आई जो जीप और कार के बीच की सुविधा वाली की थी । हमारे पास भी 1950 के दशक में शुरू से ही लैंड रोवर रही है और उसी पर मैंने कार चलाना सिखा था ।

अमेरिका की गाड़ी बहुत बड़ी हुआ करती थी और अमेरिकन बहुत पैसे वाले लोग थे बीसवीं सदी में। 1950 के मध्य मे chevarlet company ने एक गाड़ी निकाली इंपाला जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती थी। तब से लेकर अगले कुछ सालों तक chevarlet में एक से एक नए मॉडल्स में इंपाला निकाली और लोगों का मन मोह लिया ।

21वीं सदी के शुरू से मानव जाति को वातावरण में प्रदूषण से चिंता होने लगी और बिजली से चलने वाली वाहनों का उत्पादन करने की अभियान चला इस अभियान में टेस्ला काफी आगे रहा है और बाद में अन्य मैन्युफैक्चर अभी आगे आए हैं अगले कुछ दशकों में डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहन लगभग समाप्त हो जाएंगे और बिजली से और सूर्य की ऊर्जा से चलने वाले वाहनों का प्रचलन होने लगेगा ।इससे मध्य पूर्व के इस्लामिक राज्यों का जो पूरे विश्व पर एक आर्थिक साम्राज्य है वह खत्म होने लगेगा

आगे और क्या होना है यह कहना बहुत कठिन है लेकिन उड़ने वाली कारों का आना शुरू हो गया है अभी व्यावसायिक रूप से तो नहीं आई है लेकिन सफल हो चुकी हैं।

अभी तो 21वीं सदी की शुरुआत ही हुई है इस सदी के अंत तक क्या क्या चमत्कार होंगे यह कहना संभव नहीं है।

***

Monday 28 December 2020

हमारे टेलीफोन की कहानी

हमारे टेलीफोन की कहानी

तब मैं कोई 5 साल का रहा होगा । एक दिन हमारे घर एक दुबला पतला आदमी आया, हाथ में एक पुराना किस्म का झोला लिए हुए और आकर बोला "मैं टेलीफोन विभाग से आया हूं। टेलीफोन लगाना है"

उस जमाने में टेलीफोन बहुत ही कम लोगों के पास हुआ करते थे। शहर में सिर्फ बड़े सरकारी अधिकारियों के पास या  पैसे वाले लोगों के पास होते थे.

फिर वाह अंदर आया और अपने काम में व्यस्त हो गया । थोड़ी देर के बाद उसने फोन को फिट कर दिया, दीवाल के किनारे, और उस फोन से किसी से बात करने लगा, फिर अचानक फोन को मेरी तरफ बढाते हुए  वह बोला "लो भैया अपने पिताजी से बात करो"। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ के पिता जी कहां से आ गया फोन में । वह तो दफ्तर गए हुए हैं । उसने मेरे कान में फोन लगा दिया। उधर से आवाज आ रही थी "हेलो हेलो बेटा" । आवाज मेरे पिताजी की थी । मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने घबरा कर कह दिया " बड़े साहब सलाम" जो उसने कहा पिताजी से कहा था जब उसने मेरे पिताजी से बात की थी । मेरे पिताजी हंसने लगे जोर-जोर से,  और मैं घबरा कर भाग गया बाहर।

 यह मेरा टेलीफोन से पहला परिचय था । यह candle टाइप टेलीफोन कई साल तक चला ।इसमें अपने आप डायल करने की सुविधा नहीं होती थी। एक्सचेंज से नंबर मागना पड़ता था । जब मैं फोन उठाता था तब कान में आवाज आती थी "नंबर प्लीज" । मै नंबर बता देता था और वह नंबर लगा देता था टेलीफोन एक्सचेंज में।

फिर सेल्फ डायलिंग फोन आए जिसमें आप उंगली डालकर डायल घुमाते थे । हम लोगों के पास काले रंग का सेल्फ डायलिंग फोन था जो काफी दिनों तक चला

उसके बहुत साल के बाद आया बहुत बढ़िया कलर वाला हल्के ऑफ व्हाइट रंग का डिजिटल फोन जिसमें बटन दबाना पड़ता था अंगुली डालकर घुमाना नहीं पड़ता था ।

90 के दशक में मोबाइल फोन आने शुरू हो गए शुरू शुरू में कॉल बहुत महंगी थी ₹8  मिनट । उस जमाने के ₹8 बहुत होते थे । फिर धीरे-धीरे रेट गिरने लगा और फोन भी सस्ते होने लगे । शुरू शुरू में नोकिया के फोन बहुत पॉपुलर थे और काफी महंगे भी थे। इन फोन को आजकल बेसिक फोन कहते हैं। 

अब दूसरे टाइप के बड़े फोन काफी प्रचलित हो गए हैं जिनको स्मार्टफोन कहा जाता है और जिस में इंटरनेट डाटा की वजह से आप फोन करने के अलावा बहुत कुछ और भी कर सकते हैं। 

जिस तेजी से विज्ञान के जगत में इलेक्ट्रॉनिक की प्रगति हो रही है उससे यह कहना संभव है कि अगले कुछ सालों में टेलीफोन के जगत में कुछ और भी चमत्कार हो सकते हैं

***

Sunday 27 December 2020

गधा

गधा

आजकल गधा नहीं दिखाई देता है।

 हमारे बचपन में सड़क पर धोबी के गधे कपड़े लादे रोज दिखते थे। उस जमाने में यह कहावत थी कि अगर विद्यार्थी कोई टॉपिक पढ़ रहे हो इम्तहान के पहले और उस समय गधा रेकने लगे तो उस टॉपिक पर एक सवाल इम्तहान में निश्चित रूप से आता था। अब आजकल के बच्चों को पता ही नहीं चल पाता कि इम्तिहान में क्या सवाल पूछे जाने हैं क्योंकि गधे तो गायब हो गए। 

दुनिया में सबसे बड़े गधे अंग्रेज होते हैं । मेरा मतलब इंग्लैंड के गधों से है मनुष्य से नहीं । विश्व के सबसे प्रसिद्ध गधे हार्टफोर्डशायर मैं पाए जाते हैं । अब यह तो पता नहीं यह दुनिया के सबसे अच्छे गधे क्यों माने जाते हैं । मैं तो समझता हूं हमारे अपने  स्वदेशी गधे दुनिया में सबसे अच्छे हैं क्योंकि सीधे-साधे हैं और एक जमाने में बहुत मेहनती हुआ करते थे जब धोबी के साथ रहते थे।

गधा का रिश्तेदार खच्चर होता है और खच्चर का कोई ज्यादा जिक्र नहीं होता है फिर भी एक बार खच्चर प्रसिद्ध हो गया था हॉलीवुड में , जब खच्चर पर फिल्म बनी "फ्रांसिस  द टॉकिंग म्यूल। अंग्रेजी में म्यूल गधे को  कहते हैं। इस फिल्म का हीरो एक खच्चर था जो मनुष्य की तरह बोलता था।

हिंदी के एक प्रसिद्ध व्यंग कार कृष्ण चंदर ने एक किताब लिखी है "एक गधे की आत्मकथा" और उसके बाद "एक गधे की वापसी" । इन दो पुस्तकों से गधे को समझने में काफी सहायता मिलती है। अगर जैसा इन दो पुस्तकों में है इसी तरह सभी गधे मनुष्य की भाषा बोलने लगे तो क्या होगा ? होगा यह कि जब एक बाप अपने बेटे से झूझला के कहे "अबे गधे इधर आ"  तो दौड़ता हुआ बाहर खडा गधा अंदर घुस आएगा और रेकने लगेगा।

***

हमें कृतज्ञ होना चाहिए

हमें कृतज्ञ होना चाहिए 

जी हां हमें कृतज्ञ होना चाहिए उन सभी लोगों का जिनकी वजह से इस विनाशकारी करोना काल में हम अपना जीवन निर्वाह सही प्रकार से कर पा रहे हैं।

 बहुत से दुकानदार -- चाहे दवाई वाले हो या ग्रॉसरी वाले हो या अन्य सामान बेचने वाले हो - आपके घर पर सामान डिलीवर कर रहे हैं । आपको कहीं जाना नहीं पड़ रहा है । घर के अंदर सुरक्षित  रहकर भी आपको सब सामान मिलता जा रहा है वह भी उचित मूल्य पर । इसके लिए हमें इनका आभार प्रकट करना चाहिए।

 हमें आभार प्रकट करना चाहिए उन मिल के मजदूरों का जिनके बूते पर बड़े-बड़े उद्योगपति हमें तरह-तरह के सामान दे पा रहे हैं । फैक्ट्री में बने हुए   सामान के पीछे इन्हीं लोगों की मेहनत है अगर हम इस दौरान मोबाइल खरीदते हैं या अपने वस्त्र खरीदते हैं ऑनलाइन या हम खाने पीने का सामान खरीदते हैं या आटा दाल चावल -- सब चीजों के पीछे वह गरीब मजदूर हैं जो फैक्ट्रियों में घंटो काम कर रहे  हैं   और उसके बदले हमें घर बैठे सब सामान मिल रहा है। 

हमें आभार प्रकट करना चाहिए उन डॉक्टर्स का और नर्सेज का जो बारह बारह घंटे काम करके बीमार लोगों की सेवा कर रहे हैं अपने ऊपर बहुत बड़ा खतरा खतरा मोल लेते हुए । हम वायरस से ग्रसित लोगों से बच रहे हैं और वह जानबूझकर वायरस से ग्रसित लोगों के बीच में रहकर उन्हें ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं।

हमें आभार प्रकट करना चाहिए उन किसानों का जो इस भयंकर महामारी के रहते हुए भी खेती करके अन्न उगा  रहे हैं और हम लोगों को खाने पीने की चीजें उपलब्ध करवा रहे हैं। इन सभी मेहनत कश किसानों का भला हो और उन्हें अपने उत्पाद का सही मूल्य मिले यही हमारी जिम्मेदारी है।

 बहुत से बुजुर्ग लोग अकेले रह रहे हैं। उनमें से वह लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें कोई ऐसे सज्जन पुरुष मिल जाते हैं जो बैंक जाकर उनके पैसे ले आते हैं उनके बिल पे कर देते हैं और जो उनके अन्य काम निपटाने में उनकी मदद करते हैं । इन सज्जन लोगों का हमें धन्यवाद करना चाहिए और यदि हम संपन्न हैं तो हमें रुपया पैसे से उनकी मदद करनी चाहिए।

 संकट तो आते रहेंगे और चले जाएंगे पर यदि किसी संकट के बाद हम पहले से अच्छे मनुष्य बन सके तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

***

Wednesday 23 December 2020

क्या कभी आपने सोचा था ?

क्या कभी आपने सोचा था ?

कभी आपने सोचा था कि जब आलू खरीदेंगे  तो सबसे पहले उसको साबुन के पानी में  भिगा कर रखेंगे काफी देर देंगे। उसके बाद सादे पानी से धोकर संभाल देंगे इस्तेमाल के लिए ।

वैसे ही सभी सब्जियां चाहे कद्दू हो लोकी हो हरा साग हो सब की धुलाई आजकल हो रही है साबुन के पानी से ।

कभी आपने सोचा था कि आप दिनभर साबुन से हाथ धोते रहेंगे और जो साबुन की टिकिया 1 महीने चलती है वह 4 दिन में खत्म हो जाएगी यह भी आप कर रहे हैं इस वायरस के जमाने में ।

कभी आपने सोचा था कि आप के परिजन जब आपसे मिलने आएंगे तो बाहर फाटक पर खड़े होकर बात करेंगे और आप अंदर मास्क के लगाए उनसे बात कर रहे होंगे । यह किस तरह का  अतिथि  सत्कार  है ?

कभी आपने सोचा था की अमेज़न फ्लिपकार्ट से जब आप सामान मगाएंगे तो वह बंदा घंटी बजा कर बाहर के गेट में ही सामान छोड़कर  चुपचाप भाग जाएगा । यह भी check नहीं करेगा कि सामान सही घर में दे रहा है या नहीं।

 सन 2020 हमारे जीवन का सबसे घटिया साल रहा क्योंकि इस तरह का तमाशा पहले कभी हमने नहीं देखा था। पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त हो गई है। वायरस को रोकने के लिए तरह-तरह के उपाय किए गए । सोशल डिस्टेंसिंग यानी एक दूसरे से दूर खड़े होने का काम ।  मास्क भी लगाया गया है ।तरह-तरह की दवाइयां भी चल रही है। एक  आयुर्वेदाचार्य ने तो फटाफट वायरस के आते ही अपनी चमत्कारी दवा का डब्बा यूट्यूब में पेश कर दिया यह  कह कर कि इससे वायरस का खात्मा हो जाएगा पर उनके इस क्लेम पर सरकारी रोक लग गई क्योंकि उनके पास इस को प्रमाणित करने का कोई उपाय नहीं था । इसी तरह कहा गया कि क्लोरोक्विन खाने से वायरस का नाश हो जाता है किसी ने कहा रामडिसवार खाने से वायरस का नाश  हो जाता है।  किसी ने कहा हल्दी काली मिर्च सौठ का अर्क पियो तो किसी ने कहा कि तुलसी की पत्ती मैं दालचीनी मिलाकर पियो । पूरे साल भर यह सब तमाशा चले पर लोग मरते चले गए हैं ।

अमेरिका में तो बुरा हाल है विश्व का शायद अकेला देश है जहां की लोग दो भागों में बट गए हैं एक कहता है कि मास्क लगाना जरूरी नहीं है क्योंकि वायरस एक बकवास है और दूसरा कहता है वायरस बहुत खतरनाक है मास्क लगाना बहुत जरूरी है और दोनों दलों ने मारपीट तक की नौबत आ जाती है और अमेरिका में लोग मरते चले जा रहे हैं । करीब तीन लाख लोग मर चुके हैं लेकिन अभी तक होश नहीं आया है उन लोगों को जो वायरस को एक झूठा तमाशा साबित करने में लगे हुए हैं ।

गीता का एक श्लोक है 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

शब्दार्थ-
मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।

तो प्रार्थना यह है कि प्रभु आप प्रकट हों और इस वायरस का विनाश करें।

 वैक्सीन के रूप में  प्रकट हो जाइए ताकि विश्व का कल्याण हो।

***

रक्तबीज रूपी वायरस

रक्तबीज रूपी वायरस 

कल बहुत बुरा लगा। हमारे क्लोज रिलेशन जो हमें बहुत प्रिय हैं कल हमारे यहां आए । उन्होंने व्हाट्सएप कर दिया था कि हम आएंगे और गेट से ही आपका कुशल समाचार लेंगे  । अंदर नहीं आएंगे।

 वैसा ही हुआ । हम उनसे दो 3 मीटर की दूरी पर खड़े होकर मास्क लगाकर अंदर से उनसे बात कर रहे थे और वह बाहर गेट पर खड़े थे ।

 मुश्किल से पाँच मिनट बातें हो पाई फिर वह चले गए । और कोई समय होता तो अंदर आकर बैठते । अदरक की चाय पीते बिस्किट दालमोठ  खाते और गप्पे लड़ाते घंटे 2 घंटे तक।

 इसीलिए कल बहुत दुख हुआ कि 102 साल बाद  फिर से एक वायरस पृथ्वी में हाहाकार मचा रहा है। करीब करीब एक साल हो गया है पूरा और तरह-तरह के उपाय पृथ्वी पर चल रहे हैं वायरस से बचने के लिए और इस पूरे साल में सभी लोग परेशान हो गए हैं। 

जहान है तो जहान है । हमको अपनी भी रक्षा करनी हैं और जो हमसे दूर खड़े हमसे बात करते हैं उनकी भी  लेकिन अब इस वायरस को जाना चाहिए क्योंकि हर चीज की एक सीमा होती है और इस वायरस ने अब सब हदें पार कर दी है।

कभी-कभी रक्तबीज की कथा की याद आ जाती है। 
देवी की कथा में कहा गया है कि रक्तबीज नाम का दैत्य पृथ्वी पर हाहाकार मचा रहा था तो लोगों ने देवी से गुहार की। देवी ने रक्तबीज पर आक्रमण कर दिया लेकिन रक्तबीज का खून जहां गिरता था वहां से सैकड़ों रक्तबीज और पैदा हो जाते थे। यही हाल इस वायरस का है। सैकड़ों करोड़ों अरबों की संख्या में यह फैला हुआ है पूरे विश्व में और हमें मां दुर्गा की तरह शक्तिशाली एक समाधान चाहिए इसका ।

विज्ञान ने इस समाधान को एक वैक्सीन के रूप में प्रस्तुत किया है। देखना यह है कि वैक्सीन इस रक्तबीज को पृथ्वी से कैसे हटाता है।

***