रसोई घर की कहानी
जब मानव जाति की कहानी शुरू हुई तब सब जगह बीहड़ ही था । न तो कोई गांव थे ना कोई शहर था ना सड़क थी न मकान थे न खेती थी ।
यह सोचकर आश्चर्य होता है कि मनुष्य की प्रजाति इस तरह के माहौल में शेर चीते भालू जंगली जानवर कीड़े मकोड़े इत्यादि से बचकर कैसे जीवित रही ।
पर मनुष्य का दिमाग अन्य जानवरों के दिमाग से फर्क था तो शुरु से ही उसने अपने आप को नए ढांचे में लाना शुरू किया । पहले उसने पेड़ पर मचान बनाए जंगली जानवरों से बचने के लिए । फिर उसने पत्थर से और लकड़ी से हथियार बनाए ताकि वह अपनी रक्षा कर सकें। जहां तक खाने-पीने का सवाल था वह पेड़ पौधों पर ही निर्भर था या छोटे-मोटे जानवरों को कच्चा खाने में।
फिर अचानक उसे अग्नि के बारे में पता चला जब उसने देखा की जब दो पत्थर आपस में टकराते हैं तो चिंगारियां पैदा होती हैं । धीरे-धीरे उसने चिंगारी को आग में बदलना सीख लिया। फिर उस आग में उसने जंगली जानवरों को भूनकर खाना शुरू किया। फिर समय आया जब मनुष्य को खेती करने का ज्ञान हो गया और वह अनाज खाने लगा। उसके बाद से खेतों से जुड़ा हुआ वह मनुष्य गांव में रहने लगा और वहां झोपड़ियां बनाकर जानवरों से अपनी रक्षा करदा उससे सीख लिया ।
आदि मानव का बनाया हुआ चूल्हा अभी तक इस्तेमाल हो रहा है खासकर गांव में वैसे । अब रसोई गैस का बोलबाला है और धीरे-धीरे लकड़ी का चूल्हा गायब हो रहा है। हमारे घर में भी मेरे बचपन में लकड़ी का चूल्हा होता था। यह चिकनी मिट्टी और ईटों से बनाया जाता था और इसमें कुल्हाड़ी से काटी हुई लंबी लंबी लकड़ी जलाई जाती थी ।द
बीसवीं सदी में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए । 19 वीं सदी में जो बिजली का आविष्कार हुआ था उसका विस्तृत रूप से इस्तेमाल होने लगा और बिजली के स्टोव बनने लगे जिस पर लोग खाना बना सकते थे। फिर कुकिंग गैस के बारे में भी पता चला और धीरे-धीरे लोगों की रसोई में कुकिंग गैस आ गई।
हमारे यहां जब पहली गैस आई थी तब मेरे ख्याल से एक सिलेंडर ₹17 का था सिर्फ, जो कि अब 700 से ₹900 के बीच में आता है।
रसोई घर में एक जमाने में सिल और बट्टा हुआ करता था। सभी मसाले और चटनियां सिलबट्टे में पीसकर ही बनाई जाती थी खाना बनाने में इस्तेमाल करने के लिए। धीरे-धीरे भारी-भरकम सिल की जगह बिजली की मिक्सी आ गई मसाला वगैरह पीसने के लिए। रसोई में बैठकर खाना बनाते थे अब रसोई घर में खड़े होकर खाना बनाते हैं पहले रसोई घर में ही चौका पटरा लगाकर बैठकर खाना खाते थे अब लोगों ने खाना खाने का अलग कमरा बना दिया है इसे अंग्रेजी में डाइनिंग रूम कहते हैं पहले रसोई घर में लकड़ी के चूल्हे की वजह से अक्सर बहुत धुॅआ भर जाता था जिसको निकालने के लिए छत के ऊपर चिमनी होती थी जिस पर से धीरे-धीरे धुआ निकलता था । आजकल तो धुआ निकालने के लिए बिजली के एग्जॉस्ट फैन हो गए हैं जो बहुत जल्दी ही रसोई घर की हवा बाहर फेंक देते हैं ।
आज से 100 साल बाद मनुष्य के घर में कैसी रसोई होगी यह कहना बहुत मुश्किल है
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