Total Pageviews

Friday, 18 December 2020

एक जमाना वह भी था

जब मनुष्य की उम्र काफी हो जाती है तो पीछे मुड़ के काफी दूर तक उसको दिखाई देता है ऐसे ही मुझको भी दिखाई देता है ।

आजकल यह सोच कर आश्चर्य होता है कि कभी हम भी इतने छोटे थे की एल के जी क्लास के बिल्कुल छोटे लिलिपुटियन कुर्सी में आराम से बैठ जाते थे क्लास में एबीसीडी सीखने के लिए । 
अभी तक याद है हमारी क्लास टीचर एक आइरिश नन हुआ करती थी। करीब 20 , 22 साल की रही होगी तब । बहुत सुंदर थी और सफेद प्रेम का चश्मा लगाती थी।

 एक तरफ तो उसकी सुंदरता थी और दूसरी तरफ हमारे बनवारी लाल शर्मा जो टीचर थे छठी क्लास में ! क्या उनकी शक्ल थी ! उनको देखकर लगता था जैसे रावण के दफ्तर के बड़े बाबू।  बच्चों को मार मार के अधमरा कर देना उनका रोज का नियम था। एक और मास्टर थे नाइंथ क्लास में। नाम मिस्टर विश्वास था। अंग्रेजी पढ़ाते थे और हर समय कान में उंगली डालकर बातें करते थे । उनके क्लास में कई शरारती लड़के थे जो उनके आने के पहले उनकी कुरसी में उल्टी करके ऑलपीन घुसा दिया करते थे और जब वह आकर बैठते थे तो अचानक उछाल जाते थे । उसके बाद जिस बच्चे पर शक हुआ उसकी धुनाई कर देते थे । आजकल तो मास्टर अगर बच्चे को छू भी दें तो उसकी छुट्टी हो गई।

 जब इंटर में आए तो क्लास में लड़कियां भी आ गई।  पर उस जमाने में लड़कियां सिर्फ आगे की बेंच में बाएं तरफ बैठती थी मास्टर जी के बिल्कुल पास और हम पीछे दूर बैठकर उन्हें निहारते रहते थे। आजकल तो लड़कियां जहां चाहे वहां बैठ जाती हैं पीछे की सीट में भी।

 जमाना बदल गया भैया । तब गुड़ चना लइया खाया करते थे और आजकल चाउमीन मोमोस खाते हैं  बच्चे। तब जानी वाकर का जमाना था और अब पता नहीं किसका है ।

गैस पर खिचड़ी चढ़ा रखी है और सीटी बज रही है तो भैया अब लिखना बंद करते हैं और उसी की तरफ चलते हैं क्योंकि इस कोरोनावायरस के जमाने में खाना तो हम ही को बनाना है और हम ही को खाना है । बर्तन भी हम ही को साफ करने हैं।  झाड़ू बुहारी भी हम ही को करनी हैं । 

चलो भैया यह जमाना भी देख लेंगे।

***

No comments: