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Saturday, 1 March 2025

of astrologers and people in trouble

All over the world astrology is a popular subject . Lot of people read their Sunsigns forecasts in newspapers everyday. Books are sold based on sun signs. lot of astrologers are seen sitting in  footpaths at tourist popular spots advising people on the past and future. 

what is the truth about astrology ? 

well, astrology is an  ancient science  dealing with the past and future of  person according to the precise position of planets at the time of birth at particular location. A chart is drawn and then according to the principles of astrology the astrologer uses his knowledge to tell us about our past and future and also tell remedies.

There are fraudulent people in every walk of life and astrology is no exception.

There are things that are beyond the understanding of science.

Science is always in a denial mode for anything that cannot be translated into a formula.

The ancient Hindus believed that human body has an electromagnetic field but science kept denying it and mocking it until 1954 . You must realise that science is at a primitive stage in the scheme of things of the universe. Science is not in a position to explain why certain things happen.

It is common knowledge in India that's a good tantrik can read your thoughts. How do scientists explain this ? 

The test to which these tantriks are put under controlled condition is not conducive to the working of psychic power.

Go to any well known AGASTYA  NADI reader and you will be surprised to see how he can tell things about your past with amazing ease and correctness.

According to my experience astrology is a complicated but authentic science but most people who call themselves astrologer have limited knowledge about  the subject. It has  become a good means of income for the so called astrologers. but astrology is a very efficient and authentic scientific instrument to know about a person's past and future

The problem with the world is that it has  a closed mind to things that it cannot understand. All along the history of the world many people suffered on account of this - such as Nicolaus Copernicus.

It is generally accepted that since the future is in a  fluid state these thought readers cannot have a proper grip over the events that have not happened. That's why their reading for the future is open to error. 

The bottom line is that you already know your past so these thought readers are not of much use to you unless you are curious to test their power to read your past. And at the hands of a good astrologer, astrology is a useful instrument to be guided about the future.

Wednesday, 22 January 2025

बच्चों के पढ़ाई के विषय

शिक्षा नीति क्या  होनी चाहिए

हमारी शिक्षा नीति ऐसी होनी चाहिए की बारहवां दर्जा पास करके हम इस लायक हो जाए की अपने पैरों पर खड़े हो सके और अगर हमें नौकरी ना मिले तो हम जीवन निर्वाह के लिए अपने आप कुछ काम कर सके।

जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो एक विषय था हिस्ट्री। अब बालक या बालिका के लिए है यह क्या जरूरी है कि वह याद रखें कि  क्या मोहम्मद तुगलक पागल था।।
 यह भी आवश्यक नहीं है कि उसे पता होना चाहिए की मुगल साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे। इसी तरह दुनिया का इतिहास पढ़ाने  पर भी सवाल उठता है। क्या हमारे लिये बचपन में यह  जानना जरूरी कि फ्रांस और रूस के युद्ध में क्या हुआ था और नैपोलियन ने अपने  युद्ध में क्या गलतियां की थी जिससे वह हार गया।

पर यह सब हमें पढ़ाया जाता है और इम्तिहान पास करने के लिए जरूरी है कि हमें पता होना चाहिए की  तुगलक पागल था या नहीं।

 इससे बड़ी बकवास क्या हो सकती है। 

हमें यहां नहीं पढ़ाया जाता कि हमें किस तरह स्वस्थ रहना है या बाजार में बिकने वाली चीजों में क्या चीजें हैं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और कौन से खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए।  यानी कि जीवन निर्वाह के लिए जो  याद होना चाहिए स्वास्थ्य संबंधी उसके बारे में एक भी शब्द नहीं पढ़ा जाता। 

अब एक दूसरा विषय ले लीजिए । वह लिटरेचर है ।चाहे वह अंग्रेजी लिटरेचर हो चाहे वह हिंदी लिटरेचर हो ।

अब इसका एक बच्चे के भविष्य से क्या ताल्लुक है ? क्या निराला की कविताओं कोई बच्चों के लिए समझना जरूरी है ? या क्या यह जरूरी समझता है कि शेली या कीट्स ने अपनी कविताओं में क्या लिखा था और क्यों लिखा । यह तो पूरा पागलपन है और एक बच्चे के साथ अन्याय है।

अब भूगोल को भी एक पूरे विषय के रूप में सेकेंडरी एजुकेशन में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि ऑस्ट्रेलिया की जलवायु क्या है या विश्व में कहां-कहां तेल के कुएं हैं यह जानना है एक बच्चे के लिए जरूरी नहीं है। 

इस तरह के और भी विषय है जैसे मनोविज्ञान। पैवलौव ने अपने कुत्ते के ऊपर क्या एक्सपेरिमेंट किया था 
और उसका क्या मतलब निकलता था इसका एक बच्चे से क्या लेना देना है ? मनोविज्ञान विषय भी हायर एजुकेशन का ही सब्जेक्ट होना चाहिए।

शिक्षा नीति जो अंग्रेजों की बनाई हुई है (और उस समय यह बहुत काम की थी) को सिर्फ ग्रेजुएशन लेवल पर ही पढ़ाया चाहिए जिन लोगों को इसमें दिलचस्पी हो और इस विषय में आगे अपना कैरियर बनाना चाहते हैं।

प्रजातंत्र का सबसे बड़ा हिस्सा होता है देश का और प्रदेश का चुनाव और जिस तरह से वातावरण बनता जा रहा है ज्यादातर नेता अपने चुनाव के बारे में ही सोचते रहते हैं कि किस तरह पब्लिक को लगाकर वोट लिया जाए और उनके पास कम समय होता है देश की समस्याओं को सुलझाने का खासकर देश की शिक्षा नीति को जो बहुत जरूरी है ।

देखना यह है कि इस तरह के सुधार कब आते हैं जिस देश का कल्याण हो।

Saturday, 16 November 2024

पुराने जमाने का रुपया और आज का रुपया

1955 का रुपया और आज का रुपया 

समय के साथ काफी परिवर्तन सब जगह हो रहे हैं और सबसे ज्यादा परिवर्तन जो एक वरिष्ठ नागरिक देखा है वह रुपए की परचेसिंग पावर यानी खरीदने की शक्ति। 

अब देखिए सन 1938 का ₹1 का सिक्का और आज का ₹1 का सिक्का तो आपके समझ में आ जाएगा कि रुपए की कीमत में कितने गिरावट हुई है। पहले वाला है बिल्कुल शुद्ध स्टर्लिंग चांदी का और दूसरा साधारण लोहे पर पालिश किया हुआ।


और ताज्जुब की बात तो यह है कि उसे जमाने में चार आने का और आठ आने का सिक्का विशुद्ध चांदी का होता था। 

55 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में सर सुंदरलाल हॉस्टल के बाहर सड़क पर केले वाला बैठता था और मैं यूनिवर्सिटी जाते वक्त वहां रुक कर तीन केले खरीदना था खाने के लिए उसी समय। मैं उसे दो आने दे देता था तीन केले के लिए यानी 50 पैसे का एक दर्जन केले । आज केले 80 रुपए दर्जन है।

 लखनऊ में महानगर से हुसैनगंज की तरफ लौटते हुए निशातगंज होकर रास्ता जाता है जहां बीच में सब्जी मंडी है। 1976 में महानगर से लौटते समय सब्जी मंडी से कुछ सब्जियों खरीदीं। टमाटर 25 पैसे किलो था। आज टमाटर के दाम₹100 के ऊपर है एक किलो के।

1960 के दशक में हजरतगंज से शाम को लौटते वक्त डबल रोटी और मक्खन ले आते थे। एक बड़ी डबल रोटी 50 पैसे की आती थी और 100 ग्राम मक्खन 50 पैसे का था। 

उसे जमाने में कहावत थी की गरीब आदमी को सिर्फ दाल रोटी में गुजारा करना पड़ता है। आज अरहर की दाल 275 रुपए किलो है और बाकी दालें भी 180 के आसपास।

1972 में मैंने एक बजाज स्कूटर खरीदा था 3400 रुपए में। पहली बार पेट्रोल भरवाया तो ₹1 लीटर पेट्रोल के दाम थे। 

1950 के दशक में कागजी बादाम ₹5 किलो था और देसी घी भी इसी दाम का था।

1960 के आसपास लखनऊ में सिटी बस सर्विस काफी अच्छी थी तब मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी था और वहां से अक्सर हुसैन गंज की तरफ आना जाना होता था । यूनिवर्सिटी के बस स्टॉप से हुसैनगंज का एक तरफ का बस का किराया 6 पैसे था। 

हजरतगंज में 1960 के आसपास हनुमान मंदिर के बगल में एक रेस्टोरेंट हुआ करता था जिसका नाम बंटूस था।
वहां थाली के हिसाब से खाना मिलता था। एक थाली भोजन 50 पैसे का था। 

उस जमाने में लखनऊ के दर्जी एक कमीज की सिलाई का डेढ़ रुपया लेते थे और एक पेंट की सिलाई का ₹3.25 पैसा। गरम कोट की सिलाई 20 से ₹25 होती थी।

1950 के शुरू में भारत में कोका-कोला नाम की कोई चीज नहीं थी। कोका-कोला के रंग का ही एक कोल्ड ड्रिंक काफी पॉपुलर था इसको विम्टो कहते थे। 1960 के दशक में कोका-कोला भारत में काफी पकड़ बना चुका था । दाम सिर्फ 25 पैसे थे एक बोतल के। तब कांच की बोतल हुआ करती थी। 

पहले रेलवे के प्लेटफार्म में जाने के लिए कोई टिकट नहीं होता है पर 50 के दशक में पहले एक आने यानी 6 पैसे और बाद में दो आने आने 12 पैसे का प्लेटफार्म का टिकट होता था। 

1960 और 2024 के दाम की अगर तुलना करें तो करीब करीब सभी चीजों का दाम 100 से 150 गुना बढ़ गया है। और कुछ चीजों का दाम जैसे अरहर की दाल तीन सौ गुना से भी ज्यादाबढ़ गया है । दाल तब 40 या 50 पैसे की 1 किलो आती थी।

पर सबसे मजेदार बात तो यह है कि हमारे बचपन हमारे दादाजी कहा करते थे कि क्या जमाना आ गया है‌।  कितनी महंगी हो गई है सब चीज़े !!

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Friday, 4 October 2024

लापता लेडीज

Lapata ladies


आमिर खान की लापता लेडीज  पिक्चर को सन 2001 के टाइम में दिखाया गया है। जिस तरह से गांव में मोबाइल फोन का इस्तेमाल दिखाया गया है उस हिसाब  से पिक्चर की घटनाओं का समय सन 2008 के बाद का होना चाहिए था जब मोबाइल फोन गांव तक पहुंचने लगे थे । सन 2001 में गांव की तो बात छोड़ दो, शहरों में भी मोबाइल फोन नहीं होते थे एक दो रईसों को छोड़कर। मोबाइल फोन आम लोगों की पहुंच के बाहर था क्योंकि एक तो उसे खरीदने के लिए हजारों रुपए चाहिए होते थे और दूसरा एक मिनट की बात करने का चार्ज बहुत ही ज्यादा होता था। उस जमाने में गांव की लड़की के पास मोबाइल फोन कैसे हो सकता  था। 

यह प्रेस कटिंग देखिये मोबाइल फोन के बारे में

अब आगे बढ़ते हैं। गांव में गलती से जो लड़की आ गई थी दीपक की असली दुल्हन की जगह उसका नाम था जया।जया ने दीपक के गांव पहुंचने पर मोबाइल फोन का सिम कार्ड जला दिया था ताकि कोई उसको फोन ना कर सके और फिर  गांव की मोबाइल की  दुकान से नया सिम कार्ड खरीद के मोबाइल में लगा लिया। अब सवाल यह उठता है कि 2001 में उस गांव में ऐसी कौन सी दुकान  थी जहां सिम कार्ड मिलते थे । सन 2001 में  इक्के दुक्के लोगों के पास ही मोबाइल फोन होते थे और  वह भी उन शहरों में जहां मोबाइल नेटवर्क होता था यानि बड़े-बड़े शहरों में। बिहार के इस  गांव में मोबाइल फोन के सिम कार्ड की दुकान होना आश्चर्य की बात है।

दूसरी बात यह है कि अगर जया के पास मोबाइल फोन था भी तो गांव में तो कनेक्टिविटी थी ही नहीं 2001 में। 

जया गांव में एक दुकान में जाकर देहरादून के कृषि विद्यालय का फॉर्म ऑनलाइन डाउनलोड करवाती है और उसको ऑनलाइन भर के भेज देती है। इस तरह की स्मार्टफोन वाली ऑनलाइन डाउनलोड फैसिलिटी 2001 में नहीं थी। और गांव में 2001 में ऐसा होने का तो सवाल ही नहीं उठाता।

फिलहाल दीपक के घर में  रह रही थी जया। दीपक के घर के लोगों ने उससे उसके घर का फोन नंबर पूछा ताकि घरवालों को खबर कर दें पर सवाल यह उठता है की सन 2001 में बिहार के गांवों में क्या घरों में रेजिडेंशियल टेलीफोन होते थे । 

खैर जो भी हो मोबाइल फोन इस पिक्चर का अहम हिस्सा है और उसे हटाया नहीं जा सकता क्योंकि उसके बिना कुछ जरूरी घटनाएं हो ही नहीं  सकती है इसलिए कहानीकार की इस छोटी सी oversight को  नजरअंदाज करना जरूरी है।

पर पिक्चर में एक बात जरूर खटकती है। जया की शादी एक क्रिमिनल टाइप बहुत घटिया आदमी के साथ हो गई थी जिसके ऊपर संदेह है कि उसने अपनी पहली बीवी को जलाकर मार दिया था । इसके बारे में शायद पुलिस में कंप्लेंट भी थी। इस आदमी ने पुलिस थाने में
पुलिस इंस्पेक्टर के सामने जया को देखते ही एक जोरदार थप्पड़ मारा और धमकी दी कि घर जाकर चर्बी उतार लेंगे। उसने इंस्पेक्टर के सामने जया के मायके वालों को भी धमकी दी । इतना ही नहीं उसने पुलिस इंस्पेक्टर को भी धमकी दी कि मैं तुमको देख लूंगा।
कहानी सही तब होती जब पुलिस इंस्पेक्टर उसको जया के साथ मारपीट करने  और जान से मारने की धमकी देने के जुर्म में फौरन गिरफ्तार कर लेता और उसके साथ आए गुंडोंको भी जेल में डाल देता। लेकर आश्चर्य की बात है
 की पुलिस इंस्पेक्टर ने ऐसा नहीं किया जबकि वह काफी कड़क आदमी था।  सिर्फ उससे यह कहा कि अगर जया को परेशान करने की कोशिश की तो मैं दुनिया के किसी कोने में भी हूं वहां से चलकर आऊंगा और तुमको हथकड़ी पहना दूंगा‌। यह बातें कमजोर तरह का तरीका था एक अपराधी तत्व के व्यक्ति से डील करने का। 
ऐसे व्यक्ति से जया को और उसके परिवार वालों को जान का खतरा था।

जो भी हो लापता लेडीज एक  बढ़िया पिक्चर है और इसमें कलाकारों ने जिस तरह से काम किया है वह बहुत ही सराहनीय है। थाने के दरोगा जी का भी अभिनय बहुत अच्छा है । इस किरदार को फिल्म में रवि किशन ने निभाया है जो भोजपुरी फिल्मों के एक मंजे हुए अभिनेता हैं।


ऑस्कर के लिए विश्व की सबसे बढ़िया कुछ पिक्चरों मे इस पिक्चर का नाम भी शामिल कर लिया गया है  यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।

पिक्चर अवश्य देखिए और इसका आनंद उठाइए।

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