1955 का रुपया और आज का रुपया
समय के साथ काफी परिवर्तन सब जगह हो रहे हैं और सबसे ज्यादा परिवर्तन जो एक वरिष्ठ नागरिक देखा है वह रुपए की परचेसिंग पावर यानी खरीदने की शक्ति।
अब देखिए सन 1938 का ₹1 का सिक्का और आज का ₹1 का सिक्का तो आपके समझ में आ जाएगा कि रुपए की कीमत में कितने गिरावट हुई है। पहले वाला है बिल्कुल शुद्ध स्टर्लिंग चांदी का और दूसरा साधारण लोहे पर पालिश किया हुआ।
और ताज्जुब की बात तो यह है कि उसे जमाने में चार आने का और आठ आने का सिक्का विशुद्ध चांदी का होता था।
55 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में सर सुंदरलाल हॉस्टल के बाहर सड़क पर केले वाला बैठता था और मैं यूनिवर्सिटी जाते वक्त वहां रुक कर तीन केले खरीदना था खाने के लिए उसी समय। मैं उसे दो आने दे देता था तीन केले के लिए यानी 50 पैसे का एक दर्जन केले । आज केले 80 रुपए दर्जन है।
लखनऊ में महानगर से हुसैनगंज की तरफ लौटते हुए निशातगंज होकर रास्ता जाता है जहां बीच में सब्जी मंडी है। 1976 में महानगर से लौटते समय सब्जी मंडी से कुछ सब्जियों खरीदीं। टमाटर 25 पैसे किलो था। आज टमाटर के दाम₹100 के ऊपर है एक किलो के।
1960 के दशक में हजरतगंज से शाम को लौटते वक्त डबल रोटी और मक्खन ले आते थे। एक बड़ी डबल रोटी 50 पैसे की आती थी और 100 ग्राम मक्खन 50 पैसे का था।
उसे जमाने में कहावत थी की गरीब आदमी को सिर्फ दाल रोटी में गुजारा करना पड़ता है। आज अरहर की दाल 275 रुपए किलो है और बाकी दालें भी 180 के आसपास।
1972 में मैंने एक बजाज स्कूटर खरीदा था 3400 रुपए में। पहली बार पेट्रोल भरवाया तो ₹1 लीटर पेट्रोल के दाम थे।
1950 के दशक में कागजी बादाम ₹5 किलो था और देसी घी भी इसी दाम का था।
1960 के आसपास लखनऊ में सिटी बस सर्विस काफी अच्छी थी तब मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी था और वहां से अक्सर हुसैन गंज की तरफ आना जाना होता था । यूनिवर्सिटी के बस स्टॉप से हुसैनगंज का एक तरफ का बस का किराया 6 पैसे था।
हजरतगंज में 1960 के आसपास हनुमान मंदिर के बगल में एक रेस्टोरेंट हुआ करता था जिसका नाम बंटूस था।
वहां थाली के हिसाब से खाना मिलता था। एक थाली भोजन 50 पैसे का था।
उस जमाने में लखनऊ के दर्जी एक कमीज की सिलाई का डेढ़ रुपया लेते थे और एक पेंट की सिलाई का ₹3.25 पैसा। गरम कोट की सिलाई 20 से ₹25 होती थी।
1950 के शुरू में भारत में कोका-कोला नाम की कोई चीज नहीं थी। कोका-कोला के रंग का ही एक कोल्ड ड्रिंक काफी पॉपुलर था इसको विम्टो कहते थे। 1960 के दशक में कोका-कोला भारत में काफी पकड़ बना चुका था । दाम सिर्फ 25 पैसे थे एक बोतल के। तब कांच की बोतल हुआ करती थी।
पहले रेलवे के प्लेटफार्म में जाने के लिए कोई टिकट नहीं होता है पर 50 के दशक में पहले एक आने यानी 6 पैसे और बाद में दो आने आने 12 पैसे का प्लेटफार्म का टिकट होता था।
1960 और 2024 के दाम की अगर तुलना करें तो करीब करीब सभी चीजों का दाम 100 से 150 गुना बढ़ गया है। और कुछ चीजों का दाम जैसे अरहर की दाल तीन सौ गुना से भी ज्यादाबढ़ गया है । दाल तब 40 या 50 पैसे की 1 किलो आती थी।
पर सबसे मजेदार बात तो यह है कि हमारे बचपन हमारे दादाजी कहा करते थे कि क्या जमाना आ गया है। कितनी महंगी हो गई है सब चीज़े !!
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