"हम ठहरे"
दाज्यू तुम तो हो देसी पहाड़ी
दाज्यू असली पहाड़ी हम ठहरे।।
देखा क्या तुमनें कभी है शीशूँणा
छूओगे तो भाँगड़ा तुम करने वाले ढहरे.
तुम तो इजा को कहते हो मम्मी
पर हम पक्के इजा बौज्यू वाले ठहरे ||
तुम कुरसी और मेज में खाते हो खाना
हम तो अटाली में खाना खाने वाले ठहरे ।।
क्वीड़ पाथना कोई हमसे तो सीखे
हम जो पहाड़ो में रहने वाले ठहरे ।।
मडुवे की रोटी हैं खाते घी गुड़ से
तुम तो मैगी और पीज्जा वाले ठहरे ।।
सभी को खिलाते हैं खाना हम दाज्यू
काले कउआ तक को खिलाने वाले ठहरे|
हम दही बूंदी का नकली रायता नहीं खाते
राई खीरे हल्दी का रायता खाने वाले ठहरे।।
१७ जुलाई हरियाला में आऔ घर दाज्यू
सींगल पुआ आलू गुटुक खिलाने वाले ठहरे||
राजधानी गैरसैड़ँ में अब बनाने से रहे हम
हम देहरादून का कचरा निकालने वाले ठहरे||
(रचयिता: गिरिजा नंदन जोशी)
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