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Friday, 17 April 2015

दो और कवितायेँ

" दो  कविताएँ"

१)
विज्ञापन की मार से पब्लिक परेशान,
टूथपेस्ट में नमक है, कहता पहलवान।

ललिताजी ने बेच दिए थे ढेरों साबुन  के  पाउडर,
रैपिडेक्स में कपिलदेव ने दिखलाया था अंग्रेजी  डर।

अब है बिकता औरत को पतला करने का सामान,
औरत तो मोटी ही रही उद्योगपति हुआ धनवान।

सेलेब्रिटी बटोर रहे गिरिजा मोटा विज्ञापन का धन,
पब्लिक नाहक उठा रही इन विज्ञापनों का वजन।

2)

कल अचानक रास्ते में दिख गया शेर
बन्दुक दाग दी और वो हो गया ढेर

फिर पास आया जब साफ़ हुआ धुआ
देखा तो बहुत ही अफसोस  हुआ

हाय मैंने क्या कर डाला ये गज़ब
नायाब शेर था बिलकुल ही  अजब

गिरिजा   ये तूने क्या अनर्थ कर डाला ं
शेर तो प्यारा था मिर्जा ग़ालिब वाला !

                 ***

Wednesday, 15 April 2015

दो कविताएं

दो कविताएं

१)
आम आदमी आम नहीं खा पा रहा है
और आमआदमी पार्टी से कतरा रहा है

वोट की राजनीति में खो गया जनतंत्र
पैसे का खेल है जोड़ तोड़ का मंत्र

गरीबी एक मानसिकता है कहे एक नेता
किसानो की मौत पर रोते नव अभिनेता

कहे कवि गिरिजा बढ़ी भ्रष्टों की फौज
आम आदमी भूखा है अरबपति की मौज

२)
जिसको जो मिला उसी पर बैठ गया
लक्ष्मी जी को पा कर उल्लू ऐंठ गया

शिवजी को मिला बैल नंदी
शेर पर जा बैठी भवानी चंडी

मेरे हाथ आया लोहे का स्कूटर
जिस पर बीट दे रहे हैं अब कबूतर

कहे कवि गिरिजा सब भाग्य का खेल
गनेशजी ने निकाला चूहे का तेल!

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