दो कविताएं
१)
आम आदमी आम नहीं खा पा रहा है
और आमआदमी पार्टी से कतरा रहा है
वोट की राजनीति में खो गया जनतंत्र
पैसे का खेल है जोड़ तोड़ का मंत्र
गरीबी एक मानसिकता है कहे एक नेता
किसानो की मौत पर रोते नव अभिनेता
कहे कवि गिरिजा बढ़ी भ्रष्टों की फौज
आम आदमी भूखा है अरबपति की मौज
२)
जिसको जो मिला उसी पर बैठ गया
लक्ष्मी जी को पा कर उल्लू ऐंठ गया
शिवजी को मिला बैल नंदी
शेर पर जा बैठी भवानी चंडी
मेरे हाथ आया लोहे का स्कूटर
जिस पर बीट दे रहे हैं अब कबूतर
कहे कवि गिरिजा सब भाग्य का खेल
गनेशजी ने निकाला चूहे का तेल!
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