फैशन के शिकंजे
जब मैं बीए में पढ़ रहा था तो पैंट की मोहरी बहुत चौड़ी होती थी , करीब 24 इंच की। तो मेरी सभी पैंट की मोहरी चौबीस इंच की थी । उसके बाद अचानक फैशन बदल गया और 16 इंच की मोहरी आ गई। सब पैंट बेकार हो गई।
तब मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ता था । पुरानी हरक्यूलिस साइकिल थी मेरे पास । तो साइकिल उठाई और अमीनाबाद पहुंच गए। दो पैंट के कपड़े खरीदे और दो शर्ट के, क्योंकि शर्ट की कॉलर भी चेंज हो गई थी ।
टेलर्स की दुकान में जाकर अपनी पेंट और शर्ट की नाप दे दी और उसे बता दिया मोहरी के बारे में , पैंट की प्लीट्स, पैंट के लूप्स के बारे में, और कमीज के कॉलर के बारे में ।
पैंट की सिलाई ₹ 4 और कमीज की सिलाई ₹2 पड़ी। टेलर मास्टर दे रसीद काट दी और जेब में रसीद रखकर वापस चल दिया पैडल मारते हुए।
चार दिन के बाद जब शर्ट की डिलीवरी लेने पहुंचा तो दोनों पैंट और शर्ट तैयार थी । जब पैसा दे रहा था तो बगल में एक सज्जन खड़े थे। करीब पचास साल के होंगे। अचानक वो बोल उठे "क्यों भाई सबसे कमीज के ₹1 25 पैसा लेते हो और पैंट के ₹3 50 तो इन student ज्यादा क्यों ले रहे हो ।
टेलर मास्टर में जवाब दिया, "साहब इनके नखरे बहुत है तो मेहनत पड़ती है कटिंग करने और सिलने में इसलिए"।
मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी । जैसे ही वह सज्जन सीढ़ियों से उतर के बाहर चले गए मैंने उससे कहा "क्यों भाई मुझसे ज्यादा पैसा क्यों ले रहे हो। गलत बात है "
टेलर मास्टर उस्ताद था । पलट कर बोला "साहब यह बुड्ढे लोग क्या जाने फिटिंग क्या होती है और फैशन क्या होता है। इनको तो किसी तरह भी काट के कपड़े पहना दो ठीक है। आपके साथ मुझे बहुत कायदे से कटिंग करनी पड़ती है हर चीज का ध्यान रखता होता है क्योंकि आप फैशन के पारखी हैं।"
अपनी तारीफ सुनकर मेरी तबीयत खुश हो गई और मैं कपड़े लेकर हरकुलिस साइकिल के पेडल मारता हुआ वापस रवाना हो गया।
अब सोचता हूं कि यह फैशन इंडस्ट्री वाले पब्लिक को किस तरह से नये कपड़े खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। Teenage युवा वर्ग अपनी आइडेंटिटी से जूझ रहा होता है और उसे इमोशनली ब्लैकमेल करना बहुत आसान है तो यह उसी युवा वर्ग को टारगेट करते हुए अपने इंडस्ट्री को आगे बढ़ाते हैं और उनके दिमाग में यह बैठा देते हैं कि पुराने फैशन के कपड़े बदलो। पुराने फैशन के कपड़ों में तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है ।
मेरा अच्छे खासे कपड़ों को बर्बाद करने का
सिलसिला आगे भी चला। जब बेल बॉटम पैंट्स आ गई और कुत्ते के कान वाली (dog collar) कमीज तो दिल्ली में मैंने अपने टेलर के पास नए कपड़े ले जाकर कुत्ते के कान वाली शर्ट और लहराती हुई 24 इंच मोहरी की पैंट सिलाई तब जाकर तसल्ली हुई।
अस्सी का दशक आते-आते मैंने फैशन के साथ समझौता कर लिया और 18 इंच की मोहरी पर तब से टिका हुआ हूं इसी तरह कॉलर पर भी समझौता कर दिया और कालर न तो बहुत लंबी है और ना ही बहुत छोटी।
कल सामने सड़क पर कुछ लड़कों को जाते देखा कॉलेज की ओर । उनमें से कुछ तो बहुत ज्यादा फैशन वाले लगते थे और उनकी पेंट की सिलाई कुछ इस तरह की थी कि बेचारे ठीक से चल नहीं पा रहे थे बैठने की तो बात ही मत कीजिए ।
मुझे अपना विद्यार्थी जीवन याद आ गया। यह उमर ही ऐसी होती है।
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