एक जमाना वह भी था जब लोग घी खरीदते समय हधेली के उल्टी तरफ घी रगड़ कर उसकी मिलावट का पता लगा लेते थे।
एक जमाना वह भी था जब लोग कपड़े के थान के एक कोने को रगड़ का उसकी quality का पता लगा लेते थे।
एक जमाना था जब लोग गेहूं की बोरी ले कर पंचक्की जाते थे आटा पिसाने के लिए ।
एक जमाना वह भी था जब किसी भी चीज के पैकेट में उसके दाम नहीं लिखे होते थे। उस जमाने में एलोपैथिक दवाइयों के अलावा किसी भी चीज में मैन्युफैक्चरिंग डेट और एक्सपायरी डेट भी नहीं लिखी होती थी। दुकानदारो की मौज होती थी।
एक जमाना हुआ करता था जब सुबह सुबह उठकर कोयले की अंगीठी जलानी होती थी पतली पतली लकड़ियों और कागज की मदद से। फिर एक लोहे की पाइप को फूक फूक कर उसको सुलगाया जाता था।
तब कहीं जाकर सुबह की पहली कप चाय के लिए पानी तैयार होता था। उसी जमाने में काफी घरों में कुल्हाड़ियां होती थी लकड़ी की चीर फाड़ करके आग जलाने और खाना बनाने के लिये।
एक जमाना था जब अक्सर सड़क पर गधे की पीठ पर ढेर सारे कपड़े लादकर धोबी आता दिखाई देता था हर एक के घर पर। फिर धुले हुए कपड़े लिए जाते कॉपी मे चेक करके और इसी तरह गंदे कपड़े भी नोट करके दिए जाते। अक्सर कमीज और पेंट में बटन गायब होते और कभी-कभी तो कपड़ा ही गायब हो जाता था। उसी जमाने में लोगों का यह भी कहना था कि इम्तहान के लिए पढ़ते वक्त अगर गधे के ढेचू ढेचू की आवाज सुनाई दे जाए तो वह सवाल इंतहान मे जरूर आता था।
उस जमाने में अगर आप रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर जाते थे तो दर्जनों होल्डॉल और काले रंग के टीन के बड़े बक्से साथ लेकर सफर करते हुए लोग दिखाई देते थे और उन्हें बाहर से अंदर ट्रेन तक ले जाने के लिए कुली को सिर्फ 25 पैसे मिलते थे। आजकल की नई पीढ़ी को तो पता भी नहीं होगा कि होल्डॉल क्या चीज होती है।
उसी जमाने में ज्यादातर लोग साइकिल में ही दफ्तर जाया करते थे। ज्यादातर बाबू लोग जब दफ्तर जाते थे तो उनके सिर पर sola hat होती थी। या एक खास तरह की हॉट होती थी जिससे धूप से बहुत अच्छी तरह रक्षा होती थी सर की और यह करीब-करीब सभी दफ्तर जाने वाले बाबू और अफसरों के पास होती थी। 1960 के बाद पैदा हुए लोगों को तो पता भी नहीं होगा कि sola hat क्या होती है.
वह भी एक अजीबोगरीब जमाना था क्योंकि तब लोग अपने प्रिय जनों को फोन नहीं करते थे। लोग परिचित लोगों को चिट्टियां लिखा करते हाथ से और फिर उन्हें सड़क में जाकर या पोस्ट ऑफिस जाकर लाल रंग के लेटर बॉक्स में डालते थे। हफ्ते में कई बार घर के बाहर पोस्टमैन की आवाज सुनाई देती थी और जिसने सुनी वह दौड़ पड़ता था चिट्ठी को उठाने के लिए।
अजीबोगरीब जमाना था वह । कई मायने में बहुत अच्छा था और कई मामलौं में मुश्किल ।
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