बॉलीवुड के गुमनाम अभिनेता
50 के दशक में मैने पिक्चर देखना शुरू किया था और तब बड़े एक्टर होते थे देवानंद राज कपूर और दिलीप कुमार और इनकी एक्टिंग की हर जगह तारीफ होती रहती थी।
अब तो काफी समय बीत गया है और सब कुछ बदल गया है । अब एक्टिंग के तरीके भी बदल गए हैं। तब ऐसा लगता था कि दिलीप कुमार गजब की एक्टिंग करता है पर अब ऐसा नहीं लगता है ।उसकी पुरानी पिक्चरों को देखकर लगता है स्वाभाविक एक्टिव नहीं है बल्कि कोरी डायलॉगबाजी है। देवानंद की एक्टिंग देखकर तो हंसी आती है। लटके झटके और उसका बोलने का तरीका बहुत बेतुका लगता है। हां स्वाभाविक अंदाज़ राज कपूर का था कुछ हद तक।
बहुत से ऐसे कलाकार हैं जिनकी कोई गिनती नहीं थी। वह बड़े कलाकारों से ज्यादा स्वाभाविक एक्टिंग करते थे। अब जब पुरानी पिक्चर देखता हूं तो मुझे उन छोटे कलाकारों की एक्टिंग ज्यादा अच्छी लगती है। फिल्म रंगी बिरंगी में जावेद खान ने एक ब्लैक टिकट बेचने वाले की बहुत शानदार एक्टिंग की है उसी तरह एक मोटर गेराज के मालिक गुरनाम की शानदार एक्टिंग की है सीएस दुबे ने फिल्म छोटी सी बात में।
अंगूर में भी सीएस दुबे की एक्टिंग लाजवाब है जिसमें वह एक जेवर बनाने की दुकान का मालिक है और उसी फिल्म के एक और कलाकार ने बहुत शानदार एक्टिंग की है जिसका नाम युनुस परवेज़ है। युनुस परवेज़ फिल्म गोलमाल बेदी मैं भी बहुत अच्छी एक्टिंग करता है और उत्पल दत्त ने तो इस फिल्म में कमाल ही कर दिया है।
छोटे-मोटे कलाकारों की बात आती है तो एस एन बनर्जी का नाम भी सामने आता है । बहुत पुराने जमाने के एक्टर थे । फिल्म चलती का नाम गाड़ी में मधुबाला के पिताजी का किरदार निभाया था। इन्होंने फिल्म किसी से ना कहना मैं दीप्ति नवल के मामाजी का रोल करने में कमाल दिखा दिया है। इसी तरह फिल्म जौली एलएलबी 2 मैं जज का रोल निभाते हुए सौरभ शुक्ला ने बड़े-बड़े एक्टरों की छुट्टी कर दी है। एक और नाम याद आ रहा है वह है अन्नू कपूर जो बहुत ही स्वाभाविक अच्छी एक्टिंग करते हैं इन्होंने फिल्म मिस्टर इंडिया में एक समाचार पत्र एडिटर का रोल किया है और फिल्म जौली एलएलबी 2 मूवी में भी एक वकील की बहुत ही शानदार एक्टिंग की है।
छोटे-मोटे रोल करने वाला एक और बढ़िया कलाकार है इफ्तेखार। इन्होंने सबसे ज्यादा किरदार निभाया है पुलिस के छोटे से बड़े ओहदा के अफसर का। एक जमाने में यह पुलिस इंस्पेक्टर का रोल किया करते थे । बाद मैं इनकी तरक्की हुई और कई फिल्म मैं यह पुलिस कमिश्नर के रूप में दिखाई दिए । ये एक बहुत स्वाभाविक एक्टर है दिलीप कुमार की तरह डायलॉगबाजी नहीं करते हैं देवानंद की तरह लटके झटकेभी नही। इनका बड़ा रोल फिल्म इत्तेफाक में था और फिल्म दुल्हन वही जो पिया मन भाए में भी बहुत लंबा रोल था इनका।
कलाकार तो कहीं और है और सब का नाम भी तो याद नहीं है। हां डेविड और धूमल का नाम लेना भूल गया था। डेविड ने कई दशकों तक छोटे-छोटे बहुत अच्छे रोल किए जैसे फिल्म गोलमाल में अमोल पालेकर के डॉक्टर मामा बने थे और फिल्म बातों बातों में टीना मुनीम के अंकल।
औरतों की बात करें तो ललिता पवार और लीला मिश्रा का कोई जवाब नहीं था इनकी एक्टिंग इतनी शानदार होती थी कि उसके ऊपर फिल्म के हीरो फीके पड़ जाते थे। फिल्म परिचय में लीला मिश्रा, फिल्म कथा में लीला मिश्रा, फिल्म मिस्टर एंड मिसेज 55 और अनाड़ी में ललिता पवार का कोई जवाब ही नहीं था। इसके अलावा दुर्गा खोटे भी मां के रूप में बहुत अच्छी लगती थी और बड़ी स्वाभाविक एक्टिंग करती थी।
मैं समझता हूं कि अब समय आ गया है कि इस तरह के कलाकारों का भी नाम याद किया जाए और इन्हें भी लाइफटाइम अवॉर्ड या नेशनल अवार्ड से संवारा जाए।
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