कुछ इधर की कुछ उधर की
Q. घोड़ा क्यों अड़ा ? पान क्यों सडा ?
Ans फेरा न था
आपने देखा होगा कि तांगे वाले या घुड़सवार घोड़े की गर्दन पर हाथ फेरते रहते हैं जिससे घोड़े का मूड ठीक रहता है वैसे ही पान की दुकान वाले पान के पत्तों को उलट-पुलट करते हैं ताकि वह सड़ न जाए
Q. पथिक प्यासा क्यों ? गधा क्यों उदास ?
Ans. लोटा न था
मतलब यह कि पंडित के पास लोटा न था इसलिए वह कुएं से निकालकर पानी नहीं पी पाए और प्यासे रह गए और गधा ने जमीन पर लोट पोट नही की इसलिए उदास था।
Q जूता नहीं भाया ? समोसा नहीं खाया ?
Ans. तला ना था
ये थे अपने बचपन के वह सवाल जिनका एक ही जवाब होता था ।
ऐसे शायद बहुत से सवाल होंगे।
उस जमाने में मोबाइल फोन नहीं थे । इंटरनेट नहीं था । जब चार लोग जब इकट्ठा होते थे और टाइम पास करना होता था तो गप्प लड़ाते थे। ताश खेलते थे । कैरम खेलते थे । चुटकुले सुनाते थे या फिर पहेलियां बुझाते थे।
आजकल तो चार दोस्त अगर किसी रेस्ट्रो में बैठे हैं तो हर एक की खोपड़ी नीचे को झुकी होती है अपने मोबाइल की तरफ और उंगलियां मोबाइल के स्क्रीन पर चिपकी होती हैं। आपस में ना कोई बातचीत, न गपशप, न किसी को यह होश है कि आसपास क्या हो रहा है।
जैसा मैंने ऊपर दो पहेलियां लिखी है क्या आपको भी ऐसी कुछ पहेली याद है जिसमें 2 सवालों का एक ही जवाब हो ?
एक और बात दिमाग में आती है। किसी शहर में छोटी बड़ी सड़कों के नाम होते हैं। इनमें कुछ नाम ऐसे कैसे होते हैं जिनके बारे में कुछ पता ही ना हो ?
मिसाल के तौर पर ले लीजिए तो महानगर लखनऊ में एक छन्नी लाल का चौराहा है। अब यह छन्नी लाल कौन थे ?
वैसे ही क्ले स्क्वायर के बीच से होता हुआ एक रास्ता जाता है जिसका नाम है खलीफा ईदुलजी मार्ग। अब यह खलीफा साहब कौन थे?
वैसे ही लखनऊ में ही एक झाऊ लाल का पुल है तो भाई यह झाऊ लाल कौन थे ?
इन बातों पर भी कुछ विचार कीजिएगा।
एक और बात दिमाग में आती है । एक जमाने में कुछ चीजें किसी शहर से ही जुड़ी होती थी। तो उस जगह में ऐसी क्या खास बात थी कि वह चीज उसी जगह की प्रसिद्ध थी ?
जैसे संडीला के लड्डू, अलीगढ़ के ताले ,खुर्जा का घी, बनारस की साड़ियां, मिर्जापुर की दरी और कालीन, मथुरा के पेड़े , दिल्ली घंटाघर का सोहन हलवा, बीकानेर की भुजिया, आगरे का पेठा, मुरादाबाद के बर्तन।
चलते-चलते आपसे एक पहेली पूछ लेता हूं उसका जवाब बताइए
एक मुर्गा चश्मे श्याही चलते चलते थक गया
लाओ चाकू काटो गर्दन फिर वह चलने लग गया।
इसका जवाब शायद वही लोग दे पाए जो उस जमाने के हैं जब बॉल पॉइंट पेन और फाउंटेन पेन नहीं होती थी।
क्योंकि आप में से कोई इसका जवाब नहीं बता पाएगा इसलिए मैं ही बता देता हूं ।
एक जमाने में स्कूल में लिखने के लिए जो कलम होती थी वह नरकुल नाम की लकड़ी की होती थी जिसको आगे से तिरछा काटा जाता था फाउंटेन पेन जैसी नोक मनाई जाती थी और नोक को चाकू से चीरा जाता था।
और फिर श्याही की दावात में डूबो कर लिखा जाता था । पर कुछ समय बाद उसे फिर से काटना पड़ता था जब नोक घिस जाती थी।
बातें तो और भी हैं पर फिर कभी।
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