कुछ साल पहले एक दिन अचानक बहुत हाई ब्लड प्रेशर हो गया और मैं घबरा गया । ब्लड प्रेशर की दवाई तो खाता हूं नियमित रूप से और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है पर अचानक ब्लड प्रेशर का बहुत ऊपर जाना चिंता का कारण था। सो अपने मित्र के साथ एक कार्डियोलॉजिस्ट के कंसलटिंग क्लिनिक में पहुंच गया।
बाहर काफी भीड़ थी करीब 40 लोग लाइन से लंबे बरामदे में कुर्सियां में बैठे थे और अपने नंबर का इंतजार कर रहे थे। मैं भी अपने हिसाब से लाइन में बैठ गया। करीब 1 घंटे बाद मेरा नंबर आ गया और मैंने सोचा चलो डॉक्टर साहब अच्छी तरह चेकअप करके दवाई में चेंज कर देंगे और खाने-पीने वगैरह की सही सलाह भी दे देंगे
मैं अंदर गया और डॉक्टर साहब के बगल में बैठ गया और उनसे कहा कि मेरा ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ गया है और ये दवाई खा रहा हूं । डॉक्टर साहब कलम उठाई प्रिस्क्रिप्शन लिख दिया और अगले पेशेंट को अंदर आने को कहा।
उन्होंने मुझसे कहा, लाइए मेरी फीस। ₹1000 दे दीजिए। मैं उनको समझाने लगा अपने बारे में।0
"यह सब सुनने के लिए टाइम नहीं है आप देख रहे हैं पीछे एक लंबी लाइन खड़ी है इंतजार में सब का टाइम खराब मत कीजिए पैसे दीजिए और जाइए दवाई मैंने लिख दी है ।"
मैंने उनको ₹1000 दे दिए और बाहर आ गया।
अब चलते हैं 1950 के दशक में जब मैं एक स्कूल जाने वाला स्टूडेंट था । एक दिन अचानक तबीयत खराब हो गई तो मेरे पिताजी मुझे पास की एक क्लिनिक में ले गए । जब पहले वाला मरीज बाहर निकला तो डॉक्टर ने मुझे बुलाया।
फिर उन्होंने मेरी आंख को चेक किया। आंख के नीचे की पलक पलट कर देखा फिर मेरी जीभ को एक चम्मच से दबाकर अच्छी तरह चेक किया। फिर उन्होंने मेरे घुटने में एक इंस्ट्रूमेंट से धीरे-धीरे टैप किया जिससे घुटने से नीचे का पैर उछाला जाता था। स्टेटस्कोप से मेरी छाती और पीठ को चेक किया। फिर उन्होंने दवाई लिख दी और मुझे खाने पीने के बारे में सलाह दी। करीब 15 मिनट से ज्यादा टाइम दिया और उसके बाद कंपाउंडर को बुलाकर प्रिस्क्रिप्शन दे दिया ताकि वो दवा बना दे। उस जमाने मैं डॉक्टर की क्लिनिक मैं ही दवा बनती थी।
पुराने जमाने और आजकल के डॉक्टर के व्यवहार और काम करने के स्टाइल में कितना अंतर है ! आजकल एक सफल डॉ वह है जो सुबह डीकेडी पर बैठता है शाम को अधिक से अधिक में बैठता है और दिन में कई अस्पतालों में कंसलटेंट डॉक्टर है। आजकल वह एक मरीज को कितना टाइम दे रहा है ?
पुराने जमाने में कोई टेंशन नहीं था डॉक्टर शांति से अपने क्लीनिक में ही बैठकर पैसे कमाता और उसमें संतोष रखता और मरीजों को ज्यादा से ज्यादा समय और राय देता।
पर सबसे बड़ा फर्क तो यह है कि अब कोई कंपाउंडर नही होता है जो पहले हर डॉक्टर की क्लिनिक मैं होता था। आज कल डॉक्टर सिर्फ प्रिस्क्रिप्शन लिखता है। पहले डॉक्टर अपने मरीज के लिए दवा अपनी क्लिनिक मैं ही बनाता था मिक्सचर और पाउडर । और उसके लिए कंपाउंडर की जरूरत होती थी।
एक और बात है। पुराने जमाने मैं डॉक्टर पूरे शरीर की जिम्मेदारी लेता था और ऐसी दवाई देता था जिसको खाने से किसी और अंग में कोई बुरा असर नही हो पर अब ऐसा नहीं है। यूरोलॉजिस्ट आजकल प्रोस्टेट की अक्सर एक दवाई देते हैं जिससे आंखों को बहुत नुकसान होता है और उनको इससे कोई मतलब होता है। वह तो तब पता चलता है जब आई स्पेशलिस्ट कैटरेक्ट का ऑपरेशन करते हैं ।
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