बचपन में हमारे यहां चाय टी पॉट में बनती थी और चाय की पत्ती टी पॉट में डालकर खौलता पानी भरने के बाद उसे फॉरेन टीकोजी से ढक दिया जाता था । साथ में ट्रे में रहता था मिल्कपौट और शुगर पौट।
उस जमाने में लिपटन की चाय बहुत चलती थी और लिपटन की तीन मुख्य ब्रांड मार्केट में दिखाई देती थी , ग्रीन लेबल ,यलो लेवल और रेड लेबल।
हमारे यहां ग्रीन लेबल और रेड लेबल को मिलाकर चाय बनती थी।
तब बाजार में चाय का दाम था दोआने प्रति कप। दो आने का मतलब है 12 पैसे। उस जमाने में सबसे महंगी चाय मैंने नैनीताल मे पी थी फ्लैट्स में फ्लैटीज़ रेस्टरों में । एक कप का दाम छै आने था।
फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी चला गया और वहां पर हॉस्टल के मेस में चार आने का एक पॉट मिलता था जिसमें दो कप चाय होती थी। यह रेट बहुत सालों तक वहीं था
लखनऊ यूनिवर्सिटी ज्वाइन की तब शायद पहली बार गिलास में चाय मिले रेस्ट्रो में। यह चाय की पत्ती को उबालकर बनाई गई चाय होती थी जिसका स्वाद कुछ फर्क था। कड़क चाय ।
जब मेरा ट्रांसफर नागपुर हो गया तो वहां शुरू शुरू में बहुत घटिया किस्म की चाय पीने को मिली। लगता था जैसे चमड़े को पानी में उबाल कर बनाई है। पर जल्दी ही दफ्तर के नजदीक एक दक्षिण भारतीय रेस्टरो मिल गया और वहां का खाने पीने का सामान और नीलगिरी की चाय ने मन को मोह लिया । शायद पहली बार इतनी जायकेदार चाय पी जो ग्रीन लेबल चाय से भी अच्छी थी स्वाद में।
दिल्ली गया तो फिर दिल्ली की साधारण चाय पीने की आदत पड़ गई । दिल्ली में चाय के शौकीन कम है।
सत्तर के दशक में लालबाग चौराहे के पास शर्मा जी की नुक्कड़ वाली चाय की दुकान में चाय पीने का अवसर मिला । शायद नई दुकान खोली थी। यह चाय अब तक की सबसे फर्क चाय थी क्योंकि इसमें लॉन्ग इलायची अदरक जैसे पता नहीं क्या मसाले मिले थे । यह चाय लखनऊ में काफी लोकप्रिय थी। अब भी लोकप्रिय है।
शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि एक जमाने में विश्व की सबसे प्रसिद्ध चाय बेनीनाग उत्तराखंड की काली चाय थी लंबी पत्तियों वाली जिसकी खुशबू और स्वाद बेमिसाल थी। यह चाय के बागान प्रसिद्ध उत्तराखंड उद्योगपति दान सिंह बिष्ट के थे जो अपने छोटे से जीवनकाल में बहुत जबरदस्त औद्योगिक प्रगति कर बैठे और जिनके देहांत के साथ ही उनकी इंडस्ट्रियल अंपायर समाप्त हो गई। उनके कौसानी स्थित चाय के बागान भी।
चाय के सबसे बड़े कदरदानों में ब्रिटेन के लोग हुआ करते हैं और इनकी आदत चाय में बिस्किट डुबो कर खाने की है जिसे डंकिंग इन टी कहते हैं । अभी कुछ दिनों पहले पढा था ब्रिटेन के एक समाचार पत्र में कि भारत के समोसे वहां बहुत लोकप्रिय हो गए हैं और लोग बिस्किट की जगह समोसे के साथ चाय पीना ज्यादा पसंद करने लगे हैं।
पश्चिमी देशों के लोगों को यह देखकर आश्चर्य होता होगा कि भारत में ट्रेन में सफर करने वालों में चाय कितनी लोकप्रिय है और किस तरह स्टेशन आते ही छोटे छोटे लड़के पीतल के चाय के बड़े मटके लेकर प्लेटफार्म में ट्रेन के आने पर लोगो को चाय पिलाने के लिए दौड़ पड़ते हैं।
आपको यह सब बताने में इतना व्यस्त हो गया मैं कि भूल गया की गैस में चाय का पानी चढ़ा रखा है। चलता हूं अब चाय बनाने के लिए।
***
No comments:
Post a Comment