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Friday, 17 October 2025

हर शाख में उल्लू बैठा है

एक ज़माना था जब नदी के ऊपर पुल बनते थे और सौ साल बाद भी मजबूती से अपना काम करते रहते थे । उस जमाने की बनी सड़कें कई दशक तक खराब नहीं होती थी। आजकल सड़क बनती है और  कुछ महीने बाद गड्ढों से भर जाती है।  पुल बनते हैं और कुछ ही समय बाद टूट जा रहा है। पैसा तो बर्बाद होता है । जान माल का भी नुकसान काफी होता है। आज से पचास साल पहले बने स्कूटर, फ्रिज, पंखे वगैरह आज भी सही चल रहे है। आजकल की बनी चीजें जल्दी खराब हो रहीं हैं।

संसार में बेईमान लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। हर आदमी पैसा कमाने में लगा हुआ है। कुछ सही तरीके से  पैसा कमा रहे हैं और ज्यादातर लोग भ्रष्ट्र तरीका से। बीमारी तेजी से फैल रही है।

कल यू ट्यूब में एक वीडियो देखा। एक आदमी एक छोटी सी आधी भरी बाल्टी में कच्चे हरे केले डालता है। पांच मिनट बाद जब वह उन्हें निकलता है तो वे पीले पके केले हो जाते हैं। यही साफ सुथरे दिखने वाले केले जिनमे कोई काले चित्ती वाले दाग नहीं होते, बाजार में खूब बिकते हैं। इन्हे पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल किया जाता है जो स्वास्थ के लिए बहुत ही हानिकारक है।
ज्यादा साफ चमकीले होने की वजह से इनकी बिक्री भी ज्यादा होती है। ऐसा ज्यादातर फलों और सब्जियों में हो रहा है। 

अभी खबर आई थी की मध्य प्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप पीने से बहुत से बच्चों की मौत हो गई है। इस सिरप में कुछ ऐसे केमिकल मिला रखे हैं जो की मशीन की सफाई के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और जिनको खाने से मनुष्य  के ऊपर घातक प्रभाव होता है। 

ऐसा क्यों है  जब कि फैक्ट्री की जांच करने के बाद ही लाइसेंस दिया जाता है और चेकिंग करने के लिए इंस्पेक्टर भी होते हैं। इस सब के बावजूद भी दवाइयां में जहर मिलाया जा रहा है तो कहीं न कहीं तो  सिस्टम में गड़बड़ अवश्य है , या तो लापरवाही की वजह से या फिर भ्रष्टाचार की वजह से। जांच करने वाली एजेंसी भी सोई हुई सी लगती हैं । 

ऐसा भी होता है कि जब कोई दवाई बेचने वाली कंपनी बहुत ही प्रसिद्ध हो जाती है और उसकी दवाइयां पर जनता का 100% विश्वास हो जाता है तो उसी कंपनी की इस तरह की पैकिंग में नकली दवाइयां बनने लगती है इसी ब्रांड नाम की और इसे उन केमिस्टों के द्वारा बेचा जाता है जो ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए लोगों की जान खतरे में डाल रहे हैं । इनकी भी पकड़ धकड़ की आवश्यकता है। 

एक समस्या यह भी है की अगर किसी को पकड़ा भी गया तो वह न्यायालय में चला जाता है और बेल पर बाहर निकाल जाता  है वकील की मदद से। फिर सालों साल तक मुकदमा चलता रहता है  और वह बाहर अपना काम करता रहता है। इस तरह के मुकद्दमों के लिए तो fast track courts होने चाहिए जो बहुत जल्दी रोजाना इस पर सुनवाई करें और अपराध सिद्ध होने पर दोषी व्यक्तियों को homicide ke अपराध की कड़ी सज़ा दें।

और भी बहत कुछ हो रहा है। ग्वाले गाय भैंस को ऑक्सीटॉसिन नाम के केमिकल के इंजेक्शन लगाते रहते है रोजाना और फिर यह केमिकल हमारे पीने वाले दूध में आ जाता है जिससे स्वस्थ को नुकसान होता है। खाने पीने के सामान में केमिकल्स मिलाए जा रहे हैं मुनाफे के लिए।
घरों में मीटर लगे हैं पर कुछ लाइनमैन सीधे खंबे से बिना मीटर के लाइन देकर लोगों को मुफ्त की बिजली बांटते हैं और पैसे कमाते हैं। दफ्तरों में कुछ भ्रष्ट लोग फाइलें दबा कर बैठ जाया करते हैं  जब तक उनकी चाय पानी का इंतजाम न हो जाए। ऐसा भी सुनने मैं आता है कि सरकार जो पैसे गरीबों की मदद के लिए देती है उसका बड़ा हिस्सा पैसे बाटने के टाइम पर हड़प कर लेते हैं बिचौलिए।

उदाहरण देते रहने का अंत आसानी से नहीं होगा इतना व्यापक होता जा रहा है भ्रष्टाचार । यही देश की प्रगति मैं बाधा बनता जा रहा है। ऐसा ही चलता रहा तो देश का क्या होगा?

किसी ने कहा भी है की

बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है, हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा ?

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मिठाइयों का देश भारत

 देश मिठाइयों का

भारत में एक रिवाज है कि जब भी कोई खुशी का मौका होता है तो मिठाई खाई जाती है। आपने सुना होगा अगर किसी का लड़का कोई बढ़िया नौकरी में लग गया या घर में शुभ कार्य हुआ,  शादी  का रिश्ता तय हुआ हो वगैरह  लोग कहते हैं "भाई साहब मुंह तो मीठा कराइए"।

सभी त्योहारों में ढेर सारी मिठाइयां खाई जाती है। होली की गुजिया तो पूरे देश में प्रसिद्ध है।

भारत के भिन्न-भिन्न प्रदेशों की अपनी खास मिठाइयां  है। इनमें से बहुत सी तो पूरे देश में लोकप्रिय हो चुकी है जैसे बंगाल का रसगुल्ला और राजस्थान की सोन पापड़ी या फिर लखनऊ की गजक।

पहले बात करें बंगाल  की। यहां ज्यादातर मिठाइयां पनीर (छेना) की होती है। शायद यह इसलिए होता होगा कि यहां पर ठंड बहुत कम होती थी जाड़ों में भी और गर्मियों में तो मौसम काफी गर्मी का रहता था । तो हो सकता था कि अक्सर दूध बच जाया करता हो और फिर किसी ने बचे हुए दूध को फाड़ कर इससे छेने की मिठाइयां बनाने का कार्यक्रम शुरू किया हो। जो भी हो यहां की मिठाइयां तो जगत प्रसिद्ध है। ताजे पनीर की दो मिठाइयां बहुत मशहूर है बंगाल की । एक है संदेश और दूसरा है रसगुल्ला।
  रसगुल्ला तो पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया। एक जमाने में केसी दास का कोलकाता का रसगुल्ला बहुत प्रसिद्ध था और यह नीले रंग के टीन के बन्द डिब्बे में पूरे भारत में बेचा जाता था। जब मैं छोटा बच्चा था तो अक्सर हमारे पिताजी जब भी कोलकाता जाते थे  दफ्तर के काम से तो वहां से के सी दास के रसगुल्ले के एक, दो टीन  जरूर लेकर आते थे।

अब आते है उत्तर प्रदेश । 1950 के दशक में बनारस का केसर वाला पीला पेड़ा बहुत मशहूर था जो बिल्कुल सूखा होता है और खोआ और केसर का बनता था। उन दिनों बनारसी मिठाई बहुत प्रसिद्ध हुआ करती थी । इनको ताड़ के पेड़ के पत्तों से बने सुंदर डिब्बे मैं रखकर बेचा जाता था।
 छेने की रस में डूबी मिठाइयां भी बनारस मे बनाई जाती थी जैसे चमचम। बनारस की मिठाइयों की लोकप्रियता तब कम पड़ गई जब लखनऊ में पहली बार 50 के दशक के शुरू में चौधरी स्वीट हाउस का आगमन हुआ।

 चौधरी स्वीट हाउस की मिठाइयां बहुत जल्दी ही पूरे उत्तरी भारत में लोकप्रिय हो गई । चौधरी स्वीट हाउस की ज्यादा बिकने वाली मिठाई थीं मूंग का हलवा, मलाई गिलोरी, कलाकंद, काजू की कतली वगैरह।  चौधरी स्वीट हाउस ने पैकेट बंद दालमोंठ बेचना भी शुरू कर दिया जो आसानी से  दूर दराज ले जाया सकता था। उत्तर प्रदेश में  मिठाइयां बहुत प्रकार की हैं जैसे बालूशाही , काजू की बर्फी , गुलाब जामुन , रस मलाई, मलाई पान गिलोरी , पेड़ा , बालूशाही, बूंदी के लड्डू, रबड़ी वगैरह।

अल्मोड़ा जो पहले उत्तर प्रदेश का पहाड़ी हिस्सा था और जो अब उत्तराखंड राज्य में है वहां की दो मिठाइयां बहुत लोकप्रिय हैं, खासकर पहाड़ के लोगों में और पहाड़ के जो लोग भारत के अन्य भागों में रहते हैं। यह हैं  बाल मिठाई और सिंगोड़ी। सिंगोड़ी बनती है नारियल और खोआ से । उसे मालू की पत्ती में लपेट कर रखा जाता है जिसकी खुशबू इसकी खासियत है। बाल मिठाई भुने वह चॉकलेटी रंग के खोए की बनती है, चीनी की छोटी-छोटी गोलियां में लिपटी हुई। 

एक समय में  दिल्ली का घंटाघर का सोहन हलवा बहुत मशहूर था। तब यह शुद्ध देसी घी  से बनता था और उसमें मेवे भरे होते थे । उसकी बिक्री बहुत होती थी। बाद में वनस्पति घी से यह बनने लगा और  स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने लगा।

दक्षिण में चले तो वहां की मिठाइयों की बहुत ज्यादा वैरायटी उत्तरी भारत में लोकप्रिय नहीं है। हां दक्षिण भारत का मैसूर पाक काफी मशहूर है जो दाल और शुद्ध देसी घी से बनता है और काफी स्वादिष्ट होता है।

अब रही बात मिठाई खाने की। बचपन में तो मिठाइयां खाना  ठीक है पर युवा अवस्था में मिठाई पर कंट्रोल करना जरूरी है क्योंकि बचपन बीतने के बाद हम उतनी उछल कूद नहीं कर पता है जितना बच्चे करते हैं खेलकूद में। और 40 की उम्र के बाद तो मिठाइयों पर काफी कंट्रोल हो जाना चाहिए नहीं तो ब्लड शुगर बढ़ने लगती है और डायबिटीज की बीमारी की समस्या आ सकती है । कुछ लोग इस गलतफहमी में रहते हैं की शुगर फ्री मिठाइयां खाने से कोई नुकसान नहीं होता पर इनमें जो केमिकल्स होते है वह शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक है और उससे कई बीमारियां हो सकती है। 

एक बात और है। मिठाई बनाते वक्त यदि खंडसारी चीनी या गुड का उपयोग किया जाए तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि सफेद रिफाइंड चीनी तो एक उम्र के बाद शरीर के लिए जहर का काम करती है। इस हिसाब से सबसे सुरक्षित मिठाई शायद लखनऊ की गजक है जो पुरानी अच्छी दुकानों में अभी भी शुद्ध गुड़ और शुद्ध  सफेद तिल से बनती है। 

दिवाली आ रही है और घर में कुछ मिठाइयां आने लगी है। सुबह रेफ्रिजरेटर खोला तो सामने काजू की कतली रखी हुई है। अपने को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा हूं देखता हूं कब तक सफल रहता हूं।

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