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Friday, 31 October 2025

कटी पतंग

@@ कटी पतंग 31 oct 2025

यहां राजेश खन्ना और आशा पारेख की फिल्म की बात नहीं हो रही है । मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के उस गाने के भी यहां कोई बात नहीं हो रही है जो 1957 की फिल्म भाभी में बहुत लोकप्रिय था (कटी कटी रे पतंग मेरी कट्टी रे)
बात हो रही है पतंग बाजी की क्योंकि अभी हाल में ही जमघट का त्यौहार हुआ था लखनऊ में ।

 यहां सैकड़ो सालों से दिवाली के दूसरे दिन पूरा आसमान रंग बिरंगी पतंग से भर जाता है। यह त्यौहार सिर्फ लखनऊ में ही मनाया जाता है और हर साल दिवाली के ठीक एक दिन बाद। यहां पतंग को कनकौआ भी कहते हैं। 
कभी-कभी यह सोचता हूं कि मनुष्य का दिमाग भी खूब है। एक कागज के टुकड़े को बांस की तीलियों से बांध के एक डोर से हवा में छोड़ दिया जाता है और वह आसमान की गहराइयों तक ऊपर चली जाती है। अच्छे खासे दिमाग वाला आदमी रहा होगा जिसका पहली बार यह कारनामा कर कर दिखाया।
इतिहासकार बताते हैं की पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व 500 साल पहले प्राचीन चीन में हुआ था। तब रेशम के कपड़े को बांस की तीलियों से मजबूती देकर रेशम  की मजबूत डोर से उड़ाया जाता था। कागज से बनी पतंग तो कई सौ साल बाद आई।
पुरानी बात है। तब मैं शायद सात साल का था। हमारे घर में एक आदमी काम करने आया करता था। नाम था मलहू। अधेड़ उम्र का था। एक आंख चेचक में बचपन में ही छीन ली थी उसकी। पर पतंग उड़ाने में उस्ताद था। एक बार मैं आसमान में उड़ती हुई पतंग को देख रहा था तो उसने कहा भैया जी आप भी पतंग उड़ा सकते हैं आप पैसे दें तो मैं पतंग धागा मंझा चरखी वगैरा ला सकता हूं। और आपको पतंग उड़ाना सिखा दूंगा। मैंने घर में जिद्द की तो पैसे मिल गए और पतंग उड़ाने का सिलसिला शुरू हो गया।
अब अक्सर काम के बाद मलहू मेरे साथ पतंग उड़ाने लगा। वह पतंग को ऊपर पहुंचा कर और झटका देकर और ढील देकर आसमान में पहुंचा देता और फिर डोर और चरखी (जिसमें पतंग की डोर लपेटी जाती है) मुझे दे देता पकड़ने के लिए।

 तो एक दिन ऐसा हुआ कि उसने मुझे चरखी और डोर पकड़ा दी और किसी के बुलाने पर अंदर चला गया । मैने पतंग को ढील देना शुरू किया और पतंग ऊपर पहुंचने लही। हवा तेज थी तो वह बहुत ही ऊपर चली गई। चरखी खुलती चली गईvऔर पतंग छोटी होती चली गई आसमान में। और अंत में, क्योंकि डोर का आखिरी हिस्सा चरखी में बंधा हुआ नहीं था तो आखिरी डोर भी चली गई आसमान में और मैं खाली चरखी पकड़े हुए कटी पतंग का तमाशा देखता रहा। 
लोगों की पतंग तो दूसरी पतंग वाले काटते हैं मैंने तो अपनी पतंग खुद ही काट दी !!

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