नागपुर टाइम्स
मैं कोई 26 साल का होउंगा तब मैं नागपुर ट्रांसफर कर दिया गया। दिल्ली में लोगों ने कहा ट्रांसफर आर्डर को रद्द करवा लो क्योंकि नागपुर तो बहुत बेकार की जगह है । वहां बड़ी भयंकर गर्मी पड़ती है। दुखी हो जाओगे ।
मैंने कुछ नहीं किया और मैं ट्रेन में रवाना होकर नागपुर को चल दिया । फरवरी का समय था। ठंड काफी थी दिल्ली में जब मैं चला । स्वेटर कोट वगैरह पहने हुए था । होल्डॉल भी गरम रजाई कंबल से भरी थी।
झांसी से जब आगे बढ़े तो भोपाल के पास पहुंचते-पहुंचते कुछ ऐसा लगा कि मौसम बदलने वाला है । सुबह के करीब 10:00 बजे थे ।
खैर आगे बढ़े । इटारसी आते-आते गर्म कपड़े बड़े भारी लगने लगे । इटारसी में मैंने बंन मक्खन खाया, एक समोसा खाया और एक गिलास गर्म दूध पिया । दूध वहां के स्टेशन पर तब बहुत अच्छा मिलता था। अब दोपहर हो गई थी गर्मी बढ़ रही थी।
फिर आगे बढ़े और धीरे-धीरे सब गर्म कपड़े उतर गए । नागपुर के आते आते ट्रेन के दोनों तरफ संतरे के काफी पेड़ दिखाई दिए । शाम के 5:00 बजे नागपुर पहुंचे ।मौसम मेें दिल्ली की ठिठुरन गायब थी । मार्च के आखिरी दिनों जैसा मौसम था।
नागपुर स्टेशन पर सबसे पहले अपने पिताजी के एक मित्र के घर आ गए थे । वह अपनी कार में मुझे लेने आये थे स्टेशन। अगले दिन दफ्तर पहुंचा न्यू सेक्रेटेरिएट बिल्डिंग जो बिशप कॉटन स्कूल के पास है । मेरे दफ्तर और बिशप कॉटन स्कूल के बीच में तब खुदा मैदान हुआ करता था जहां क्रिकेट खेला जाता था ।बाद में तो वहां टेस्ट मैच की होने लगे मेरे जाते-जते और वहां मैंने चार्ज ले लिया ।
कुछ ही दिनों में मुझे सरकारी कॉलोनी में सिविल लाइंस में एक छोटा सा मकान किराए पर मिल गया जो किसी एक बाबू का था जो किसी और के साथ अकेले रह रहे थे अपना पूरा मकान किराए पर उठाकर । मकान अच्छा था खुला हुआ एक मंजिल का । दो बड़े बड़े कमरे थे किचन पैन्ट्री बाथरूम वगैरह ठीक थे। पीछे बहुत बड़ा आंगन दीवाल से घिरा हुआ था और आगे पीछे बरामदा।
नागपुर में हरियाली बहुत थी तब। अब पता नहीं क्या हाल है । चौड़ी सड़कें साफ सुथरा शहर खासकर जिस इलाके में मैं रहता था और जिन इलाकों में मेरा आना जाना था।
सिविल लाइन से दफ्तर को एक बस जाती थी जिसमें सुबह 9:00 बजे में बैठ जाता था। 10 मिनट का रास्ता था बस से । शाम को मैं बस से नहीं लौटता था बल्कि नैयर साहब के रेस्ट्रो में चला जाता था जो पास में लिबर्टी सिनेमा के बगल में था । वहीं नय्यर साहब की स्पेशल नीलगरी चाय पीता और इडली डोसा वगैरह का नाश्ता करता। नैयर साहब बड़े हंसमुख अधेड़ उम्र के आदमी थे। सफेद, चांदी की तरह चमकते बाल, मुस्कुराता चेहरा, हंसती आंखें, गोरा स्वस्थ बदन।
लिबर्टी सिनेमा नैयर के रेस्त्रां के बगल में ही था
जहां पर काफी अंग्रेजी फिल्में दिखाई जाती थी और दो-तीन दिन में पिक्चर बदल जाती थी। नागपुर में मैं कोई तीन साल रहा और इस बीच में मैंने जितनी इंग्लिश पिक्चर लिबर्टी सिनेमा में देखी थी फिर शायद कभी नहीं देखी हो । वहीं मेरा परिचय 007 जेम्स बांड से हुआ जिस की सभी पिक्चरें मैंने देख डाली। वहीं मेरा परिचय महान अभिनेता पीटर उटूल से हुआ जिनकी लॉरेंस आफ अरेबिया ने मेरा मन मोह लिया ।
जहां पर काफी अंग्रेजी फिल्में दिखाई जाती थी और दो-तीन दिन में पिक्चर बदल जाती थी। नागपुर में मैं कोई तीन साल रहा और इस बीच में मैंने जितनी इंग्लिश पिक्चर लिबर्टी सिनेमा में देखी थी फिर शायद कभी नहीं देखी हो । वहीं मेरा परिचय 007 जेम्स बांड से हुआ जिस की सभी पिक्चरें मैंने देख डाली। वहीं मेरा परिचय महान अभिनेता पीटर उटूल से हुआ जिनकी लॉरेंस आफ अरेबिया ने मेरा मन मोह लिया ।
शाम को मैं अक्सर सीताबल्डी चला जाता था घूमने के लिए वहां की बाजार में । सीताबल्डी नागपुर की पुरानी बाजारों में से एक है । काफी बड़ी बाजार है। उन दिनों लिबर्टी सिनेमा से सीतामढ़ी का रिक्शा का किराया 25 पैसे था फिर वहां से फिर रिक्शा लेकर सिविल लाइंस आ जाता था अपने घर में।
नागपुर में गर्मी काफी पड़ती थी । पर गर्मी तो उत्तरी भारत में सभी जगह पड़ती है। जब दिल्ली का तापमान 44 डिग्री होता है तो नागपुर का 46 डिग्री होता है । बस इतना ही फर्क है । एक बहुत बड़ा फर्क नागपुर और उत्तरी भारत में है। यह है कि वहां की मिट्टी कुछ खास किस्म की है जो हवा में उड़ती नहीं है। इसलिए वहां गर्मी के मौसम में दिल्ली वाली गंदगी वातावरण में नहीं होती है और धूल भरी आंधी नहीं चलती है दिन में । सुबह की पहनी हुई सफेद कमीज शाम तक वैसे ही रहती है। नागपुर की बरसात इतनी बढ़िया है कि उसका अनुभव ही किया जा सकता है । तापमान बहुत गिर जाता है और बुजुर्ग लोग तो कभी कभी हल्का स्वेटर भी निकाल लेते हैं तेज बरसात के दिनों में। दफ्तर के नजदीक एक शेर ए पंजाब रेस्तरां था जहां खाना बहुत बढ़िया मिलता था । तो दिन में मैं खाना वहीं खाता था। बरसात के दिनों में अक्सर लोग वहां पंखे बंद करवा दिया करते थे ठंड की वजह से।
नागपुर का जाड़े का मौसम भी बहुत ही अच्छा होता था । जब उत्तरी भारत में हड्डी हिलाने वाली ठंड पड़ती है तो नागपुर में बर्दाश्त के लायक ठंड पड़ती है और वहां का जनवरी का महीना कष्टदायक नहीं होता है । बढ़िया धूप होती है कभी भी कोहरा नहीं होता है और एक हल्की रजाई से आराम से काम चल जाता है।
यह बात 1967 से 1970 के बीच की है। तब से अब तक नागपुर में शायद बहुत अंतर आ गया होगा। आबादी भी बहुत ज्यादा बढ़ गई होगी । हो सकता है पेड़ भी काफी कट गए हो जैसा के अन्य शहरों में होता है। मेट्रो के आने के बाद शायद उतना खुला हुआ वातावरण भी ना हो। आबादी भी अब काफी बढ़ गई होगी । कार बहुत आ गई हैं सभी जगह। ट्रैफिक बहुत खराब हो गया है हर शहर का। फ्लाईओवर और मेट्रो की लाइन की वजह से सब प्राकृतिक सौंदर्य गायब होते जा रहे हैं।
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