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Sunday, 9 January 2022

डाकिया और मोबाइल फोन की मार

 कुछ आवाजें है जो अब हमे नहीं सुनाई देती है । उनमे से एक आवाज है पोस्टमैन की जो एक खास अंदाज में  आवाज लगाता था - (पोस्ट मन्न) घर पर चिट्ठी डालने से पहले , ताकि घर के लोगों को पता चल जाए कि चिट्ठी आई है।

फिर तो घर के कई सदस्य में दौड़ लग जाती थी कि कौन उठाएगा चिट्ठी।

कुछ दशक पहले तक एक दूसरे से संपर्क का माध्यम चिट्ठी ही था। ढाई आने (बाद में 15 पैसे) का एक लिफाफा होता था ,10 पैसे का अंतर्देशीय पत्र और तीन पैसे का पोस्टकार्ड।  जरा सोचिए 3 पैसे के पोस्ट कार्ड में आप चिट्ठी लिखते थे , यहां से मुंबई में रहने वाले अपने किसी रिश्तेदार को। लाल रंग के लेटर बॉक्स में डालते थे फिर बाद में एक पोस्टमैन आता था और लेटर बॉक्स  से सभी चिट्टियां को निकाल कर एक बड़े थैले मे पोस्ट ऑफिस ले जाता था। वहां  चिट्ठियों की छटाई होती थी। अलग-अलग शहरों के  थैलौं में भरकर रेलवे स्टेशन एक लाल रंग की गाड़ी से ले जाई जाती थी। रेलगाड़ी में भी RMS यानी रेलवे मेल सर्विस का एक लाल रंग का डिब्बा होता था जिसमें सभी  थैले भर दिए जाते थे रास्ते में आने वाले शहरों के  प्लेटफार्म में यह थैले फेंक दिया जाते थे। फिर एक लाल रंग की बस में रख कर पोस्ट ऑफिस ले जाया जाता था। पोस्ट ऑफिस में अलग-अलग मोहल्लों के चिट्ठियों को अलग-अलग मोहल्लों के पोस्टमैन  अपनी साइकिल में लेकर  घरों में डाल दिया करते थे।

यह सब काम के लिए आपको सिर्फ कुछ पैसे ही देने होते थे .

ऐसी ही जो दूसरी चीज अब लगभग गायब ही हो गई है वह है टेलीग्राम । आप लंबी दूरी का सफर तय कर के पहुंचते थे दूसरे शहर में तो वहां से टेलीग्राम करते थे अपने घर को "Reached Safely" और इन दो शब्दों के टेलीग्राम के लिए आपको पोस्ट ऑफिस जाना पड़ता था एक फॉर्म भरना पड़ता था और पैसे देने होते थे। फिर MORSE CODE की मशीन पर आपका संदेश दूसरे शहर को भेजा जाता था जहां पोस्ट ऑफिस के कर्मचारी एक टेलीग्राम फॉर्म में  लिखकर आपके घर पर भेजते थे । 

 आजकल शहर की सड़कों पर लाल रंग के लेटर बॉक्स करीब करीब खाली पड़े रहते हैं टेलीग्राम सर्विस बंद हो चुकी है  मनीऑर्डर भी बहुत ही कम लोग करते होंगे।

 धीरे धीरे पोस्ट ऑफिस का स्वरूप बदलता जा रहा है और डाकिए की परिभाषा भी।

 अखबार और टेलीविजन का भविष्य भी धूमिल हो गया है । 
कुछ हद तक सिनेमाघरों का भी  बुरा दिन आ रहा है। 

अगले कुछ सालों में बड़े-बड़े Malls भी ग्राहकों को तरसेंगे जब अधिकांश लोग अपने मोबाइल का इस्तेमाल करके घर पर ही सामान मंगवा आएंगे - अमेज़न फ्लिपकार्ट , बिग बास्केट जैसी बड़ी कंपनियों से।
  मोबाइल फोन की मार से सभी कुछ बदल रहा है।
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