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Saturday 26 November 2022

शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता

हमारी स्कूली शिक्षा

स्कूल में हमें पढ़ाया जाता है कि मोहम्मद तुगलक को क्यों पागल कहते थे। स्कूल में हमें पढ़ाया जाता है कि प्राचीन रोम के पतन के क्या कारण थे। स्कूल में हमें यह पढ़ाया जाता है कि इंग्लैंड के कवि वर्ड्सवर्थ कीट्स और शैली अपनी कविताओं में क्या कहते थे । स्कूल में हमें यह पढ़ाया जाता है कि वीर रस,  सौंदर्य रस इत्यादि के हिंदी के कौन कवि थे । स्कूल में हमें लड़ाइयां के बारे में पढ़ाई जाता है _पानीपत का युद्ध, प्लासी का युद्ध,सिकंदर का भारत पर आक्रमण, नादिर शाह ने कैसे भारत में आकर लूट मचाई, तैमूर का आक्रमण इत्यादि।

स्कूल में हमें यह नहीं पढ़ा जाता है कि हम अपना स्वास्थ्य कैसे अच्छा रख सकते हैं । स्कूल में हमें यह नहीं बताया जाता कि हम को किस तरह अपना खानपान रखना चाहिए ताकि स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें स्कूल में हमें यह नहीं पढ़ा जाता है कि हमारे शरीर कैसे काम करता है । स्कूल में हमें यह नहीं पढ़ाया जाता कि घर में छोटी मोटी चीजों की मरम्मत हम खुद कैसे कर सकते हैं । और स्कूल में यह नहीं पढ़ाया जाता कि जिस कानून का हमें पालन करता है वह कानून क्या है । कानून की शिक्षा तो m.a. तक कहीं नहीं होती। अलग से एलएलबी करना होता है और हम से यह अपेक्षा की जाती है कि हम कानून का पालन करेंगे।

देखा जाए तो यह शिक्षा पद्धति हमारी जीवन शैली में खरी नहीं उतरती । और उतरे भी कैसे ? यह शिक्षा पद्धति तो उन अंग्रेजों की देन है जिन्होंने भारत में शिक्षा इस उद्देश्य से देनी शुरू की कि उन्हें दफ्तरों में काम करने वाले बाबू मिल जाए।

एक जमाने में ब्रिटेन बहुत बड़ी समुद्री ताकत हुआ करता था।  उस जमाने में वायु सेना तो होती ही नहीं थी तो अपनी नौसेना के बल पर अंग्रेजों ने विश्व के कई देशों को अपना गुलाम बनाया और इन देशों में से जहां जलवायु उसके रहने लायक थी वहां बड़ी संख्या में नरसंहार करके उसे अपना देश बना दिया । जैसे यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका कनाडा ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका । पर भारत एक ऐसा देश है जहां की जलवायु उसके रहने लायक नहीं थी पर जहां अनाज था कोयला था लोहा था चीनी थी और भी बहुत सी चीजें थी जिनका व्यापार करके वह बहुत धनी हो सकता था। इन सब काम करने के लिए उसे ब्रिटेन से बड़ी संख्या में देशवासी नहीं मिल सकते थे क्योंकि इस गर्म देश में कोई बसना नहीं चाहता था । यह उचित समझा गया कि देश के  लोगों को अंग्रेजी शिक्षा दी जाए ताकि छोटे पदों पर क्लर्क और सुपरवाइजर का काम करने के लिए उसे पर्याप्त मात्रा में लोग मिल जाएं । यहीं से अंग्रेज शासकों की जरूरत पूरी करने वाली शिक्षा की शुरुआत होती है।

भारत की स्वाधीनता के बाद इस बात की बड़ी आवश्यकता थी कि देश की शिक्षा पद्धति में मूलाधार परिवर्तन किया जाए पर हुआ यह कि जिस अंदाज से तब तक शिक्षा दी जा रही थी, वही सिलसिला चलता रहा।  नतीजा यह है कि हमें अपने कानून का ज्ञान नहीं है । हमे अपने शरीर विज्ञान का ज्ञान नहीं है हमें आयुर्वेद की चमत्कारी जड़ी बूटियों का ज्ञान नहीं है। हमें यह नहीं पता है कि घर की छोटी-मोटी चीजों के मरम्मत हम खुद कैसे कर सकते हैं। स्कूल में ऐसा कोई हुनर नहीं सिखाया जाता जिससे हम अपना रोजगार शुरु कर सके अपने आजीविका कमा सके। लड़का हाई स्कूल में फर्स्ट डिवीजन में पास हुआ और आगे भी फर्स्ट डिवीजन देता हुआ एम ए में इतिहास प्रथम श्रेणी में पास होकर जब तैयार हुआ तो नौकरी के लाले पड़ गए। वही एक दर्जी की दुकान वाला लड़का या एक मोटर मैकेनिक का लड़का हाईस्कूल पास करके अच्छे खासे पैसे कमाने लगा क्योंकि जो शिक्षा उसे स्कूल देने में असमर्थ था वो उसके घरवालों ने उसे दे दी। 

होना यह चाहिए की 12वीं क्लास तक आपको ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे आप अपने रोजी-रोटी खुद कमा सकें और नौकरी के लिए आपको सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़े। और जो लोग आगे अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए पढ़ना चाहते हैं या शिक्षा के क्षेत्र में या किसी और में उच्च शिक्षा लेना चाहते हैं वह ले सकते हैं पर अगर वह ना लेना चाहे तब भी एक सम्मानित जीवन व्यतीत करने योग्य बने रहें 12वीं पास करके । उस उच्च शिक्षा से क्या फायदा यदि उसने यही ज्ञान दिया है अंग्रेजी साहित्य के कवि और उपन्यासकारों की रचनाओं की किस तरह से विवेचना की जाए।

हमारी शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए क्या हम आत्मनिर्भर बन सकें समय आने पर अपनी आजीविका कमा सकते हैं इस लायक बन सके कि अपने परिवार को एक सम्मानित जीवन दे सकें और इसके लिए हमारी शिक्षा पद्धति में मूलाधार परिवर्तन की आवश्यकता है।

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