यादें लखनऊ यूनिवर्सिटी हॉस्टल की
MA मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से किया। गोमती के पार लखनऊ यूनिवर्सिटी एक बहुत बड़े कैंपस में फैली हुई है और उसकी शानदार इमारतें हैं।
मैं नरेंद्र देव हॉस्टल में रहने लगा । यह बात 1960 की है और तब आचार्य नरेंद्र हॉस्टल नया नया बना था। शानदार तीन मंजिल बिल्डिंग थी।
पहले साल मेरा कमरा नीचे वाली मंजिल में था और बगल में कोई सूर्य प्रकाश रहते थे हरदोई के, जो एलएलबी कर रहे थे। पास ही के कमरे में भगवान प्रसाद वर्मा रहते थे जो इकोनॉमिक्स में एम ए कर रहे थे और जो बाद में इंडियन कस्टम सर्विस में आ गए। हॉस्टल के इकोनॉमिक्स ब्लॉक की तरफ वाले विंग में एक जैन साहब रहते थे जो एमएसडब्ल्यू कर रहे थे। काफी स्वस्थ शरीर के थे और उनके होंठ बिल्कुल काले थे। इस हॉस्टल में रहकर एमएसडब्ल्यू करने वाला एक और लड़का था जिसका नाम था अग्रवाल।
हॉस्टल के वार्डन मिश्रा जी थे । काफी डरपोक किस्म के आदमी जो हिस्ट्री डिपार्टमेंट में वेस्टर्न हिस्ट्री के प्रोफेसर थे।
हॉस्टल में एक कोहली भी रहते थे किसी पैसे वाले बाप के बेटे। शायद पिता पुराने जमीदार रह चुके थे क्योंकि इस हॉस्टल में कोहली साहब के पिताजी की रखैल का बेटा भी पढ़ रहा था। यह बात मुझे बताई थी कोहली साहब ने खुद ही मुझे।
भगवान प्रसाद वर्मा के अलावा वर्मा नाम का एक और लड़का था। नौजवान था 16, 17 साल का। बहुत स्वस्थ शरीर वाला। जिसका नाम था शिशुलेन्द्र वर्मा। छोटे वर्मा साहब को पास ही के मकान के एक प्रोफेसर साहब की लड़की से इश्क हो गया था जो उन्ही की उम्र की थी और जब मैं गर्मियों की छुट्टी के बाद पार्ट 2 के लिए वापस आया तो पता चला कि गर्मियों में उनकी एक बिन ब्याहे संतान हो चुकी थी। खैर लड़की के बाप ने मामला रफा दफा करने के लिए लड़की की शादी छोटा वर्मा जी से कर दी ।
बहुत बाद में एक दिन मैंने उन दोनों को मेफेयर सिनेमा के क्वालिटी रेस्टोरेंट से बाहर निकलते देखा जब शायद वह लड़की 16 17 साल की होगी।
हमारे हॉस्टल में एक सरकारी मेस था जहां सभी लोग खाना खाते थे और उसका मैनेजमेंट के लिए एक मैनेजर था। खाना बहुत ही थर्ड क्लास होता था और जाहिर है की काफी पैसों का घोटाला मैनेजर करता था। बीपी वर्मा उस्ताद आदमी था इस यूनिवर्सिटी लाइफ में भी और अपनी नौकरी के दौरान भी। उसने किसी तरह उस मैनेजर को पटा लिया और उसके साथ अक्सर खाना खाया करता था बहुत बढ़िया क्वालिटी का उसके कमरे में।
हमारे हॉस्टल में सिंगल सीटेट रूम ज्यादा थे और थोड़े से डबल और ट्रिपल सीटेट थे। एक ट्रिपल सीटेट रूम में एक दर्शन सिंह रहा करते थे जो बॉडीबिल्डर थे और जिनको फिल्म लाइन में जाने का बड़ा तगड़ा शौक था। कई साल बाद पता चला कि वह मुंबई पहुंच चुके थ। सफलता तो नहीं मिली उन्हें पर एक दो फिल्मों में एक-दो मिनट के लिए दिखाई दिए थे फिर बाद में कहीं गायब हो गए।
हमारे हॉस्टल में एक पाठक जी भी थे जो फिल्मी गाने में बहुत इंटरेस्ट रखते थे।उन्हें की मदद से हमारे पहले साल में अग्रवाल जो सोशल सेक्रेटरी भी थे और एमएसडब्ल्यू कर रहे थे उन्होंने हॉस्टल के लिए एक रेडियोग्राम खरीदा जिसमें एक साथ 10-10 रिकॉर्ड सुन जा सकते थे। उसके बाद तो हॉस्टल के कौमन रूम में जो पहले खाली पड़ा रहता था काफी लोग आने लगे फिल्मी गाने सुनने के लिए बार-बार।
बहुत सालों बाद पाठक जी से दुबारा मुलाकात हुई शायद मेरे बुआ जी के लड़के हिमांशु पांडे के कमरे में जो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में थे। याद नहीं है की पाठक जी कहां नौकरी कर रहे थे।
एक और सज्जन हॉस्टल में रहते थे जिन्हें कैंसर हो गया था और जो बार-बार मुंबई में टाटा इंस्टिट्यूट में जाकर सर्जरी करवा रहे थे। नाम अभी याद नहीं आ रहा है। कुछ साल पहले पता चला था वह जीवित है। मतलब यह की वह 1960 में कैंसर होने के बाद भी अगले 50 साल तक जीवित रहे।
पार्ट 2 में आने पर मैं ऊपर तीसरी मंजिल पर चला गया ठीक उसी कमरे के ऊपर जहां मैं प्रथम वर्ष में नीचे रहता था। वहीं पास में किसी कमरे में एक बहुत सीधे-साधे उड़ीसा के विशंभर महापात्र रहते थे जिनसे अक्सर मुलाकात हो जाती थी। बड़े अच्छे स्वभाव के थे।
मेरे हॉस्टल में रहने के दौरान में लखनऊ में गोमती नदी का बंधा टूटा और पूरे शहर में बाढ़ आ गई थी। हमारे हॉस्टल के लोन में भी पानी भर गया था।
यह सब बहुत पुरानी बातें हैं अब तो लखनऊ यूनिवर्सिटी तथा अन्य बहुत सी यूनिवर्सिटी में काफी अराजकता आ गई है।
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