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Wednesday 6 September 2023

बचपन के झटके

आपको झटके तब लगते हैं जब आपकी कल्पना के विपरीत कोई बात हो जाती है और बचपन में अगर आपकी कल्पना के विपरीत कोई ऐसी बात हो जाती है जिससे आपको सदमा पहुंचता  तो यह झटके आपके जीवन भर याद रहते हैं।

बचपन की सबसे पहली किताब कहानी की जो हमारे घर पर आई थी वह थी शिशु मैगजीन। छोटी-छोटी कहानी चुटकुले और कविताओं से भरी हुई । संपादक जी का भी एक पृष्ठ होता था और उसमें वह बच्चों से बहुत प्यार से बातें किया करते थे। बचपन में मुझे संपादक जी की ऐसी कल्पना थी कि वह करीब 30 साल के युवक होंगे जो बहुत शांत स्वभाव के बहुत सुंदर और बच्चों से बहुत प्यारी प्यारी बात करने वाले होंगे।

शायद मैं 6 साल का था जब इलाहाबाद जाने का मौका मिला था।  पिताजी को शायद कोई समारोह में शामिल होना था रिश्तेदार के । 

जब सब काम निपट गया और समय बचा हुआ था तब मुझे उत्सुकता हुई कि शिशु पत्रिका के संपादक जी से मिला जाए। मेरे पिताजी और अन्य लोगों ने मेरी बात मान ली और हम लोग शिशु के संपादक के कार्यालय पहुंच गए।

जब संपादक जी के कमरे में पहुंचे तो देखा वहां एक मोटी सफेद मूंछ वाला  बड़ा व्यक्ति बैठा हुआ है जो कुछ चिड़चिड़ा स्वभाव का है जब हमारे साथ के लोगों ने बताया कि यह बच्चा आपका बहुत बड़े फैन हैं और आपके दर्शन करने आया हैं तो संपादक जी ने कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मुझसे तो बात ही नहीं की। इस घटना से मन को इतनी ठेस पहुंची और यह कल्पना के इतने विपरीत था कि यह घटना मुझे अभी तक याद है।

एक और घटना याद है । जब मैं 10 साल का था और मेरी बड़ी बहन 12 साल की थी हम लोग नैनीताल गए हुए थे और हमारा साथ दे रही थी हमारी मौसी की लड़की जो मुझसे काफी बड़ी करीब 22 साल की थी उन दिनों तक हमने कभी तंदूरी रोटी का नाम नहीं सुना था ना देखा था।  घर पर रोटी चावल वगैरह खाते थे । ना तो दक्षिणी भारतीय दोसा और ना पंजाब की तंदूरी से कभी पाला पड़ा था।

तो एक दिन हम लोगों ने यह सोचा कि क्यों ना आज पता करें कि तंदूरी किस टाइप की रोटी होती है और उसे खाया जाए। हमारी कल्पना में तंदूरी रोटी आलू के पराठे या कचोरी जैसी कोई स्वादिष्ट चीज होगी। एक दिन हमारी मासी की लड़की हमें लेकर एक रेस्टोरेंट में पहुंची हम लोग बैठे, बैरा आया और मौसी की लड़की ने आर्डर दे डाला

"तीन तंदूरी रोटी"

"सब्जी क्या होगी"  बैरा बोला

"और कुछ नहीं चाहिए" मौसी की लड़की बोली

दो  मिनट के बाद बैरा एक प्लेट में तीन लक्कड़ जैसी सूखी रोटियां ले आया और हमारे सामने रख दी। अपने सामने तीन सूखी रोटियां देख कर हमें जो झटका लगा वह अभी तक याद है।

बचपन में कुछ दिन कॉन्वेंट स्कूल में दाखिला हुआ जब मैं तीन-चार साल का था।  पर जल्दी ही वहां से निकाल दिया गया क्योंकि मुझे हूफिंग कफ हो गया था जो बच्चों में फैल सकता था। उसके बाद कुछ साल तक घर पर ही मास्टर साहब आ कर पढ़ाते रहे। अच्छे स्वभाव के थे और कहा करते थे की मां और गुरु का स्थान बहुत ऊंचा होता है। यह दोनों बच्चों को सही मार्ग दिखाते हैं और  आदर्श स्वभाव के होते हैं।

कुछ समय बाद मेरा दाखिला सीधे छठे क्लास में एक गवर्नमेंट हाई स्कूल में हो गया और मैं पहले दिन जाकर क्लास पर बैठा। मैं सबसे आगे की बेंच पर बैठा हुआ था। मास्टर साहब पढ़ा रहे थे और पीछे किसी लड़के ने कोई ऐसा मजाक किया की क्लास के सब लड़के जोर-जोर से हंसने लगे। मैं भी पीछे की तरफ देखकर हंस रहा था कि इतनी देर में पीछे गर्दन और सर के पास एक झंन्नाटेदार झापड़ पड़ा और मुझे सितारे दिखने लगे। यह झापड़ हमारे गुरु जी ने मारा क्योंकि उन दिनों हर स्कूल में बच्चों की खूब पिटाई होती थी। मुझे आज तक उनके घूरते हुए चेहरे और गुस्से से भरी आंखें याद है।

गुरु की ऐसी कल्पना मेरे दिमाग पर कभी नहीं थी और मुझे इतना तगड़ा झटका लगा कि क्लास खत्म होने के बाद मैं अगले क्लास में नहीं गया और सीधे घर को रवाना हो गया। फिर घर के लोगों के जोर देने के बावजूद भी मैं उस स्कूल में नहीं गया। पिताजी के दोस्त के एक प्राइवेट स्कूल में मेरा दाखिला करा दिया गया।

इस नए स्कूल में मुझे कभी भी मार नहीं पड़ी हालांकि मैंने वहां से हाई स्कूल पास किया था। पर वहां की एक घटना से मुझे काफी झटका लगा था।  मेरे साथ कुछ नहीं हुआ था। हुआ ऐसा की मेरी  सातवीं क्लास में  एक शरारती मजबूत पंजाबी लड़का था जिसके घर का वातावरण शायद ऐसा था कि वहां गाली गलौज काफी होता होगा और उसकी जुबान पर हर समय मां बहन की गलियां होती थी। 

तो हुआ ऐसा कि हमारे प्रिंसिपल साहब अंग्रेजी विषय पर कुछ पढ़ा रहे थे । पीछे से उस लड़के ने किसी बात पर अपने बगल के बैठे लड़के को मां-बहन की गाली दे डाली।  प्रिंसिपल साहब ने यह सुन लिया । उन्होंने मेज पर रखी हुई छड़ी उठाई और पीछे जाकर उस पंजाबी लड़के को छड़ी से मारना शुरू किया और तब तक मारते रहे जब तक छड़ी टूट कर दो टुकड़े नहीं हो गई। लड़के को मार पड़ रही थी और वह चुपचाप सह रहा था पर मैं कांप पर रहा था क्योंकि ऐसा दृश्य मैंने कभी नहीं देखा था । मुझे आज भी उस लड़के की शक्ल याद है ।

बचपन में मनुष्य का दिमाग बहुत संवेदनाशील होता है। झटके तो जीवन में कई बार लगाते हैं पर बचपन के झटके सबसे ज्यादा याद रहते हैं।

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