गायब
समय बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और बहुत सी पुरानी उपयोग की वस्तुएं हमसे छूट जा रही है। बहुत से ऐसे दृश्य हैं जब दिखाई नहीं देते ।
चलिए देखते हैं कि क्या गायब हो गया।
एक जमाने में भारत की आजादी से पहले की बात है जब टाइपराइटर कम होते थे और जब दफ्तर में लिखा पड़ी का काम काफी ज्यादा । उस जमाने में अगर किसी चिट्ठी की कॉपी बनानी होती थी जैसा कि दफ्तर में होता है तो दो कागज के बीच में एक कार्बन के पेपर रखकर उस पर हाथ से लिखा जाता था तो नीचे वाले कागज में भी कार्बन की वजह से उसी की कॉपी निकाल आई थी। ज्यादा कार्बन लगाकर ज्यादी कॉपी निकाल सकते थे पर उससै पेंसिल टूटने का डर रहता था क्योंकि कुछ दबा कर लिखना होता था । तो उसके लिए एक खास पेंसिल होती थी जिसका नाम था कॉपीइंग पेंसिल। यह कॉपीइंग पेंसिल और कार्बन पेपर दोनों गायब हो चुके हैं। अब तो पुराने जमाने वाले टाइपराइटर भी गायब हो चुके हैं।
अब आप दफ्तर से बाहर सड़क पर आते थे तो कहीं दूर पर पुराने जमाने में टेलीफोन बूथ दिखाई देता था लाल रंग का या काले रंग का। उस ज़माने के लैंडलाइन वाले फोन भी बहुत कम लोगों के पास थे तो जनता के इस्तेमाल के लिए यह टेलीफोन बूथ रखे गए थे। अब आपको यह टेलीफोन बूथ कहीं नहीं दिखाई देंगे
यही हाल तीन बैंड वाले उन रेडियो सेट का है जिसमें शॉर्ट वेव और मीडियम वेव के मीटर बैंड होते थे जिससे देश की और पूरे संसार की खबरें और अन्य प्रोग्राम सुने जा सकते थे। यह रेडियो भी गायब हो चुके हैं और इसके बाद आने वाले ट्रांजिस्टर रेडियो भी गायब हो चुके हैं।
गायब तो बहुत ही चीज हो चुकी है । आपको याद होगा एक जमाने में वीडियो और ऑडियो कैसेट हुआ करते थे जिनको आप देख सकते थे सुन सकते थे ऑडियो वीडियो कैसेट भी गायब हो चुके हैं।
और पुरानी बात करें तो एक जमाने में ग्रामाफोन हुआ करता था गाना सुनने के लिए । एक छोटे से बक्से में एक घूमता हुआ तवा होता था जिसके बीच में एक कील होती थी।एक काले रंग का रिकॉर्ड होता था जिसके बीच में भी छेद होता था ग्रामाफोन में रिकॉर्ड को फिट करके तवे के ऊपर बिठाया जाता था और फिर चाबी भर कर घूमते हुए तवे पर लोग गाना सुनते थे।
अब तो आपको ना कहीं यह रिकॉर्ड दिखाई देगा और नहीं ग्रामाफोन। उसी के साथ उस जमाने के रेडियोग्राम भी गायब हो चुके हैं।
मैं स्कूल में पढ़ता था तो स्कूल में बिजली नहीं थी। कमरे बड़े-बड़े थे और बड़ी-बड़ी ऊंची खिड़की होती थी। इसकी वजह से अंदर काफी रोशनी रहती थी। गर्मियों में बिजली के पंख तो थे नहीं। उस जमाने में मोटे कपड़े के करीब 8 फुट लंबे और 2 फीट चौड़े टांट के पंखे छत से लटके रहते थे और उसमें एक रस्सी बाहर बरामदे को जाती थी जिसे छोटे-छोटे लड़के खींचते और छोड़ते थे। इससे टांट तेजी से हिलता था और हवा आती थी कमरे में।
हमारे बचपन में एक और दृष्य ऐसा था जो अब नहीं दिखाई देता। उसे जमाने में बहुत कम कार में सेल्फ स्टार्टर होता था यानी अंदर बैठकर इंजन चालू नहीं कर सकते थे ड्राइवर। मोटर के आगे के हिस्से में एक जिग जैग आकार का लोहे को रौड डाला जाता था और हैंडल घुमाया जाता था इससे गाड़ी स्टार्ट होती है।
एक और चीज आजकल दिखाई नहीं देती है। पुराने जमाने में घर के अंदर घड़ी - चाहे दीवाल की हो या मेज की हो या हाथ में पहनने वाली हो - उसमें चाबी भरनी पड़ती थी और उससे वह घड़ी अगले 24 घंटे के लिए चालू रहती थी। अगर घड़ी में चाबी देना भूल गए तो सुबह घड़ी बंद मिलती थी। अब वैसी घड़ियां गायब हो चुकी है इसलिए किसी को यह भी पता नहीं है की चाबी भरना क्या होता था ।
चीजें तो और भी कई गायब हो चुकी है जैसे मिट्टी के चूल्हे, petromax स्टोव, धुआं निकालने वाली चिमनी वाले मकान, एक्के की सवारी वगैरह। पर यह सब बात फिर कभी।
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