अन्य शहरों की तरह ही इलाहाबाद भी आज बहुमंजिली इमारत और सैकड़ो वाहनो वाला भीड़भाड़ का शहर बन चुका है।
पर इलाहाबाद बहुत ही पुराना शहर है और इसका सैकड़ो सालों का इतिहास है।
पहले इसका नाम प्रयाग था जो भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ में से एक था। मुगलों ने इसका नाम इलाहाबाद रख दिया और अंग्रेजों ने स्पेलिंग की हेरा फेरी करके इसे Allahabad कर दिया। तभी से यह इसी नाम से जाना जाता था भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने से पहले ।
अब पुराना नाम वापस आ गया है यानी प्रयागराज।
वैसे तो 18 वीं सदी में अंग्रेजों की नजर इलाहाबाद पर पड़ चुकी थी और 19वीं सदी के शुरू में यहां पर अंग्रेजों ने अपने पैर जमाने शुरू कर दिए थे पर 1857 के बाद ही अंग्रेजों का इलाहाबाद पर पूरा कब्जा हुआ जब ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटेन के महारानी विक्टोरिया ने भारत का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
उत्तर प्रदेश को पहले यूनाइटेड प्रोविंसेस औफ आगरा एंड अवध के नाम से जाना जाता था और इसकी राजधानी अंग्रेजों ने इलाहाबाद में स्थापित की। फिर बहुत तेजी से विकास हुआ इलाहाबाद का।
कोलकाता से दिल्ली को जाने वाली रेलवे लाइन के एक तरफ पूरा इलाहाबाद शहर बसा हुआ था पुराने जमाने का और इसकी दूसरी तरफ के गांवों को अंग्रेजों ने खाली करवा कर यहां पर आधुनिक इलाहाबाद का निर्माण करना शुरू किया । अंग्रेजों के बनाए इस नए इलाहाबाद को सफेद इलाहाबाद भी कहते थे और यहां सिर्फ सफेद चमड़े वाले अंग्रेजी बसते थे।
बहुत ही अच्छी प्लानिंग वाला नया इलाहाबाद शहर था। अंग्रेजों ने यहां पर बहुत ही चौड़ी सड़क बनाई और सड़क के दोनों और आधुनिक भव्य इमारतें खड़ी की। सिविल लाइंस का इलाका भारत की स्वतंत्रता के कई भाग साल बाद भी एक अच्छी नगर प्लानिंग का उदाहरण पेश करता था।
अंग्रेजों के इलाहाबाद शहर को देखकर लगता है कि अंग्रेजों ने बहुत सोच समझ कर अच्छी प्लानिंग की। सिविल लाइंस की खूबसूरत मार्केट का निर्माण किया उसके पीछे दूर-दूर तक बड़े-बड़े सुंदर बंगले और दोनों तरफ हरियाली से भरे पेड़ लगाए सड़क के। आगे चलकर एक सड़क सीधे उसे जगह गई जहां बाद में बाद मे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का निर्माण हुआ। और इस सड़क के दाहिने तरफ एक विशालकाय पार्क का दरबार हुआ जिसे अल्फ्रेड पार्क के नाम से जाना जाता था और जो भारत की यह स्वतंत्रता के बाद चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है।
कई दशक पहले मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का छात्र रह चुका हूं और वहां के एक हॉस्टल में रहता था उसे जमाने में इलाहाबाद शहर काफी हद तक अंग्रेजों के समय जैसा ही था यानी ताबड़तोड़ बिल्डिंग किसका निर्माण सड़कों पर दुकानों का निर्माण और कब्जा , शहर में बढ़ती गंदगी और बेतहाशा इलाहाबाद शहर की आबादी का बढ़ना नहीं हुआ था। तब यूनिवर्सिटी से सिविल लाइंस तक का इलाका बहुत ही सुंदर हुआ करता था। सिविल लाइंस की मार्केट जो बाद में बिल्डिंगों का जंगल बन गई थी साफ सुथरी एक पंजिली इमारत से भरी खुली, साफ बाजार थी। सिविल लाइंस मार्केट के मुख्य चौराहे की खूबसूरती उसके खुलेपन में थी
बड़े चौराहे के पास ही प्लाजा सिनेमा हुआ करता था जहां हिंदी फिल्में दिखाई जाती थी।
उसे गोल चक्कर से एक और सीधे एक रास्ता एक बहुत ही सुंदर चर्च की तरफ जाता था जिसके बांई ओर पैलेससिनेमा हुआ करता था जहां सिर्फ अंग्रेजी पिक्चर ही दिखाई जाती थी। दाहिने तरफ इसी सड़क पर मुख्य बाजार थी एक मंजिली जिसमें तरह-तरह की दुकान थी जैसे कोहली फोटोग्राफर, जनरल मर्चेंट की दुकान किंग एंड कंपनी, लकी स्वीट मार्ट, मैस्टन टेलर्स और जूते की दो-तीन दुकान। प्लाजा सिनेमा के ठीक सामने का हिस्सा खाली प्लॉट था जिस पर बाद में बिल्डिगों का देर लग गया।
जहां तक सिनेमा घरों की बात है तो हम लोग अक्सर चौक की तरफ भी जाते थे सिनेमा देखने चौक में बहुत पुराने जमाने के सिनेमाघर थे जिम एक का नाम याद है विशंम्भर टॉकीज।
उससे काफी पहले रेलवे के अड्डे ब्रिज से चौक इलाके में दाखिल होते ही उसे जमाने का सबसे आधुनिक सिनेमाघर निरंजन था जब शायद बंद हो चुका है। हम लोग अक्सर रविवार के दिन शाम को पिक्चर देखने चले जाते थे निरंजन में और निरंजन के ठीक नीचे ही एक रेस्टोरेंट है रात का भोजन कर लेते थे क्योंकि उसे दिन हॉस्टल में रात का भोजन नहीं मिलता था।
भारत में आबादी बहुत तेजी से बड़ी है और गांव से शहरों की ओर काफी आबादी का पलायन हुआ है इसलिए हर शहर की आबादी डिग्री डिग्री चौगुनी हो चुकी है यही हाल है इलाहाबाद का भी है पर हमारी याददाश्त में तो अभी भी वही पुराना सुंदर खुला हुआ साफ सुथरा पुराना वाला इलाहाबाद ही है।
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