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Tuesday 26 March 2024

जब मैं छोटा बच्चा था

मेरा पहला स्कूल

मेरे ख्याल से मेरी उमर 4 साल रही होगी जब मेरा एडमिशन सेंट मेरी कौन्वेट स्कूल में लोअर केजी क्लास में हो गया । लोअर केजी क्लास में कुछ पढ़ाते नहीं है । बच्चों को खिलौने दे के खेलने के लिए कहते हैं या फिर एबीसीडी वाली किताब में एबीसीडी सिखाते हैं । कोई इम्तिहान भी नहीं होता है।

  मैं और मेरी दीदी ,जो मुझे दो साल बड़ी है,   घर में काम करने वाले मलहू नाम के एक  आदमी के साथ स्कूल जाते थे । छोटा शहर था स्कूल कोई आधे मील दूर था। आधा रास्ता सीमेंट वाली पक्की सड़क का था और उसके बाद आधा रास्ता कच्ची सड़क थी जिससे बरसात में पानी के गड्ढे होते थे। बरसात के दिनों में अक्सर उस पर अगर कोई मोटर गाड़ी आती थी तो गड्ढों में से पानी और कीचड़ उछालती थी । 

अक्सर सामने से आती गाड़ी को देखकर भी मैं अपने को कीचड़ से बचने की कोई कोशिश नहीं करता था और चलता जाता था पर मेरी दीदी जो काफी होशियार थी तेजी से मलहू के पीछे चली जाती थी तो पानी की पूरी कीचड़ मेरे और मलहू के ऊपर गिरती थी और दीदी को कुछ नहीं होता था। कुछ लोग बचपन म बहुत होशियार होते हैं और कुछ लोग बचपन में बुद्धू होते हैं। 

सेंट मैरीस स्कूल में बहुत से छोटे-छोटे बच्चे थे  पर किसी का नाम याद नहीं है। हां एक लड़के का नाम याद है जिसे बाबा कहते थे और याद इसलिए है कि वह अक्सर क्लास के बाहर बरामदे में टट्टी कर देता था।

स्कूल के दरवाजे पर एक बहुत विशालकाय चिलबिल का पेड़ था और उसमें से चिलबिल नीचे गिरती रहती थी। सभी बच्चे खाली समय में पेड़ के नीचे से चिलबिल बीन कर खाया करते थे। मैंने भी सेंट मैरीस स्कूल में काफी चिलबिल खाई ।

एलजी से मेरा प्रमोशन यूकेजी में हो गया और यहां आकर कुछ किताबें घर ले जाने को भी मिलती थीं जिनमें खूब सी तस्वीर हुआ करती थी रंग-बिरंगी। साल में एक या दो बार एक मेला भी लगता था स्कूल में बच्चों का , जिसे फैंसी फैयर कहते थे ।अभी तक याद है कि उसमें एक खेल होता था जिसमें दो आने का एक टिकट लेकर लकी डिप किया करते थे। एक मछली के कांटा जैसा हुक एक बंद मटके के अंदर डाला जाता था और उस पर फंसकर जो भी खिलौना आ जाता था वह हमारा हो जाता था।

स्कूल के बगल में पिताजी का ऑफिस था जहां के वह सबसे बड़े औफिसर थे । तो हम लोग अक्सर पापा के  दफ्तर चले जाया करते थे क्लास के बाद और वहां समर हाउस के अंदर जाकर खेलकूद क्या करते थे। अभी तक याद है कि दफ्तर में बोटल ब्रश के कई पेड़ थे जिनमे लाल बोटल ब्रश की शक्ल के फूल भरे रहते थे पेड़ में। उसमें से इलायची की महक आती थी।

 उसी साल शहर में हूफिंग कफ  बच्चों में फैलने लगा और मुझे भी हो गया। खांसते-खांसते बुरा हाल हो जाता था । इसके बाद मुझे स्कूल से निकाल दिया गया। 

स्कूल से निकाल देने के बाद दो-तीन साल तक मेरी शिक्षा घर पर ही हुई और उसके बाद सीधे छठी क्लास पर मेरा एडमिशन करा दिया गया।
उस दौरान घर पर पढ़ाने के लिए राजबली सिंह नाम के एक मास्टर आया करते थे जो हमें सभी विषय पढ़ाया करते थे और जो बहुत से विषय खेलकूद की तरह मजेदार स्टाइल में पढ़ाते थे। गणित के सवाल करने के लिए वह हमारे लौन के (जो काफी बड़ा था)  एक छोर पर दो मेज पर जोड़ घटाने के सवाल रख देते थे। फिर दूसरे छोर पर मैं और दीदी खड़े होते थे और जब सिटी बजती थी तो दौड़ के दूसरे छोर पर जाकर सवाल करते थे और वापस अपने पहले वाले स्थान पर आ जाते थे। जो पहले आ जाता था वह जीत जाता था।

उसे जमाने में  बच्चे स्कूल में कभी-कभी  जाड़े के मौसम में पेड़ के नीचे भी पढ़ते थे गर्मियों में काफी लोग बाहर सोते थे।अब तो सब कुछ बदल गया है । बच्चों के आउटडोर क्या खेल होते हैं ज्यादातर बच्चों को तो यह भी पता नहीं है। सब मोबाइल में गेम खेलते रहते हैं।

उस कॉन्वेंट स्कूल में और बाद में लड़कों के स्कूल में जो अंतर मैंने देखा वह मुख्य रूप से सफाई का था । कॉन्वेंट स्कूल बहुत साफ सुथरा था और सभी टीचर बहुत ही सभ्य और समझदार मालूम होते थे । बाद में स्कूल में क‌ई तरह के नमूने देखे और स्कूल में  गंदगी भी। लड़कों के स्कूल में पिटाई बहुत होती थी पर क्योंकि मेरे पिताजी को उसे छोटे शहर में काफी लोग जानते थे इसलिए वहटी से बचा रहता था।

 मैं और दीदी मलहू के साथ शाम को क्लब जाया करते थे खेलने के लिए । वहां बच्चों का पार्क था। इस क्लब में रोज शाम को मैं और दीदी अक्सर पार्क में खेलने के बाद अंदर जाकर शरबत पिया करते थे और अगर पापा बिलियर्ड खेल रहे होते थे तो वहां जाकर चिप्स खाने को भी मिल जाते थे। 

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