पानी रे पानी
इसीलिये अधिकतर गांव और शहर नदी के किनारे होते हैं। आसानी से पानी मिल जाता है।
पहले शहरों में पाइप से वाटर सप्लाई नहीं होती थी आजकल की तरह। ऐसे में शहर में नदी से दूर जगहों पर रह रहे लोगों को पुराने जमाने में हैंडपंप लगाने पड़तै थे। हमारे मकान में भी एक हैंडपंप लगा था। लोहे का पंप होता था इसके हैंडल को ऊपर दीजिए करने से उसके मुंह से पानी निकलता था मोटी धार में। उसी के पानी को बाल्टी में भर के बाथरूम में रखा जाता नहाने के लिए । उसी से कपड़े धोने होते थे। उसी पानी से खाना बनाया जाता था।
कुछ मकानो में कुंए हुआ करते थे । ज्यादातर कुए कच्चे होते थे पर कुछ बहुत सुंदर पक्के होते थे । सीमेंट की छोटी सी दीवार वाले। बाल्टी को रस्सी से बांधकर डुबोकर पानी खींच कर निकाला जाता था। हमारे यहां भी एक बार कुछ सब्जियां पौधे की खेती करने के बारे में सोचा गया तो एक कुआं खोदा गया और एक दो साल तक उसका इस्तेमाल भी किया गया । उसके बाद जब जमीन के खराब होने की वजह से कोई ज्यादा सब्जियां नहीं हुई तो कुंए को पाट दिया गया।
पहाड़ों में बड़ी-बड़ी चौड़ी नदी तो होती ही नहीं है । वहां पर हैंडपंप भी लगाना संभव नहीं है। कुआं होने का तो सवाल ही नहीं उठता। लेकिन प्रकृति का कमाल देखिए वहां पर झरने हुआ करते हैं जिससे निरंतर पानी गिरता रहता है और कुछ जगह चट्टान के बीच से पानी की धार निरंतर गिरती रहती है जिसे पहाड़ की भाषा में नौला कहते हैं। उसके चारों तरफ एक कमरा और सीमेंट का फर्श बना दिया जाता है ताकि लोग वहां जाकर आराम से बाल्टी में पानी भरकर घर ले जा सके ।
अल्मोड़ा शहर में भी ऐसे ही कई नौले है जिसमें एक नौले का नाम सुनेरी नौला है जिसका पानी बहुत मीठा होता है।
पहाड़ों में पेड़ों की कटाई होने की वजह से झरने और नौले के पानी सूखते जा रहे हैं जिससे कि पहाड़ में पानी की समस्या पैदा हो रही है। लोगों को डर लगता है की अल्मोड़ा के नौले भी कुछ दिन बाद सूख जाएंगे।
पुराने जमाने में बहुत सी जगह जहां पानी का भीषण संकट होता था वहां पर उस जमाने के राजा महाराजाओं ने जमीन की सतह से बहुत नीचे जाकर पानी ढूंढ निकाला और वहां पर नीचे जाने के लिए बढ़िया सीढ़िया बना दी और उसके ऊपर एक भव्य इमारत बना दी। ऐसे स्थानों को बावली कहते हैं और बुंदेलखंड और गुजरात में कुछ बहुत प्रसिद्ध बावली है। इस तरह के चमत्कारी तरीके से पानी की खोज निकालने वाले राजा महाराजा तो अब हैं नहीं कहीं।
विज्ञान की प्रगति के साथ बिजली के पंप द्वारा कई दशकों से पानी निकाला जा रहा है । इसका इतना ज्यादा उपयोग हो रहा है कि वह दुरुपयोग की तरह सामने आ रहा है क्योंकि जमीन के नीचे पानी का स्तर गिरता चला जा रहा है जिसकी वजह से पेड़ों की जड़ों को जो पानी मिलता था वह गायब होता जा रहा है। पेड़ सूखता जा रहे हैं ताल सूखते जा रहे हैं और कई जगह अकाल की स्थिति पैदा हो गई है। कई बार जमीन के नीचे से बहुत ही ज्यादा पानी निकालने की वजह से वह स्थान खाली हो जाता है और धीरे-धीरे जमीन नीचे को धसते रखती है जिसे सब्सिडेंस कहते हैं । अमेरिका में कई जगह जमीन 10 या 20 फीट नीचे तक चली गई है।
फरीदाबाद के पास का सुंदर प्राकृतिक ताल था जिसे बदखल ताल कहते थे। वह भी सूख चुका है क्योंकि फरीदाबाद अब एक विशाल शहर बन गया है और वहां नदी नहीं होने के कारण बहुत ही अधिक मात्रा में कई दशक से जमीन के नीचे से पानी निकाला जा रहा है।
पंजाब में भी गेहूं की जगह चावल की खेती करने के लिए किसानों ने अत्यधिक मात्रा में पानी निकलना शुरू किया जमीन के नीचे से जिसकी वजह से वहां पर पानी की सतह काफी नीचे चली गई है।
ऐसे ही 2024 में बेंगलुरु शहर जो कभी एक बहुत सुंदर और बहुत ही अच्छे मौसम वाला शहर हुआ करता था आजकल पानी की भयंकर समस्या से जूझ रहा है। पुराने जमाने में शहर में तालाब हुआ करते थे, खुले मैदान हुआ करते थे सड़के भी कच्ची हुआ करती थी फुटपाथ कच्चे होते थे । तब जब बरसात होती थी और सब जगह पानी भर जाता था तो धीरे-धीरे जमीन पानी को सोख लेती थी और पानी नीचे जाकर जमा हो जाता था। पर आधुनिक करण के चक्कर में मनुष्य ने अपनी बेवकूफी की वजह से पूरे शहर को कंक्रीट और कोलतार से ढक दिया और तालाब गायब करके उनकी जगह मल्टी स्टोरी बिल्डिंग खड़ी कर दीं। इस वजह से शहर में जो पानी बरसता है वह जमीन पर नहीं जाता है।
पानी के दुरुपयोग की वजह से आगे भविष्य निराशाजनक दिखाई देता है।
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