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Monday 2 September 2024

हमारे बचपन के जमाने में (3)

वह जमाना आजकल से बहुत फर्क था।

उसे जमाने में जिंदगी की रफ्तार बहुत धीमी थी और आजकल की तरह जिंदगी में आपाधापी नहीं थी। शहर छोटे होते थे । शहर में लोगों के मकान बड़े होते थे । शहर का काफी हिस्सा खुले मैदान का होता था। ‌ सड़कें आजकल की तरह मोटर गाड़ियों से भरी नहीं होती थीं। आसमान गहरा नीला दिखता था रात में तारे और आकाशगंगा बहुत चमकीले नजर आते थे। घर के आंगन में गौरैया चिड़िया का झुंड हमेशा रहता था। अक्सर नीलकंठ तोता और कठफोड़वा टाइप की चिड़िया भी दिखाई दे जाती थी। तरह-तरह की तितलियां फूलों के उपाय दिखाई देती थी।

उसे जमाने में चीजों की क्वालिटी बहुत बेहतरीन होती थी। मैंने एक बिजली का टेबल फैन 1955 में खरीदा था और वह कभी खराब ही नहीं हुआ अभी तक। इधर  दो टेबल फैन खरीदे पिछले पांच  साल में। करीब पूरे के पूरे प्लास्टिक के बने हुए हैं और उनमें से एक खराब हो चुका है। दूसरे का भगवान ही मालिक है।

उसे जमाने में आजकल की तरह ना तो मोबाइल फोन होते थे ना टेलिविजन होते थे।
इधर कुछ सालों से देख रहा हूं की क्या बच्चे और क्या बुड्ढे सभी दिनभर अपने खाली समय में मोबाइल फोन में चिपके रहते हैं। उस जमाने में लोगों के पास समय काफी रहता था आपस में गपशप करने का। बच्चे  बाहर खुली हवा में खेल खेला करते थे जो आजकल के बच्चों को पता भी नहीं है।  7 टाइल्स, आइ स्पाइस, चोर सिपाही , गुल्ली डंडा और भी कई तरह के खेल होते थे। 

वह जमाना दर्जियों का जमाना था क्योंकि रेडीमेड कपड़े होते नहीं थे तब। कपड़े सब कॉटन के होते थे क्योंकि तब पॉलिएस्टर चला ही नहीं था। और कपड़ों को धोने के लिए धोबी होता था घर पर बहुत कम कपड़े धुलते थे ।उसे जमाने में डिटर्जेंट पाउडर नहीं था। वाशिंग मशीन का तो सवाल ही नहीं होता।

 हर शहर में कपड़े धोने क्या काम धोबी करता था। धोबी घर पर आता था गधे के ऊपर कपड़ों के गट्ठर लाद के। हमारे पिछली बार केकपड़े धोकर और इस्त्री करके हमें दे जाता था । माताजी कॉपी में चेक करके कपड़े ले लेती थी और फिर गंदे कपड़े उसे देती थी। कपड़े ले जाकर वह नदी के किनारे पटक पटक कर धोता था जिससे पैंट और कमीज के बटन अक्सर टूट जाते थे। 

उसे जमाने में पॉलिएस्टर के कपड़े तो होते ही नहीं थे। कपड़े का कॉटन के होते थे और धोबी के हाथ मार खाते थे इसलिए कमीज की कॉलर पहनते पहनते खराब हो जाती थी तो दर्जी की दुकान में जाकर उसको पलट कर सिल दिया जाता था। उसे जमाने में दर्जी की दुकान बहुत ज्यादा थी हर सड़क पर दर्जी की  दुकान दिखाई दे जाती थी। सवा रुपए में कमीज सिलता था सवा तीन रुपया में में पेंट सिलता था 
और 50 पैसे में पैजामा।

  उसे जमाने में प्लास्टिक के पैकेट में देसी शराब नहीं मिलती थी। गरीब लोग ताड़ी पीते थे जो कि ताड़ के पेड़ से निकलती थी। हमारे घर के पीछे भी एक ताड़ी का पेड़ था जिसमें रोज सुबह सूर्योदय से पहले एक आदमी खसकता खसकता ऊपर जाता था और ताड़ी से भरी हुई मटकी को नीचे ले आता था।

यही ताड़ी गरीबों की शराब थी। दिनभर नदी के किनारे कपड़ों को पीट-पीट के धोने के बाद थका हुआ धोबी घर आता था। खूब ताड़ी पीता था और फिर अपने बीवी बच्चों की जबरदस्त पिटाई करता था। यह रोज का किस्सा था।


आजकल किसी के घर में ताश की गड्डी नहीं दिखाई देती। उस जमाने में ताश खेलने का बड़ा रिवाज था। हर घर में ताश की गा्ड्डी होती थी और लोग खाली समय में ताश खेला करते थे। ताश के बहुत से खेल होते थे जैसे रमी, कोट पीस, तीन दो पांच, गुलाम चोर इत्यादि

और उस जमाने के बच्चे खाली समय में अक्सर पुराने ताश की गड्डियां से मकान बनाया करते थे। टाइम पास करने के लिए बच्चा के पास बहुत से आइडिया होते थे। दियासिलाई के दो डिब्बे और एक लंबा 30 40 फीट लंबा धागे से  बच्चे टेलीफोन बनाया करते थे और एक दूसरे से बहुत दूर खड़े होकर बात करते थे जो एक दूसरे को साफ सुनाई देती थी।टाइम पास करने के लिए मैग्नीफाइंग लेंस से घास के ढेर में आग लगाना, जूते के खाली डिब्बे में सुराग करके और खुले हिस्से को तेल लगाए हुए ट्रांसलूसेंट कागज से बंद करके पिनहोल कैमरा बनाते थे। और हां पुराने अखबार के कागज की नाव  एरोप्लेन  पिस्टल वगैरह  बनते थे और बरसात में अपनी बनाई  हुई नाव को पानी में तराते थे। 

उसे जमाने में कैलेडिस्कोप बहुत बिकते थे।  आंख से अंदर झांक कर उसको  घुमा घुमा कर कांच की चूड़ियों के टुकड़ों के लाजवाब डिजाइन देखने को मिलते थे। 

उस जमाने में आजकल की तरह मैगी पिज्जा चाऊमीन वगैरा लोकप्रिय नहीं थे। मठरी शकरपाले, अच्छा तले हुए चूड़ा मूंगफली, भुने हुए चने और मुरमुरे सभी घरों में रहते थे। सर पर टोकरी रख के घूमने वाले फेरी वाले गन्ने के गोल-गोल टुकड़े करके उसमें गुलाब जल छिड़क कर घर घर जाकर बेचते थे। यूपी और बिहार में कमल के कच्चे कमलगट्टे खूब बिकते थे। इन्ही कमल गट्टों को आग में भून कर तालमखाना बनाया जाता है।

और भी बहुत कुछ फर्क था उसे बाद में उसकी चर्चा अगले एपिसोड में करेंगे। 

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