हमारे बचपन के जमाने में (2)
आजकल सभी देशों की सरकार हाथ धोकर तंबाकू के पीछे पड़ी हुई है क्योंकि वैज्ञानिक कहते हैं कि इससे कैंसर होता है। तो तंबाकू के ऊपर इतना ज्यादा टैक्स है की आम आदमी की तंबाकू का इस्तेमाल करने में कमर टूट जाती है। आजकल शायद ही कोई सड़क पर सिगरेट पीते हुए जाता दिखाई देगा आपको।
हमारे बचपन में यानि1950 के आसपास सिगरेट पीना शान की बात समझा जाता था।
कुछ लड़के तो हाई स्कूल आने तक सिगरेट पीने लगते थे।
उसे जमाने में सिगरेट पर टैक्स कम लगता था और काफी लोग सिगरेट पीते थे। सिनेमा हॉल में भी सिगरेट पीना मना नहीं था। मुझे याद है की बचपन में जब हम लोग सिनेमा देखने जाते थे तो हाल में सिगरेट का धुआं भरा रहता था।
उस जमाने में जो सिगरेट के ब्रैंड थी़ उनमें प्रमुख थे कैंची , कैप्सटन, गोल्ड फ्लैक पासिंग शो और चारमीनार। चारमीनार सबसे सस्ती थी पर उसका स्वाद कुछ बेढंगा था तो कम ही लोग पीते थे, उत्तर भारत में।
बाद में 1960 के आसपास पनामा सिगरेट आई जो काफी सस्ती थी और 25 पैसे की 20 सिगरेट मिलती थी एक पैकेट में। इस सिगरेट की खासियत यह थी कि अच्छे खासे पैसे वाले लोग की इसे पसंद करते थे। हां एक बात बताना तो भूल ही गया। 1950 के आसपास सिगरेट पैकेट आम तौर पर तो आती थी 10 सिगरेट के पैकेट में । 50 सिगरेट का एक टिन आता था।
50 के दशक के दशक से पहले हुक्का भी बहुत लोकप्रिय था। तरह-तरह के हुक्के आते थे रंग बिरंगे। नीचे पानी रखने की एक फर्शी होती थी। उसमें से ऊपर एक डंडी जाती थी कोयले वाले कुप्पी टाइप के अटैचमेंट की तरफ। उसमें कोयला सुलगता था एक खास तरह के तंबाकू के साथ। नीचे पानी की फर्शी होती थी जिससे ऊपर को एक डंडी जाती थी जिसको मुंह में लेकर सांस खींचने पर पानी में छनकर तंबाकू का धुआं मुंह में आता था।
जब मैं बहुत छोटा था तो हमारे घर में भी एक हुक्का हुआ करता था और उस में से एक दो बार मैंने की कश खींचने की कोशिश की पर बुरा हाल हो गया खांसते-खांसते।
दो और तरीके से तंबाकू पिया जाता था उन लोगों द्वारा जिनके पास हुक्का खरीदने के लिए साधन नहीं थे। एक में नारियल का इस्तेमाल होता था । बड़े साइज के सूखे नारियल के एक साइड है कश खींचने के लिए टोटी होती थी और ऊपर एक चिलम होती थी अंगारों के ऊपर तंबाकू रखने के लिए । जो हुक्का नहीं खरीद सकते थे वह इसी से तंबाकू पीते थे। बिल्कुल ही गरीब आदमी सिर्फ एक छोटी सी मिट्टी की चिलम से तम्बाखू पीता था।
उसे जमाने में हर संपन्न परिवार वालों के घर में एक पान का डिब्बा होता था जिसमें कत्था चूना व सुपारी रक्खी होती थी अलग-अलग छोटे-छोटे पीतल के कटोरियों में। और पान के करारे पत्ते होते थे गीले कपड़े में लपेटे हुए। साथ में इलायची सुपरहिट तंबाकू इत्यादि होते थे। ज्यादातर संपन्न लोग घर में ही पानी बनाते थे। उत्तर भारत में सबसे ज्यादा पुराना देसी देसावरी पान बिकता था। कुछ लोग सफेद मगही पान खाना पसंद करते थे।
किसी भी व्यस्त सड़क पर चले जाइए तो उन दिनों थोड़ी-थोड़ी दूर पर छोटी-छोटी पान की गुमटियां दिखाई देती थी इसके अंदर बैठा हुआ पनवाड़ी हर समय व्यस्त रहता था पान लगाने में या सिगरेट देने में।
यह तो थी उस जमाने की तंबाकू के शौक की कहानी। बाकी अगले एपिसोड में।
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