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Sunday 15 September 2024

हमारे बचपन के जमाने में (4)

हमारे बचपन के जमाने में (4)

समय बुरी तरह बदल गया है आजकल के  वरिष्ठ लोग जो 75 साल पार कर चुके हैं उन्होंने अपने बचपन में आजकल से बिल्कुल ही फर्क एक जमाना देखा था जिसकी आजकल के युवा लोग कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। 

अब देखिए आजकल क्या होता है। आप सुबह उठते हैं और घर के अंदर ही बने हुए बाथरूम में जाते हैं, नित्य कर्म करते हैं उसके बाद चेन खींच देते हैं तो टॉयलेट फिर साफ सुथरा हो जाता है। 

तब ऐसा नहीं होता था। तब आजकल की तरह फ्लश सिस्टम नहीं था। मकान के मुख्य हिस्से से हल्का हट के संडास होता था जहां नीचे एक बड़ा सा डिब्बा रखा रहता था और  ऊपर बैठकर उस डिब्बे मे़ घर के सभी परिवार जन बारी-बारी से  करते थे । फिर दोपहर के आसपास एक भैंसा गाड़ी आती थी काले रंग की जिसके पीछे एक बहुत बड़ा डिब्बा होता था । गाड़ी चलाने वाला आपके घर आता था पीछे जाता था और नीचे से डिब्बे को उठा कर ले जाता था और अपनी गाड़ी के बड़े डिब्बे में उलट देता था और फिर डिब्बे को साफ कर देता था और वापस रख देता था और फिर भैंसा गाड़ी चली जाती थी। 

नहाने के लिए बाथरूम तो होते थे पर बाथरूम में नल नही होते थे। हैंड पंप से पानी लाना पड़ता था बाथरूम में एक बाल्टी में । और बाल्टी प्लास्टिक के नहीं होती थी।  भारी भरकम टिन की होती थी। कभी-कभी नहाते नहाते पानी खत्म हो जाता है बाल्टी का और मुंह में साबुन लगा ही रह जाता था।

सबसे मुश्किल काम होता था सुबह उठकर अंगीठी जलाना चाय बनाने के लिए। आजकल तो आप किचन में जाते हैं स्टोव के ऊपर पानी रखते हैं और गैस  जला लेते हैं। तब ऐसा नहीं था। 

चाय आमतौर पर अंगीठी में बनती थी। अंगीठी में रात की राख भरी होती थी।  उसे निकाल कर फिर से कोयले लगाना होता। फिर उनके बीच में अखबार के टुकड़े रखना और कुछ छोटी-छोटी सूखी लकड़ी रखना फिर एक माचिस से कागज जलाना और फिर एक पाइप से फूंक फूंक के कोयले  को सुलगाते। जब तक अंगीठी जल न जाए तब तक धुएं को बर्दाश्त करना पड़ता था।  तब जाकर अंगीठी तैयार होती थी चाय बनाने के लिए।

उसे जमाने में कोई नंगे सिर बाहर नहीं निकलता था चाहे गरमी भी हो चाहे जाड़े हों। उस जमाने की पुरानी फोटो देखिये।  सब लोग सिर पर कुछ ना कुछ पहने हुए हैं, टोपी या हैट या पगड़ी। दफ्तर जाने वाले बाबू से लेकर बड़े अफसर तक सब लोग  हैट का उपयोग करते थे । उसे जमाने में सोला हैट पापुलर थी धूप में जाने के लिए । कोई भी फोटो देख लीजिए बच्चों के अलावा कोई नहीं दिखाई देगा नंगे सिर। और मैं बात सिर्फ भारत की भारत नहीं कर रहा हूं।  विदेशों की भी कोई  75 साल पुरानी फोटो देखिये तो आपको दिखाई देगा कि सब लोग सिर को ढक कर रखते थे।

दफ्तर में पुराने जमाने में हर समय टाइपराइटर की चतर-पटर की आवाज आती रहती थी।  तब फोटो स्टेट मशीन नहीं होती थी और अगर आपको किसी डॉक्यूमेंट की कॉपी बनानी हो तो उस कॉपी को टाइपराइटर में टाइप किया जाता था और फिर एक गजेटेड अधिकारी उसको प्रमाणित करता था अपने दस्तखत और मुहर लगा कर , तब जाकर वह किसी काम की होती थी। ज्यादा कॉपी बनाने के लिए कार्बन पेपर का इस्तेमाल होता था।

बैंक का काम भी अब पहले से बहुत फर्क हो गया है पहले पासबुक में हाथ से एंट्री की जाती थी जो बात साफ सुथरी नहीं होती थी और जिस पर सभी डिटेल नहीं लिखे रहते थे एंट्री करने के लिए भी समय ढूंढना पड़ता था जब बाबू कुछ फुर्सत में हो अगर पैसा लेने वालों की लाइन लगी हो उसे समय वह एंट्री नहीं कर सकता था आजकल पासबुक को मशीन में डालकर आप खुद ही एंट्री कर लेते हैं और ऐसी एंट्री जिसमें हर डिटेल बहुत साफ सुथरा प्रिंट हो जाता है। यही हाल कैशियर के काउंटर का भी था। आजकल तो आपका चेक देखकर कैशियर दराज में से नोटों की गाड़ी निकलता है और गिनने वाली मशीन में 5 सेकंड में गिनकर आपको दे देता है। पहले कैसे हाथ से गिनता था नोटों को और कब से कब दो बार गिनता था और उसमें काफी समय लग जाता था। 

उसे जमाने में एटीएम मशीन नहीं होती थी जहां जाकर आप आजकल अपने पैसे निकाल लेते हैं। उसे जमाने में ऑनलाइन पेमेंट भी नहीं होता था तो चेक से पैसे देने पड़ते थे। इसलिए हर आदमी बैंक जाता था और बैंक में बहुत भीड़ होती थी। आज कल बहुत ही कम लोग बैंक जाकर चेक काट कर पैसा निकालते हैं। 

उस जमाने में कार गिने चुने लोगों के पास ही होती थी । बाकी सभी लोग, दफ्तर के बड़े अधिकारी सहित , साइकिल में दफ्तर जाया करते थे। कोई भी पुरानी फोटो देखिये तो सड़क पर आपको बहुत सारी साइकिल है दिखाई देगी


उसे जमाने की बहुत सी चीज है अब गायब हो चुकी है । आप लोगों में से जो युवा पीढ़ी है उसने शायद हमाम जिश्ता, सिल बट्टा, मिट्टी के चूल्हे, कैंडलेस्टिक टेलीफोन, ग्रामोफोन, कभी नहीं देखे होंगे। आप में से बहुत से युवा लोगों ने अंतर्देशीय पत्रक नहीं देखा होगा इस्तेमाल करना तो दूर की बात है। दशहरा दिवाली होली नव वर्ष ग्रीटिंग कार्ड हुआ करते थे दुकानों में ढेर सारे और त्योहार पर लोग वहां जाकर ग्रीटिंग कार्ड खर्राटे थे उसका संदेश लिखते थे अपना नाम लिखते थे लिफाफे में डालकर बाहर पता लिखते थे और फिर पोस्ट ऑफिस जाकर या सड़क के लाल डिब्बे में लेटर बॉक्स में उसे छोड़ देते थे। आजकल तो व्हाट्सएप का जमाना है। 

आज से 50 साल बाद क्या होना है कहना मुश्किल है । परित तोता है पर इतना तो तय है क्या आपके हाथ में जो मोबाइल फोन है वह तब ग्रामोफोन की तरह गायब हो चुका होगा। 

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