गंज
गूगल सर्च कीजिए सिर्फ "गंज" लिखकर तो सामने सबसे ऊपर लखनऊ के हजरतगंज का गूगल मैप आ जाता है। सिर्फ नाम ही काफी है!
एक लंबे अरसे से लखनऊ का हजरतगंज काफी प्रसिद्ध रहा है पर समय के साथ गंज वह ना रहा जो पहले था। तब लखनऊ में कारें बहुत कम थी । गंज की सड़क पर शाम को पैदल चलने वालों का ही राज होता था। बीच में से एक्की दुक्की कार धीरे धीरे निकल जाती थी। अब तो लखनऊ में मच्छरों से ज्यादा कारें हो गई हैं। गंज तो अब भी है पर अब गंजिंग नहीं हो पाती है सही माने में। जी हां गंज अब बदल गया है।
दुकाने भी बदलती जा रही हैं। कहते हैं कि जहां पर गांधी आश्रम है आजकल, पहले वहाँ एक कॉफी हाउस हुआ करता था । यह भी सुना है की जीपीओ की शानदार इमारत कभी Ring Theatre के नाम से जानी जाती थी । यहां सिर्फ अंग्रेज लोगों का आना होता था। "Indians not allowed" का बोर्ड लगा होता था। तब जीपीओ वहां हुआ करता था जहां आजकल जनपथ मार्केट है । यह भी सुना है कि जहां पर मेफेयर सिनेमा बिल्डिन्ग है वहां पहले घास का मैदान था जहां शाम को लोग बैठकर करारी मूंगफली खाना करते थे। खैर यह तो बहुत पुरानी बात है।
हमारे जमाने में भी कई मशहूर दुकानें थी जो अब गायब हो गई हैं । जीपीओ के तरफ वाले कोने पर एक benbows नाम का रेस्टोरेंट हुआ करता था। छोटा सा था, कोने में । वहां की चाय बहुत बढ़िया होती थी। सरदार जी का रेस्त्रां था । दुबले पतले चुस्त सरदार जी। हमेशा सफेद कपड़ों, सफेद दाढ़ी, सफेद पगड़ी में । उनके यहां के coconut cookies बहुत ही स्वादिष्ट थे और धड़ल्ले से बिकते थे । अब वहां पर छंगामल की दुकान आ गई है कपड़ा वालों की।
हजरतगंज के दूसरे छोर पर हलवासिया के शुरू में पेट्रोल पंप के पास रॉयल कैफे हुआ करता था जो बाद में कपूर्स होटल बिल्डिंग में आ गया। लवर्स लेन तब बहुत लंबी हुआ करती थी । अब तो बिल्डिंग टूट जाने से कुछ नहीं रह गई है। पूरे लवर्स लेन में मलिक की दूकान के पॉपकॉर्न की खुशबू छाई रहती थी। तब पौपकोर्न नया नया चला था और शायद मलिक की दुकान में पौपकोर्न की पहली मशीन लगी थी।
जहां अब बर्मा बेकरी है वहां पर पहले पुराना यूनिवर्सल बुक डिपो होता था जो बाद में आपसी विवाद की वजह से बंद हो गया और वर्षों तक बंद पड़ा रहा। BN Rama chemist की शानदार दुकान भी पहले कई हिस्सों मै बँट गई और फिर बंद हो गई। वहां उसके बाद कपड़ों की एक बड़ी दुकान खुल गई।
1960s में लालबाग में मकबरा कोलोनी की तरफ की गली में एक बहुत छोटा सा रेस्त्रां हुआ करता था शर्मा चाट हाउस के नाम का। बहुत कम लोगों को पता होगा उसका आजकल । अब वहां कोई रेस्त्रां नहीं है। उस छोटे से शर्मा रेस्त्रां में बैठने की जगह मिलना शाम को मुश्किल होता था। चार आने का एक प्लेट दही बड़ा। चार आने के एक प्लेट दही चटनी के बताशे और चार आने की एक प्लेट आलू की टिक्की। बहुत ही स्वादिष्ट चाट थी उसकी । उसी मकबरा कॉलोनी में हलवासिया के तरफ की एक गली में मिस्टर सीएल पेपर का मकान हुआ करता था जहां पर पेपर साहब सुबह बैठकर मरीजों के नाखूनों का इंस्पेक्शन करके लोगों की बीमारियां बताते थे और जड़ी बूटियां देते थे। चमत्कारी "डाक्टर" थे पेप्पर साहब।
कॉफी हाउस जो आजकल नरही की तरफ है वह भी अब वैसा नहीं है जैसा पहले था । पहले काफी खुला हुआ था । अंदर हॉल में बैठने की हरे रंग की बेंत की आराम कुर्सियां होती थी। और सफेद ड्रेस, हरी बेल्ट वाले वेटर्स होते थे जिनमें सबसे ज्यादा popular waiter था करीम। वहां चार आने का एक crisp दोसा और चार आने की एक कप बढ़िया गर्म कॉफी मिलती थी। और मजे की बात यह है कि आप एक कप कॉफी का ऑर्डर देकर दिनभर पंखे के नीचे बैठे रह सकते थे। कोई आपसे कुछ नहीं कहता था कि आप क्यों बैठे हैं।
उस जमाने में रेडीमेड कपड़े ज्यादा popular नहीं थे और दर्जियों का बोलबाला था । हजरतगंज में सबसे मशहूर टेलर्स रामलाल हुआ करते थे जो benbows के सामने वाली बिल्डिन्ग में था। हलवासिया के मकबरा फाटक के दाहिने तरफ भी एक बढ़िया टेलर की दुकान थी।
कई साल तक हजरतगंज में metro rail का काम चलता रहा और सड़क की दुर्दशा हो गई थी। अब फिर गंज की सड़को में रौनक आ रही है पर सिर्फ traffic की - gunjing की नहीं।
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