कुछ विचार बॉलीवुड के
बॉलीवुड का नाम आता है तो बड़े-बड़े कलाकार दिमाग पर आ जाते हैं - देवानंद , दिलीप कुमार, राज कपूर , राजेंद्र कुमार , शम्मी कपूर , राजेश खन्ना , अमिताभ बच्चन , अनिल कपूर वगैरा-वगैरा। बॉक्स ऑफिस पर ज्यादातर फिल्में इन्हीं के दम पर चलती थीं। डायरेक्टर कोई भी हो कहानी कैसी ही हो पर अगर यह फिल्में होते थे तो अपने आप ही बॉक्स ऑफिस में फिल्म को सफलता मिल जाती थी।
पर फिल्म की कहानी में सिर्फ हीरो हीरोइन नहीं होते । एक पूरी फिल्म में हीरो के अलावा भी बहुत कुछ होता है । कई छोटे रोल होते हैं जिनके इर्द-गिर्द कहानी बुनी जाती है और जिनकी अच्छी एक्टिंग पूरी पिक्चर पर प्रभाव डालती है। बहुत से सहायक अभिनेता अभिनेत्री होते हैं और पूरी स्टोरी काफी हद तक उनके कंट्रीब्यूशन पर भी निर्भर करती है।
बॉलीवुड में कुछ ऐसे निर्देशक हैं जो एक छोटे कलाकार को या फिर एक नए कलाकार को बहुत ही अच्छे रूप में पेश कर सकने की क्षमता रखते हैं। यह कहानी को भी बहुत अच्छे तरीके से स्क्रीन में पेश करते हैं और कलाकार चाहे कितना ही छोटा हो उसके अभिनय को स्वाभाविक और प्रभावकारी बना देते थे।
मिसाल के तौर पर ले लीजिए बासु चटर्जी को जिन्होंने छोटे-छोटे कलाकारों से बहुत बढ़िया काम करवाया। अमोल पालेकर को ही ले लीजिए । एक अनजाने कलाकार थे और फिल्म छोटी सी बात में निर्देशक ने उनसे इस खूबी से काम लिया कि यह यादगार फिल्म बन गई । हिंदी की एक और यादगार फिल्म थी गोलमाल। यह भी बासु चटर्जी द्वारा ही निर्देशित थी और यह बीसवीं सदी की सबसे बढ़िया फिल्मों में से एक है। अच्छे निर्देशक छोटे से छोटे कलाकार से भी बहुत अच्छी एक्टिंग करा देता है।
अब कुछ छोटे कलाकारों की बात भी हो जाए जिन्होंने वैसे तो कोई विशेष नाम नहीं कमाया है पर जिनकी अच्छी एक्टिंग के कारण फिल्मे बहुत सा स्वाभाविक बन जाती हैं।
इनमें से एक हैं युनुस परवेज़ । फिल्म अंगूर में एक सुनार की दुकान में काम करने वाले एक कर्मचारी का किरदार इन्होंने बहुत सुंदर तरीके से निभाया है । या फिर फिल्म 'किसी से ना कहना' मे होटल के मैनेजर का किरदार बखूबी निभाया है। एक और कलाकार हैं सीएस दुबे जिन्होंने फिल्म छोटी सी बात में एक मोटर गैराज के मालिक के रूप में और फिल्म अंगूर में एक सुनार की दुकान के मालिक के रूप में अच्छे स्वाभाविक रोल किए हैं। एक और कलाकार है जावेद खान हैं जिन्होंने फिल्म नरम-गरम में शत्रुघ्न सिन्हा के गैराज में काम करने वाले कर्मचारी और फिल्म रंग बिरंगी में ब्लैक टिकट बेचने वाले का धंधा करने वाले का रोल बहुत अच्छी तरह निभाया है।
ऐसे ही एक और कलाकार है अन्नू कपूर। पहली फिल्म एक रूका हुआ फैसला मैं उन्होंने एक 70 साल के बुड्ढे का रोल किया था जिसे उन्होंने बहुत खूबी के साथ निभाया। उसके बाद फिर मुस्कुराहट है उन्होंने बहुत अच्छा काम किया । फिल्म मिस्टर इंडिया में एक अखबार के दफ्तर में एडिटर के रूप में बहुत ही अच्छा काम किया और 21वीं सदी में फिल्म जौली एलएलबी 2 में और विक्की डोनर में तो कमाल ही कर दिया।
सुपरस्टार के पास अदाएं होती हैं, लटके झटके होते हैं डायलॉग बोलने के अजीबोगरीब तरीके होता हैं। इसकी वजह से अपने समय में तो वह बहुत बड़े हो जाते हैं पर 20 साल बाद जब हम उनको दोबारा देखते हैं तो कुछ मजा नहीं आता। और सच पूछा जाए तो देवानंद जैसे कलाकारों के लटके झटके देखकर अब तो हंसी आती है। राजकुमार जैसे कलाकारों के विचित्र अदा से डायलॉग बोलना बहुत बेतुका लगता है।
पिछले एक दशक से अच्छे कलाकार सामने नहीं आ रहे हैं। बॉलीवुड का जो नशा था पब्लिक में वह धीरे-धीरे पहले टेलीविजन की वजह से और फिर इंटरनेट की और यूट्यूब की वजह से धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और ऐसा लगता है कि आने वाले कुछ दशकों में बॉलीवुड का प्रभाव काफी हद तक समाप्त हो जाएगा।
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