पहली बार
लोगों को किसी चीज का अनुभव जब पहली बार होता है तो उसे वह बात हमेशा याद रहती है। ऐसे ही मेरे साथ भी कई अनुभव हुए।
खलखल जी हमारे बचपन के दिनों के बहुत सज्जन पुरुष थे। बहुत चरित्रवान थे। करीब 22 साल की उम्र तक पहाड़ो में ही बिताया । ज्यादा समय अल्मोड़ा में बिताया था वैसे गांव के रहने वाले थे।
तो जब मेरे पिताजी ने उनके लिए नौकरी ढूंढ निकाली गोरखपुर में तो वह खंतौली से अल्मोड़ा होते हुए काठगोदाम के स्टेशन पर आ पहुंचे ट्रेन में बैठ कर गोरखपुर जाने के लिए।
खलखल जी ने पहले कभी ट्रेन नहीं देखी थी क्योंकि पहाड़ में ट्रेन नहीं होती है तो अपने लोहे के बक्से और होल्डॉल के ऊपर बैठे हुए जब प्लेटफार्म पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे तो अचानक एक शंटिंग करता हुआ विशालकाय कैनेडियन इंजन प्लेटफार्म से सटी हुई लाइन पर भक भक की आवाज करता हुआ उनके नजदीक से निकल गया तो उनके होश उड़ गए। उनकी समझ में नहीं आया यह क्या हो गया।
पहली बार का अनुभव ही कुछ अलग होता है । साइकिल चलाना सीख रहा था मैं काफी दिनों से । सीट के ऊपर बैठता पैडल मारता और जरा सा आगे जाकर गिर पड़ता। पर जब पहली बार पैडल के बाद गिरा नहीं और तैरता हुआ काफी दूर तक निकल गया तो वह कैसा सुखद अनुभव था मैं बता नहीं सकता। ऐसा ही अनुभव स्केटिंग सीखते वक्त भी हुआ था जब काफी चोट लगने के बाद फिर अचानक तैरते हुए आगे को निकल गए बिना किसी परेशानी के।
बचपन में पूर्वी उत्तर प्रदेश में था। वहां का खानपान पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पंजाब से काफी फर्क था। तो जब बचपन में 1 दिन मैं और मेरी बड़ी बहन हमारी मौसी की बीए में पढ़ने वाली लड़की के साथ नैनीताल में घूम रहे थे तो अचानक दिमाग चाहिए आया कि कभी तंदूरी नहीं खाई है तो क्यों नहीं इसका भी स्वाद चखा जाए ।
तो एक रेस्टोरेंट में पहुंच गए । वेटर आया और उससे पूछा खाने के लिए क्या लाना है। हमने तीन तंदूरी का ऑर्डर पिज़्ज़ा दे दिया। उसने पूछा सब्जी कौन सी आएगी तो हमारी कजिन ने कहा कोई सब्जी नहीं चाहिए। हमारे दिमाग मैं यह साल था ख्याल था तंदूरी भरवा पराठे टाइप की कोई स्वादिष्ट की होती है।
थोड़ी देर बाद बेटर तीन सूखी कार्ड बोर्ड टाइप रोटी ले आया और हमारे के सामने रख दी। पहली बार की तंदूरी रोटी भी हमें हमेशा याद रहेगी।
बचपन की प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई हमने घर पर ही थी और सीजर छठी क्लास मैं एडमिशन हो गया। पहले दिन क्लास में बैठा था और किसी लड़के ने मजाक किया और देखो करो मैं खुद करने लगा हंसने लगा। मेरे ठीक है जय पीछे खूंखार टीचर खड़ा था और उसने आव देखा न ताव ।अपनी छड़ी से मेरी अच्छी मरम्मत कर दी। पहली बार का अनुभव अभी तक याद है।
छठी क्लास का और किस्सा याद आ रहा है
छमाही का इम्तिहान था और उसके पहले मैंने कभी कोई इंतहान नहीं दिया था और मुझे पता नहीं था कि इम्तहान मैं कैसे लिखा जाता है। 8:00 बजे सुबह इम्तहान देने गया और 8:45 बजे घर वापस आ गया ज्यादा टाइम आने जाने में ही लगा। पिताजी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा इम्तहान छोड़कर क्यों आ गए। पर मैंने तो पांचों प्रश्नों का उत्तर दे दिया था।
हुआ यह कि मुझे पता नहीं था कि उत्तर विस्तार में देना है । तो हर प्रश्न का उत्तर हां या ना में दे दिया। जैसे एक प्रश्न था कि क्या मोहम्मद तुगलक पागल था तो मैंने उत्तर दिया हां पागल था। 5 मिनट पर 5 प्रश्नों का उत्तर देकर मैं घर वापस आया गया।
पर एक ऐसा भी अनुभव है जिसमें पहली बार में मुझे कुछ अजीबोगरीब नहीं लगा और वह है जब मैं पहली बार हवाई जहाज में बैठा। तब तक बहुत से सिनेमा में हवाई जहाज की यात्रा कर चुका था यानि देख चुका था और कुछ नई बात नहीं लगी।
आपके घर में शायद कोई छोटा बच्चा पहली बार चलने की कोशिश कर रहा होगा। उसके चेहरे को गौर से देखिएगा।
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