Total Pageviews

Saturday 20 May 2023

लछमय्या जी

लछमैया जी

नौकरी के शुरुआत में ही नागपुर मैं पोस्टिंग हो गई हालांकि कुछ ही समय बाद फरीदाबाद का ट्रांसफर हो गया था।

नागपुर शहर में मैं अजनबी था क्योंकि उत्तर प्रदेश का रहने वाला था। दफ्तर के बाहर कोई पहचान नहीं थी । अनजाना शहर। दफ्तर में भी फरक स्वभाव के लोग थे और उनके  साथ मित्रता करना मुश्किल था।

 ऐसे में मुझसे कोई 20 साल बड़े एक सज्जन मिल गए अपने ही दफ्तर में। मझला कद, स्वस्थ सरल स्वभाव, माथे में आगे से थोड़ा गंजापन, पान के शौकीन आंध्र प्रदेश के थे पर हिंदी अच्छी बोलते थे और हमारे ही दफ्तर के ऑफिसर थे।  नाम लछमय्या जी था । सरल स्वभाव के थे। अकेले थे परिवार नहीं था । राजयोग और हठयोग के बहुत अच्छे ज्ञाता थे। उनके पास अध्यात्म की पुस्तकों का ढेर था । पान खाना खाते थे 90 नंबर के तंबाकू के साथ और मस्त रहते थे। उनके साथ नागपुर मैं दोस्ती शुरू हुई और एक दूसरे के साथ अच्छा तालमेल बैठ गया। 

फिर हम दोनों का ट्रांसफर एक ही साथ फरीदाबाद में एक ही दफ्तर में हो गया तो दोस्ती बनी रही। फरीदाबाद से हम लोग सरकारी कॉलोनी के सीपीडब्ल्यूडी एफ्लैट्स में नजदीकी रहते थे ।इकट्ठे अक्सर दिल्ली जाते रहते थे छुट्टी  के दिनों में।

एक बड़ा रोचक सा किस्सा है लछमय्या जी के साथ का। फरीदाबाद से ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे संडे के दिन समय बिताने के लिए। कुछ ऐसा प्लान था कि पहले बंगाली मार्केट पर जाकर कुछ नाश्ता कर लेंगे और फिर कोई से सिनेमा देखेंगे । रास्ते में मेट्रो ब्रिज से पहले ही बंगाली मार्केट के पीछे का हिस्सा पड़ता था पर वहां कोई ट्रेन का स्टॉप नहीं था । प्लान था कि मेट्रो ब्रिज स्टेशन पर उतर जाएंगे ,वहां से पैदल चलकर बंगाली मार्केट आयेंगे और वहां पर  स्वादिष्ट मिठाई और नमकीन का सेवन करेंगे।

तो उस समय जब हम बंगाली मार्केट के पीछे के हिस्से की तरफ पहुंच रहे थे हम लोगों की अध्यात्म पर बातें हो रही थी और ट्रेन के यात्रीगण बहुत गौर से हमारी बात सुन रहे थे । तो बातों ही बातों में लछमय्या जी बोले कि अध्यात्म में  वह शक्ति है कि वह चलती ट्रेन को भी रोक सकता है। 

मैं उस समय कुछ मजाक के मूड में था तो मैंने भी मजाक मैं कहा कि आप कहे तो मैं बंगाली मार्केट के ठीक पीछे ट्रेन को रुकवा सकता हो अध्यात्म से।  हमें बंगाली मार्केट में जाना ही है।

 लछमय्या जी कहने लगे नहीं नहीं ऐसा मत करना। स्पिरिचुअल पावर का इस तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। पर मैं तो मजाक के मूड में था तो मैंने कहा  जी अब तो मैं ट्रेन रुका ही रहा ह।

बात ऐसी थी कि बंगाली मार्केट के ठीक पीछे एक आउटर सिग्नल था जहां पर ज्यादातर ट्रेने आकर रुक जाया करती थीं और मुझे यह बात अच्छी तरह पता थी।

 तो सचमुच आउटर सिग्नल के पास गाड़ी आकर रुक गई। लछमय्या जी  कहने लगे यह क्या काम कर दिया तुमने।

 जब हम ट्रेन से नीचे उतर रहे थे तो ट्रेन के उस डिब्बे में बैठे हुए बाकी लोग बहुत श्रद्धा और आश्चर्य से हमारी तरफ देख रहे थे कि हमारे बीच एक बहुत बड़े गुरु बैठे हुए थे।

लक्षभैया जी जब रिटायर हुए तो वापस आंध्रप्रदेश चले गए और अपने साथ सिर्फ कई बड़े बड़े टीन के बक्से ले गए जो आध्यात्मिक की  किताबों से भरे थे।

ऐसे व्यक्तित्व का पुरुष फिर दोबारा मेरी जिंदगी में कभी नहीं आया।

No comments: