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Saturday, 13 September 2025

मनुष्य के अस्तित्व पर संकट

21वीं सदी के आते-आते बहुत कुछ ऐसा होने लगा है जिससे लगता है की विश्व का भविष्य खतरे में है। 

प्राचीन काल मैं उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के मध्य में, जहां आजकल ग्वाटेमाला और मेक्सिको इत्यादि है , एक समय में माया नाम की सभ्यता हुआ करती थी जिसे यूरोप के स्पेन के  आक्रमण  ने नष्ट कर दिया था।

 माया एक बहुत ही विकसित पुरानी सभ्यता थी जो 2000 ईसवी पूर्व के समय से ही चली आ रही थी।

स्पेन के आक्रमण के बाद माया सभ्यता लुप्त हो गई। 

इस माया सभ्यता ने यह बहुत सदियों पहले ही भविष्यवाणी की थी कि सन 2012 में पृथ्वी की मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा । इस भविष्यवाणी से 2021 की सदी के प्रारंभ में  इस बात की घबराहट होने लगी कि कहीं यह बात सच तो नहीं हो जाएगी।

जब वर्ष 2012 आया और आकर चला गया तो लोगो ने चैन की सांस की ।

पर अब ऐसा लगने लगा है कि जिस तरह से पूरे विश्व में हालात बदल रहे हैं उसे देखते हुए मनुष्य का भविष्य निश्चित रूप से संकट में है। क्योंकि मनुष्य की वर्तमान सभ्यता पर 21वीं सदी में कई ओर से हमला हो रहा है।

पहला हमला है क्लाइमेट चेंज से होने वाली समस्याओं का। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में विशाल बर्फ की चट्टानें पिघल रही हैं और समुद्र का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे समुद्र तट पर स्थापित कई बड़े शहरों के समुद्र में डूबने का समय नजदीक आता जा रहा है। मिसाल के तौर पर इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता शहर का एक हिस्सा समुद्र में चला गया है और बाकी शहर भी कुछ ही वर्षों में समुद्र के अंदर चला जाएगा।

पढ़िए इस विषय में विकिपीडिया क्या कहता है :

"यह सच है कि इंडोनेशिया का जकार्ता शहर समुद्र में डूब रहा है क्योंकि यह तेजी से ज़मीन में धंस रहा है और बढ़ते समुद्री स्तर के कारण बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। इस समस्या के कारण 2050 तक उत्तरी जकार्ता का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो सकता है। "

 दूसरी तरफ ठंडी जलवायु वाले पृथ्वी के देशों में अचानक बहुत गर्मी पड़ने लगी है, खासकर यूरोप में। और इधर कुछ सालों से इस तरह की बारिश भी हो रही है जैसा पहले शायद ही कभी हुईं हो और इसके कारण बहुत तबाही हो रही है । बहुत से गांव बाढ़ में बहकर गायब हो जा रहे हैं और बहुत से बड़े-बड़े पहाड़ टूटकर विनाश के कारण साबित हो रहे हैं।

एक और परेशानी सामने आ रही है। यह तो पता है सबको कि पृथ्वी में जमीन की सतह से कुछ नीच पानी का विशाल भंडार है। जब पानी के हैंड पंप का आविष्कार हुआ तो एक पाइप जमीन के नीचे डालकर पंप से पानी खींचकर ऊपर निकलना शुरू हो गया। जब शहरों का विकास हुआ तब जो शहर नदी के किनारे नहीं थे वहां पर इसी तरह के हेड पंप लगाकर पानी निकाला जाता था रोज-रोज की आवश्यकताओं के लिए। 

फिर बिजली के बड़े-बड़े पंप आ गए विज्ञान की प्रगति के साथ। अब यह संभव हो गया की बहुत ही अधिक मात्रा में बहुत ही कम समय में पानी बाहर निकाला जा सकता था और मनुष्य ने यह काम शुरू कर दिया जोर-जोर से। फिर तो खेतों में भी पानी देने के लिए बड़ी मात्रा में जमीन के नीचे से पानी निकालने का कब शुरू हुआ। नतीजा यह हुआ की धीरे-धीरे जमीन के नीचे के इस पानी की सतह का नीचे जाना शुरू हो गया। पृथ्वी का ऊपरी जमीनी भाग क्योंकि इसी पानी पर टिका हुआ है तो इससे जमीन भी नीचे को धसते लगी जिसे अंग्रेजी में subsidence of land कहते हैं। इसे और ज्यादा गति इस बात से मिली कि बड़े-बड़े शहरों में जमीन के ऊपर बहुत ऊंची ऊंची इमारत का निर्माण होना शुरू हो गया जिससे पृथ्वी की सतह पर बहुत ही अधिक भार होने लगा। इससे पृथ्वी के नीचे को धसाने का काम तेजी से बढ़ने लगा। इसका असर न केवल जकार्ता शहर पर पड़ा बल्कि और  बड़े-बड़े शहरों पर भी पड़ा जो समुद्र के किनारे स्थित है जैसे कैलिफोर्निया का सैन फ्रांसिस्को शहर और भारत का मुंबई शहर। 

यह अकेली मुसीबत नहीं है। अब सभी देशों में चाहे वह देश की जनता हो, चाहे वह देश का नेतृत्व करने वाले नेता हो, मनःस्थिति खराब हो चली है। रूस के पुतिन हो या अमेरिका के ट्रंप हो या कोरिया और इजरायल के नेता हों या और कोई देशों के नेता हो , सभी संयम से काम लेने के बजाय इस तरह के काम कर रहे हैं जिससे विश्व युद्ध का खतरा  बढ़त जा रहा है। और जनता के  आक्रोश को देखें तो श्रीलंका में कुछ साल पहले हुई बर्बादी और विद्रोह के बाद यही बात बांग्लादेश में भी हुई पिछले साल और अभी-अभी कुछ दिन पहले नेपाल को जलाकर वहां की जनता ने अपना विद्रोह प्रकट किया है। 

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है। मनुष्य का शरीर  भी विज्ञान की प्रगति के  संकट में है । फूल पौधों के, अनाज के, जानवरों के और यहां तक की मनुष्यों के भी ऊपर भी जेनेटिक एक्सपेरिमेंट किये जा रहे हैं। उनके जींस बदले जा रहे हैं।  इससे कारण सब्जियों के प्राकृतिक गुण खत्म होते जा रहे हैं। दूध को ऑक्सीटोसिन से प्रदूषित किया जा रहा है, साग सब्जियों को, फलों को, कार्बाइड गैस और तरह-तरह के रसायन से पकाया और बड़ा किया जा रहा है। खाने की वस्तुओं को पैकेट बंद बेचने के लिए उनमें पेस्टिसाइड्स, प्रिजर्वेटिव्स ,रंग, खुशबू वगैरह मिलाए जा रहे हैं। इन सभी से नई-नई बीमारियां पैदा हो रही है और मनुष्य के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। 

और भी बहुत कुछ हो रहा है ।

धर्म के नाम पर आतंक फैलाया जा रहा है। मनुष्य की चमड़ी के रंग और जाति आधार पर भी   आतंक हो रहा है। देखा जाए तो मनुष्य का मस्तिष्क भ्रमित होता जा रहा है। उसके अंदर आक्रोश और क्रोध भरा हुआ है और वह अपने आक्रोश की वजह से अपना मानसिक संतुलंत होता जा रहा है जिसका अंत विनाश में ही होना है। 

भगवत गीता में भी यही कहा गया है . . . 

 "क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।
(भगवद् गीता के अध्याय 2, श्लोक 63)

अर्थात क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रमित होती है, स्मृति भ्रमित होने से बुद्धि नष्ट हो जाती है, और बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य का पतन हो जाता है क्योंकि यह सही निर्णय लेने की क्षमता  को खत्म कर देता है, जिससे मनुष्य गलतियाँ करता है और अंततः अपना ही विनाश कर बैठता है। 

विश्व एक बहुत बड़ी त्रासदी की तरफ बढ़ता प्रतीत हो रहा है।


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