रेल गाड़ी रेलगाड़ी छुक छुक छुक छुक छुक छुक छुक छुक
हो सकता है कि यह गाना आपने सुना हो। इस गाने को 1968 की फिल्म आशीर्वाद में अशोक कुमार के ऊपर फिल्माया गया है। इस दृश्य में अशोक कुमार रेल के इंजन है और पीछे-पीछे छोटे-छोटे बच्चों की एक लंबी कतार रेल के डिब्बे हैं।
लंबी दूरी की यात्राओं के लिए रेलगाड़ी का बहुत महत्व है जिससे काफी तेजी से सफर करना संभव हो सका। पर एक समय ऐसा भी था जब रेलगाड़ी नहीं होती थी और उस समय लंबी दूरी की यात्रा करने में कितनी परेशानी होती थी यह आजकल के लोगों की कल्पना के बाहर है।
19वी सदी में लिखी गई पुस्तकों से पता चलता है कि साधन संपन्न अंग्रेज किस तरह से कोलकाता से दिल्ली या शिमला की यात्रा करते थे। घोड़े पर बैलगाड़ी पर या फिर पालकी पर यात्रा होती थी। पालकी को चलाने वाले चार मजदूर या फिर घोड़े की यात्रा करने पर एक घोड़ा या फिर बैलगाड़ी की यात्रा करने पर दो बैलों को कुछ कुछ दूरी पर बदलाना जरूरी हो जाता था ताकि थके हुए प्राणियों की जगह तरो ताज प्राणी आ जाएं और आगे का सफर संभव हो। इसके लिए बहुत इंतजाम करना पड़ता था । आम आदमी को कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। एक शहर से नजदीकी दूसरे शहर जाने में कई दिन लग जाते थे और कोलकाता से दिल्ली की यात्रा में तो कई सप्ताह लगते थे।
फिर रेलगाड़ी आ गई ।
रेलवे इंजन का आविष्कार करने का श्रेय आम तौर पर जेम्स वाट को जाता है जिन्होंने लंबे समय तक चलने वाले भाप के इंजन का आविष्कार किया। पर इसका रेलगाड़ी में इस्तेमाल करने का श्रेय जाता है रिचर्ड थ्रेवेथिक को जब 21 फरवरी 1804 में व्यवहारिक रेलवे इंजन से पहली रेलगाड़ी ब्रिटेन में कुछ दूरी तक चली।
भारत में पहली रेलगाड़ी बॉम्बे (मुंबई) से थाणे तक 16 अप्रैल सन 1853 को चली और इसके साथ ही भारत में रेलवे का इतिहास शुरू होता है। 1857 की क्रांति के बाद
ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ से सत्ता का परिवर्तन ब्रिटिश सरकार को हो गया । इसके बाद तो पूरे देश पर रेलवे लाइन का जाल बिछने लगा और भारत की आजादी तक देश के काफी हिस्सों को रेलवे लाइन से जोड़ दिया गया। रेलगाड़ी के चलने के लिए तीन तरह के ट्रैक यदि रेल की पटरी का इस्तेमाल किया गया जिनको नैरो गेज , मीटर गेज और ब्रॉड गेज कहा जाता है। सबसे चौड़ी रेलवे पटरी ब्रॉड गेज में होती है और सबसे कम चौड़ी नैरो गेज मेंआजकल आम तौर पर ब्रॉड गेज पटरी ही होती हैं।
अभी भी भारत के कुछ महत्वपूर्ण शहरों में रेलगाड़िया नहीं पहुंच पाई है खासकर पहाड़ी क्षेत्र में । पर रेलवे मंत्रालय इस बारे में बहुत प्रयास कर रहा है। कुछ ही समय पहले (सितंबर 2025 में) उत्तर पूर्व पहाड़ियों में मिजोरम की राजधानी आइजॉल के बिल्कुल नजदीक के शहर तक रेल की पटरिया पहुंच गई है। पहाड़ी क्षेत्र में रेल गाड़ी चलाना बड़ा मुश्किल होता है बड़े-बड़े पुल बनाने पड़ते हैं और सुरंग भी बनानी पड़ती है पहाड़ों के अंदर।
जहां तक छुक छुक छुक छुक का सवाल है अब समय बदल चुका है। अब भाप से चलने वाले वह बड़े-बड़े रेलवे इंजन जा चुके हैं जो छुक छुक छुक छुक वाली रेलगाड़ियां चलाते थे। अब रेलवे की प्रगति के साथ डीजल के इंजन और बिजली के इंजन प्रयोग में करीब करीब सभी जगह इस्तेमाल हो रहे हैं और रेलगाड़ी का पुराना छुक छुक वाला समय बीत चुका है।
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