Total Pageviews

Tuesday, 9 September 2025

डॉक्टरों की बदलती दुनिया।

एक वरिष्ठ नागरिक जब पीछे मुड़ कर बीते हुए समय को देखता है तो उसे आज की दुनिया बिल्कुल बदली हुई नजर आती है। जीवन के हर क्षेत्र में समय के साथ काफी कुछ बदल गया है और अब पहले जैसा शायद ही कुछ है।

अब आप डॉक्टर को ही देख लीजिए। एक जमाना था जब डॉक्टर अपनी साइकिल पर मरीज को देखने के लिए उनके घर पर आते थे। मरीज को देखते वक्त जीभ देखते थे हाजमे का हाल जानने के लिए , उसके बाद आंखों की निचली पलक  को खोलकर देखते थे कि शरीर में खून की कमी तो नहीं है। छाती पर हथेली रखकर दूसरे हाथ की दो उंगलियों से खटखटाते थे और फेफड़े का हाल मालूम करते थे । फिर  घुटने के ठीक नीचे एक खास तरह की डंडी से हल्के हल्के मारते थे जिससे घुटने के नीचे का पैर का हिस्सा ऊपर नीचे उछलता था। जीभ को बाहर निकाल के और चम्मच से दबाकर अंदर गले को देखते थे। नब्ज भी देखते थे। दाहिने फेफड़ों के ठीक  नीचे अपने हाथ की उंगलियों से दबा दबा कर लीवर को चेक करते थे।

आजकल ऐसा कुछ नहीं होता है। आप डॉक्टर के पास जाते हैं अपनी परेशानी बताते हैं और वह फौरन कई टेस्ट लिख देते हैं जिन्हे कराने में कभी-कभी काफी पैसा खर्च होता है। फिर आप वापस डॉक्टर साहब के पास जाते हैं टेस्ट की रिपोर्ट लेकर और डॉक्टर पर्ची लिख देते हैं जिसमें केमिस्ट की दुकान से मिलने वाली दवाइयां होती है। पुराने जमाने में ज्यादातर दवाइयां डॉक्टर खुद अपनी ही क्लिनिक से देते थे, अपने कंपाउंडर से बनवाकर। अब कंपाउडर नाम का जीव कहीं नहीं दिखाई देता है।

आजकल एक फर्क यह भी हो गया है कि ज्यादातर डॉक्टर स्पेशलिस्ट है यानी हार्ट का अलग डॉक्टर, लीवर का अलग डॉक्टर , नाक और गले का अलग डॉक्टर, किडनी का अलग डॉक्टर, चमड़ी (skin) का अलग डाक्टर , पाचन संस्थान का अलग डॉक्टर इत्यादि। कुछ नाम इस प्रकार है स्पेशलिस्ट के  - Gastroenterologists, cardiologist, urologist, nephrologist, Hematologists, Neurologists, Gynecologists, 
Oncologists, Ophthalmologists, Otolaryngologists (they check ear, nose,throat etc), Immunologists and quite a few more . 

ऐसा भी देखा गया है कि एक डॉक्टर जब अपने  स्पेशलाइजेशन की दवाई देता है तो कभी कभी शरीर के दूसरे ऑर्गन जैसे किडनी या लीवर खराब हो जाते हैं। फिर उनका इलाज करने के लिए दूसरे स्पेशलिस्ट के पास जाना पड़ता है। सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को होती है जिनके पास इतना पैसा नहीं होता है कि वह एक स्पेशलिस्ट से दूसरे स्पेशलिस्ट के चक्कर काटते रहें , टेस्ट करवाते रहे और महंगी  दवाइयां खाते रहें । स्पेशलिस्ट डॉक्टर की फीस भी काफी अधिक होती है और वह टेस्ट भी बहुत महंगे कराते हैं। कभी-कभी डॉक्टर खास नाम की  ऐसी दवाइयां लिख देते हैं जो उनके बगल की क्लीनिक पर ही मिल सकती है और कहीं नहीं और वह दवाइयां आमतौर पर इसी तरह की और दवाइयां से कई गुना ज्यादा दाम की होती है और कभी-कभी तो ऐसी कंपनी होती है जिनका नाम भी गूगल सर्च करने पर मुश्किल से मिलता है।

खर्च बचाने के लिए गरीब आदमी कभी कभी  होम्योपैथी डॉक्टर की तरफ भागता है पर अब होम्योपैथी डॉक्टर भी बदल गए हैं। पुराने जमाने में होम्योपैथिक डॉक्टर काफी अच्छी तरह हाल पूछने के बाद  अपने ही क्लिनिक से दवाइयों की पुड़िया दे देते थे बहुत कम दाम में। आजकल होम्योपैथी डॉक्टर भी मोटी फीस लेने लगे हैं और अपनी ही क्लिनिक से कई दवाइयों की पूरी बोतलें दे देते हैं (जब की पांच प्रति ही दवा उस बीमारी के लिए काफी होती है)। इन बोतलों का दाम काफी होता है और इलाज होने के बाद वह बेकार पड़ी रहती हैं।

यह सब होने के बावजूद कभी कभी ऐसे भी डॉक्टर मिल जाते हैं जो मरीज को काफी समय देते हैं मर्ज समझने के लिए, जो जहां तक  बहुत जरूरी न हो तो टेस्ट भी नहीं करवाते, जो अच्छी क्वालिटी की सस्ती दवाइयां ही देते है।
अगर आपका वास्ता ऐसे ही डॉक्टरों से पड़ता है तो आप कहते है की डॉक्टर तो भगवान है।

*** 






 

No comments: