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Friday, 12 September 2025

क्या विज्ञान ही अंतिम सत्य है ?

क्या विज्ञान ही अंतिम सत्य है ?

आप एक किताब को पढ़ते हुए अपने कमरे में टहल रहे हैं। अचानक किताब आपके हाथ से छूट जाती है और नीचे जाकर जमीन पर गिर जाती है। किताब आपके हाथ से छूटकर ऊपर  नहीं गईं, दाहिने तरफ नहीं गई, बाय तरफ भी नहीं गई। वह नीचे चली गई । 

ऐसा क्यों होता है ? 

ऐसा होता है पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण। पृथ्वी हर चीज को अपनी तरफ खींचती है । इसी को गुरुत्वाकर्षण शक्ति कहते हैं। पेड़ से फल गिरकर नीचे जमीन पर आ जाते हैं । झरने  से पाली गिरता रहता है और नीचे आता रहता है। 

ऐसा कहा जाता है की एक दिन न्यूटन नाम का एक वैज्ञानिक एक सेब के पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। अचानक पेड़ से एक पका हुआ सेब टूटता है और नीचे आकर उसके पास गिर जाता है। न्यूटन इसके बारे में काफी सोचता है और फिर गुरुत्वाकर्षण शक्ति नाम के एक सिद्धांत का जन्म होता है। 

इस तरह यूरोप की सभ्यता ने गुरुत्वाकर्षण शक्ति का पता लगाने का श्रेय न्यूटन को दे दिया 16वीं सदी में।

पर यह बात सही नहीं है क्योंकि इससे पहले भी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बारे में काफी मालूम था विश्व की पुरानी सभ्यताओं को। इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति का विस्तृत वर्णन सूर्य सिद्धार्थ नाम की एक प्राचीन भारतीय पुस्तक में  भी मिलता है जो सैंकड़ों  साल पहले लिखी गई थी ।

'सूर्य सिद्धांत' में गुरुत्वाकर्षण शक्ति का विस्तृत वर्णन है, विशेष रूप से भास्कराचार्य द्वारा लिखित संस्करण में, जो पृथ्वी और अन्य खगोलीय पिंडों के आकर्षण बल का उल्लेख करता है।  यह न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से कई शताब्दियों पहले ही इस बात की जानकारी देता है कि गुरुत्वाकर्षण के कारण ही सभी चीजों को पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही आकर्षित करती है और ब्रह्मांड में पृथ्वी तथा अन्य ग्रह इसी कारण से अपनी कक्षा में बने रहते हैं। 

पर आधुनिक विज्ञान को इसका कोई ज्ञान नहीं था। ऐसे ही विज्ञान को इस बात का भी ज्ञान नहीं था कि मनुष्य के तथा अन्य जीवों के शरीर में एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्षेत्र होता है। जब इस बात का वर्णन हमारे पुराने ग्रंथों में आता था और खासकर पिछले दो सौ साल में लिखी हुई कुछ भारतीय पुस्तकों में तो वैज्ञानिक इस बात का मजाक उड़ाते थे। इसे बे सिर पैर की बात कहते थे। फिर 1954 में वैज्ञानिकों को इस बात का पता चला कि यह तो सच है कि वास्तव में ऐसा एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड होता है। 

मतलब यह हुआ कि जब तक विज्ञान को पता नहीं चल जाएगा तब तक वह बात गलत है। और जब विज्ञान को उसका पता चल जाएगा तो उसके आविष्कारक को इतिहास में जगह मिल जाएगी इस बात के लिए कि इसी वैज्ञानिक ने इस बात का पता लगाया। दूसरे शब्दों में कहे तो यह दिखाई देता है कि विज्ञान को सब चीजों के बारे में ज्ञान नहीं होता । जैसे-जैसे विज्ञान की प्रगति होती है वैसे-वैसे नई चीजों के बारे में विज्ञान को पता चलता रहता है। एक वाक्य में कहें तो विज्ञान का ज्ञान आखिरी सत्य नहीं है। 

बहुत ही प्राचीन काल में मनुष्य ने कितनी प्रगति की थी इसके बारे में हमें कुछ भी पता नहीं है पर विज्ञान बड़े विश्वास के साथ कहता है कि आदमी के पूर्वज बंदर हुआ करते थे और बंदर से ही आदमी का जन्म हुआ है। सोचा जाए तो यह एक तरह का बकवास हो सकता है जो डार्विन नाम के एक आदमी  थ्योरी है और जिसे विज्ञान ने मान्यता दी है।

पृथ्वी कई अरब साल पुरानी है और हमें अपने इतिहास में सिर्फ पिछले पांच छह हजार सालों का वर्णन मिलता है। पर इससे पहले भी मनुष्य संसार में था और उसके बारे में हमें कुछ पता नहीं है। प्राचीन ग्रंथो से ऐसा आभास होता है कि हजारों साल पहले भी कई सभ्यताएं रह चुकी है जिनका नामोनिशान अब पूरी तरह से मिट चुका है। उस बीते हुऐ कल को जिसे हम  जानते ही  नहीं हैं और जिसे हमारा इतिहास जाने में असफल है विज्ञान पूरी तरह से नकार देता है।

 यह तो निश्चित है कि विज्ञान को सब चीजों के बारे में ज्ञान नहीं होता । जैसे-जैसे विज्ञान की प्रगति होती है वैसे-वैसे नई चीजों के बारे में विज्ञान को पता चलता रहता है। 

एक वाक्य में कहें तो विज्ञान का ज्ञान आखिरी सत्य नहीं है।

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