हरचरण की शादी
हर चरण का बचपन काफी नीरस सा बीता था क्योंकि उसके पिता साधन संपन्न नहीं थे। फिर जब उसकी अपनी नौकरी लग गई एक कॉलेज मेंऔर उसे हर महीने एक अच्छी तनख्वाह मिलने लगी तो उसके मन में शादी का विचार आ गया। पर शादी के लिए कहीं से कोई भी संदेश न उसके पास आया और न उसके पिता के पास।
वह बड़ा कॉलेज था और उसमें बहुत विभिन्न विभागों के बहुत से शिक्षक भी काम करते थे। महिलाएं भी और पुरुष भी।
कॉलेज से एक टीचर महिला का नाम सुधा था । वह उसी की तरह लखनऊ की ही थी और हरचरण की जाति बिरादरी की भी। इन दोनों मैं धीरे-धीरे एक दूसरे के प्रति थोड़ा लगाव सा हो गया । सुधा के मन में यह विचार कभी नहीं आया कि वह हरचरण से शादी करेगी। पर हरचरण के मन में उससे शादी करने के लिए विचार आ गया । सुधा उसकी अपनी बिरादरी की ही थी और लखनऊ की भी। साथ ही वह भी टीचर थी और इस तरह खुद अच्छे पैसे भी कमाती थी। उसके लिए सुधा से अच्छी कोई लड़की नहीं हो सकती थीं। उसने कई बार शादी का प्रस्ताव रक्खा पर सुधा ने हर बार यही कहा की हम सिर्फ एक अच्छे दोस्त हैं।
और फिर अचानक एक दिन सुधा का ट्रांसफर नैनीताल से लखनऊ हो गया।
जब वह तल्लीताल से काठगोदाम जाने के लिए बस में बैठी थीं तभी अचानक दौड़ता हांफता हरचरण वहां पहुंच गया और उसके हाथ में एक लिफाफा पकड़ा गया। वह कुछ कहने ही वाला था
धीरे-धीरे पोस्ट ऑफिस के पास दाहिने मुड़ने के बाद तल्लिताल के नीचे वाली बाजार से होती हुई बस चीलचक्कर की तरफ बढ़ती गई। चीलचक्कर के पास बाईं ओर दूर-दूर तक एक लाइन के पीछे दूसरी लाइन में अनेकों पहाड़ दिखाई देते थे और नीचे घाटी में तेज हवाएं चल रही थी । सुधा को हरचरण का दिया हुआ लिफाफा याद आ गया। उसने लिफाफा खोला। उसके अंदर गुलाब के फूल की पंखुड़ियां थी और एक कागज में लाल इंक से लिखा हुआ था," सुधा मैं तुमसे प्यार करता हूं और करता ही रहूंगा। तुम मुझे विवाह के लिए राजी हो जाओ।"
झुझला कर सुधा ने उस कागज और लिफाफे को बस की खिड़की से जोर से बाहर फेंक दिया और कागज और गुलाब की पंखुड़ियां हवा में तैरती हुई नीचे घाटी में विलीन हो गई।
इधर सुधा के माता-पिता भी उससे शादी के लिए दबाव डाल रहे थे और उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि किसी अजनबी से वह कैसे शादी कर सकती है जबकि उसे अपने करियर पर बहुत रुचि थी। फिर बहुत सोच समझने के बाद उसे महसूस हुआ कि हर चरण जैसे सीधे-साधे इंसान के साथ शादी कर लेना ही सही होगा।
जब हरचरण को यह पता चला तो उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया और शादी की तैयारी शुरू कर दी । उसके पिताजी, जो कचहरी के एक रिटायर्ड बाबू थे, इस रिश्ते से बहुत प्रसन्न थे।
हरचरण के माता-पिता लखनऊ की लाल कुआं कॉलोनी के पास रहते थे। उनके मकान के आगे एक बहुत बड़ा मैदान था जिसके बीच में से एक सड़क उनके मकान को आती थी। लड़की के माता-पिता महानगर कॉलोनी में रहते थे।
क्योंकि मैं हरचरण को बहुत दिनों से जानता था तो स्वाभाविक था की हरचरण अपनी शादी में सम्मिलित होने का और शादी के टाइम पर मदद करने का निमंत्रण देता और वही हुआ। एक दिन हरचरन मेरे पास आया और शरमाते हुए बोला "भाई जी मैं शादी कर रहा हूं " मैंने कहा "किससे शादी कर रहे हो " तो बोला एक लड़की से । मुझे बड़ी हंसी आई मैंने कहा " भाई ,bकौन भाग्यवंबहै जो तुम्हारी पत्नी बनने वाली है।" तब उसके बताया कि उसकी शादी सुधा से होने वाली है जो महानगर के बद्री प्रसाद जी की पुत्री है।
मैं बद्री प्रसाद जी को तो मैं अच्छी तरह जानता था। वह लखनऊ के सेक्रेटेरिएट के एक पुराने बाबू थे । वह मेरे पिताजी के परिचित भी थे और उनका हमारे यहां आना भी जाना रहता था।
जब हरचरण ने मुझसे कहा की आपको भी कुछ काम करना होगा शादी का इंतजाम मैं तो मैंने उसे बता दिया की कुछ दिन पहले ही बद्री प्रसाद जी ने शादी के दौरान शादी का कुछ इंतजाम संभालने को मुझसे कह दिया था।
खैर जो भी हो शादी की तैयारी शुरू हो गई। हरचरण ने महानगर कॉलोनी तक बारात में जाने के लिए एक चटक लाल रंग की छोटी सी और खुली मोटर कार किराए पर ले ली और बैंड बाजे वालों का भी इंतजार कर लिया था।
और फिर लाल कुआं कॉलोनी से हरचरण की बारात बैंड बाजे के शोर के साथ चल पड़ी। आगे एक बड़ी बस में बाराती भरे हुए थे , बैंड बाजे वाले भी लाल रंग की ड्रेस में साथ थे। पीछे लाल रंग की मोटर में हरचरन ।
इधर महानगर में बद्री प्रसाद जी के मकान में सभी लोगों के साथ मैं भी बारात का इंतजार कर रहा था।
शादी का मुहूर्त नजदीक आ रहा था पर बारात का कहीं अता-पता नहीं दिखाई दे रहा था । बैंड बाजे वालों की आवाज भी नही सुनाई दे रही थी। बद्री प्रसाद जी ने मुझसे कहा बेटा जरा जाकर देखो तो बारात कहां है।
फिर मैं अपने स्कूटर में रवाना हुआ लाल कुआं की तरफ।
निशातगंज के जरा आगे गोमती के पुल के पास बारातियों से भरी बस खडी थी। मैने जब पता किया तो मालूम हुआ कि हरचरण की लाल मोटर न जाने कहां पीछे रह गई है।
मैं स्कूटर से फिर आगे बदा, लापता दूल्हे की तलाश में।
नरही के पास ही इनकम टॅक्स ऑफिस बिल्डिंग के सामने सड़क पर हरचरण की लाल मोटो खड़ी थी। आगे का बोनेट खुला हुआ था और ड्राइवर उसके अंदर घुसा हुआ था।
मैने स्कूटर रोक कर पूछा कि क्या हुआ तो हरचरण बौखला कर बोला की इस ड्राइवर के बच्चे ने सारे प्रोग्राम का कबाड़ा कर दिया है। ड्राइवर बहुत परेशान लग रहा था और अपने काम में जुटा हुआ था। हरचरण गुस्से मैं था और ड्राइवर को जली कटी सुना रहा था।
खैर कोई पंद्रह बीस मिनट बाद हरचरण की लाल मोटर ठीक हो गईं और मोटर के पीछे मै भी वापस महानगर की ओर चल पड़ा। फिर आगे आगे मोटर और पीछे बस चल पड़ी। निशात गंज की बाजार पार करने के बाद बस में से बैंड बाजे और पेट्रोमैक्स रोशनी वाले नीचे उतरे बारातियों के साथ और फिर धूम धड़ाके के साथ बारात चल पड़ी।
मैने स्कूटर स्टार्ट किया और जाकर लड़की वालो को बारात की सूचना दे दी।
खैर, विवाह संपन्न हुआ । सब लोगों ने खाना खाया। लाल मोटर के ड्राइवर ने भी खाना खाया पर वह बहुत परेशान लग रहा था।
फिर रात बीती और सुबह हुई। दुल्हन की विदाई का समय आ गया तो लाल मोटर और उसके ड्राइवर की याद आई।
पर लाल मोटर और ड्राइवर गायब थे। दूर दूर तक तलाश करने के बाद ड्राइवर की दुकान में फोन किया। दुकान के मुंशी ने बताया कि ड्राइवर का कोई पता नहीं है।
अब समस्या थी दुल्हन को वापस ले जाने की। कई टैक्सी वालों से पूछा पर कोई भी तैयार नहीं हुआ। हरचरण के रिटायर्ड पिता काफी समय बाद एक काले पीले पुराने जमाने के टेंपो को कहीं से ले आए जो पीछे से ढेर सारा काला धुआं छोड़ रहा था।
पहले तो हरचरण उस टेंपो में जाने के लिए राजी ही नहीं हुआ। पर सब लोगों के समझाने पर अपनी दुल्हन समेत टेंपो के अंदर जा बैठा। काला धुंआ छोड़ते हुए टेंपो चल पड़ा।
मेरा स्कूटर भी उसके पीछे चल पड़ा।
क्योंकि टेंपो अपनी मस्तानी चाल चल रहा था धुंए के गुब्बार में इसलिए मैं काफी पहले तेज स्पीड में लालकुआ के पास हरचरण के मकान में पहुंच गया। दुल्हन का स्वागत करने के लिए सभी बाहर आकर सामने मैदान से आती हुई सड़क की तरफ देखने लगे।
अचानक एक बड़े misfire धमाके के साथ वह काला भद्दा टेंपो मैदान के दूसरे छोर से दाखिल हुआ और थोड़ा आगे बढ़ते हुआ एक और misfire धमाका हुआ और फिर टेंपो के आगे का पहिया टूट गर गिर पड़ा और टेंपो के चारों तरफ काला धुंआ फैल गया।
पर उस धुंए के बादल को चीर कर हरचरण नई दुल्हन के साथ निकला।
स्वागत की रस्में पूरी हुईं । फिर जलपान का दौर चला। मैं भी एक कोने मैं खड़ा होकर छोले भटूरे खा रहा था कि अचानक हरचरण मेरे पास आ गया। उसकी आंखों में आंसू थे। भुर्राई हुईआवाज में बोला, " भाई जी, शादी मैं कुछ मजा नही आया।
मैने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, " मेरे भाई दुखी मत हो। बड़ी बात यह है की तुम्हारी शादी हो गई है अपनी पसंद की लड़की के साथ। "
बगल मैं मेरे परिचित सरदार जसवंत सिंह जी भी छोले भटूरे चबा रहे थे। उन्होंने मेरी बात सुनी तो भटूरे भरे मुंह से बोल पड़े , " त्वाडी गल चंगी है। हरचरण दी शादी सुधा नाल हुई है, टेंपो नाल नही।" फिर अपने ही जोक पर हंसते हुए भटूरा चबाने लगे।
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