इतिहास का वह दिन, वह स्थान।
* स्थान था नैनीताल । दिन था 18 सितंबर 1880 । समय था दिन के करीब ढाई बजे।
पिछले दो दिनों से नैनीताल में लगातार मूसलाधार पानी बरस रहा था। 16 सितंबर से 18 सितंबर 1880 के बीच 900 मिलीमीटर से भी ज्यादा पानी बरस चुका था। अचानक नैनीताल के उत्तरी पूर्वी भाग में अल्मा पहाड़ी का एक बहुत बड़ा हिस्सा टूट गया और भरभरा के नीचे आ गिरा। जब पहाड़ का हिस्सा खसक कर नीचे आया तो वह पूरी जगह पहाड़ी के नीचे दब गई और एक भयानक दुर्घटना घट गई जिसमें उस समय के रिकॉर्ड्स के हिसाब से 43 अंग्रेज और 108 हिंदुस्तानी दबाकर मर गए।
इस भयानक दुर्घटना मे नैनीताल का प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर भी नष्ट हो गया। 1880 तक यह मंदिर वहां हुआ करता था जहां आजकल बोट हाउस क्लब है । इस दुर्घटना के बाद नैना देवी के मंदिर को पुनः निर्मित किया गया और वह नैनीताल झील उस ओर चला गया जहां वह आज है।
इस दुर्घटना का मलबा हटाने के बाद वहां एक बड़ी समतल मैदान बन गई जहां पहले पहाड़ी ढलान पर कुछ बंगले थे।वही आजकल का फ्लैट्स का बड़ा मैदान है ।
* स्थान था अलाबामा स्टेट का मोंटगुमरी शहर। दिन था 1 दिसंबर 1955। समय था शाम के पांच बजे।
रोज पार्क नाम की एक लड़की , जो अश्वेत थी (यानि यूरोपियन नस्ल की नहीं थी) अपने घर जानें के लिए एक बस में अश्वेत लोगों वाली एक सीट पर जा बैठी ।
उस दौरान अमेरिका में रंगभेद नीति का कानून था और आगे की सीटों पर अंग्रेज लोग ही बैठ सकते थे। बस के कुछ दूर चलने के बाद कुछ और अंग्रेज बस पर चढ़े और क्योंकि उनके बैठने की सभी सीटे भर गई थी तो ड्राइवर ने अश्वेत लोगों से कहा कि अपनी एक पूरी पंक्ति खाली करके पीछे खड़े हो जाए ताकि वहां पर गोरी चमड़ी वाले अंग्रेज बैठ सके। वहां से सभी काले लोग उठकर पीछे चले गए पर रोजा पार्क वहां बैठी रही और उसने अपनी सीट खाली करने से इनकार कर दिया। इसके बाद ड्राइवर ने फोन कर के पुलिस को सूचना दी और फिर रोजा पार्क गिरफ्तार हो गई और यहां से शुरू हुआ अश्वेत लोगों का रंगभेद नीति के खिलाफ अभियान और रोजा पार्क "द मदर ऑफ़ द फ्रीडम मूवमंट" के नाम से मशहूर हो गई।
इस तरह से इस दिन एक नए आंदोलन की शुरुआत हुई अश्वेत लोगों के लिए बनाए गए कानूनों के खिलाफ।
* स्थान था ऑस्ट्रेलिया का पूर्वी तट जहां आजकल सिडनी शहर है। दिन था 19 अप्रैल 1770 ।
जेम्स कुक अपनी समुद्री खोज यात्रा में ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर आने वाला पहला यूरोपीय बन गया। और उसमें इसे ब्रिटेन के साम्राज्य का एक उपनिवेश घोषित किया।
18 वीं सदी में ब्रिटेन में अपराधियों की बढ़ती संख्या और गंभीर अपराध के दोषी पाए जाने वाले लोगों के लिए एक नई व्यवस्था शुरू की गई। यह निर्णय लिया गया कि एक जहाजी बेड़े द्वारा उन्हें ब्रिटेन से बहुत दूर ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में भेज दिया जाय जहां अपनी सजा काटने के बाद वे स्वतंत्र हो जाए और वही बस जाएं हमेशा के लिए।
1788 में प्रथम समुद्री बेड़े ने ऑस्ट्रेलिया में पोर्ट जैक्सन (वर्तमान सिडनी) में एक बस्ती स्थापित की, जिसमें ब्रिटेन से भेजे गए लगभग 778 अपराधी शामिल थे. यह ब्रिटेन से गंभीर अपराधियों को निकालने की एक शुरुआत थी जिसकी तहत 1788 से 1868 के बीच, ब्रिटेन से लगभग 162,000 से अधिक दोषियों को ऑस्ट्रेलिया भेजा गया था, जो ब्रिटेन और आयरलैंड में किए गए अपराधों के दोषी थे।
ब्रिटेन के इन अपराधियों ने सजा पूरी होने के बाद ऑस्ट्रेलिया में ही अपना व्यवसाय और अपनी खेती शुरू की और और जब पता चला की ऑस्ट्रेलिया में सोने की बहुत सी खान है तो ब्रिटिश से और भी नागरिक ऑस्ट्रेलिया पहुंचने लगे और धीरे-धीरे पूरे ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटेन का आधिपत्य हो गया।
* दिन 9 जनवरी 1915 । स्थान बम्बई (आजकल का मुंबई) का अपोलो बंदरगाह। एक समुद्री जहाज दक्षिणी अफ्रीका से भारत पहुंचा। उस जहाज से उतर कर धोती में लिपटे एक आदमी ने भारत में कदम रखा । इस आदमी का नाम था मोहन दास करमचंद गांधी
मोहन दास करमचंद गांधी ने एक नए हथियार से ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों का मुकाबला किया । वह हाथियार था "सविनय अवज्ञा" (civil disobedience) यानी किसी ऐसे अन्यायपूर्ण कानून या आदेश का अहिंसक विरोध करना जो व्यक्ति की न्याय की भावना के साथ मेल नहीं खाता, और इसके लिए दंड स्वीकार करने के लिए तैयार रहना.।
इसके साथ ही भारत के इतिहास पर एक नए युग का प्रारंभ हुआ जिसका अंत भारत की आजादी के साथ हुआ।
मोहन दास करमचंद गांधी आगे चल कर महात्मा गांधी के नाम से जगत विख्यात हो गये , भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सुपरस्टार बनकर।
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