क्या कभी आपने सोचा था ?
कभी आपने सोचा था कि जब आलू खरीदेंगे तो सबसे पहले उसको साबुन के पानी में भिगा कर रखेंगे काफी देर देंगे। उसके बाद सादे पानी से धोकर संभाल देंगे इस्तेमाल के लिए ।
वैसे ही सभी सब्जियां चाहे कद्दू हो लोकी हो हरा साग हो सब की धुलाई आजकल हो रही है साबुन के पानी से ।
कभी आपने सोचा था कि आप दिनभर साबुन से हाथ धोते रहेंगे और जो साबुन की टिकिया 1 महीने चलती है वह 4 दिन में खत्म हो जाएगी यह भी आप कर रहे हैं इस वायरस के जमाने में ।
कभी आपने सोचा था कि आप के परिजन जब आपसे मिलने आएंगे तो बाहर फाटक पर खड़े होकर बात करेंगे और आप अंदर मास्क के लगाए उनसे बात कर रहे होंगे । यह किस तरह का अतिथि सत्कार है ?
कभी आपने सोचा था की अमेज़न फ्लिपकार्ट से जब आप सामान मगाएंगे तो वह बंदा घंटी बजा कर बाहर के गेट में ही सामान छोड़कर चुपचाप भाग जाएगा । यह भी check नहीं करेगा कि सामान सही घर में दे रहा है या नहीं।
सन 2020 हमारे जीवन का सबसे घटिया साल रहा क्योंकि इस तरह का तमाशा पहले कभी हमने नहीं देखा था। पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त हो गई है। वायरस को रोकने के लिए तरह-तरह के उपाय किए गए । सोशल डिस्टेंसिंग यानी एक दूसरे से दूर खड़े होने का काम ।
मास्क भी लगाया गया है ।तरह-तरह की दवाइयां भी चल रही है। एक आयुर्वेदाचार्य ने तो फटाफट वायरस के आते ही अपनी चमत्कारी दवा का डब्बा यूट्यूब में पेश कर दिया यह कह कर कि इससे वायरस का खात्मा हो जाएगा पर उनके इस क्लेम पर सरकारी रोक लग गई क्योंकि उनके पास इस को प्रमाणित करने का कोई उपाय नहीं था । इसी तरह कहा गया कि क्लोरोक्विन खाने से वायरस का नाश हो जाता है किसी ने कहा रामडिसवार खाने से वायरस का नाश हो जाता है। किसी ने कहा हल्दी काली मिर्च सौठ का अर्क पियो तो किसी ने कहा कि तुलसी की पत्ती मैं दालचीनी मिलाकर पियो । पूरे साल भर यह सब तमाशा चले पर लोग मरते चले गए हैं ।
अमेरिका में तो बुरा हाल है विश्व का शायद अकेला देश है जहां की लोग दो भागों में बट गए हैं एक कहता है कि मास्क लगाना जरूरी नहीं है क्योंकि वायरस एक बकवास है और दूसरा कहता है वायरस बहुत खतरनाक है मास्क लगाना बहुत जरूरी है और दोनों दलों ने मारपीट तक की नौबत आ जाती है और अमेरिका में लोग मरते चले जा रहे हैं । करीब तीन लाख लोग मर चुके हैं लेकिन अभी तक होश नहीं आया है उन लोगों को जो वायरस को एक झूठा तमाशा साबित करने में लगे हुए हैं ।
गीता का एक श्लोक है
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
शब्दार्थ-
मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
तो प्रार्थना यह है कि प्रभु आप प्रकट हों और इस वायरस का विनाश करें।
वैक्सीन के रूप में प्रकट हो जाइए ताकि विश्व का कल्याण हो।
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